MP: पुलिस हिरासत में किसान की दर्दनाक मौत, मानवाधिकार आयोग के तीखे सवाल, न्याय और हर्जाने की मांग


मध्य प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान पुलिस हिरासत में किसान बंसी कुशवाहा की मौत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने गंभीर सवाल उठाए हैं। आयोग ने राज्य सरकार से इस मामले में जवाब मांगते हुए 7 लाख रुपये मुआवजे की सिफारिश की है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कुशवाहा के शरीर पर हिंसा के स्पष्ट निशान मिले हैं, जो पुलिस बर्बरता की ओर इशारा करते हैं। NHRC ने मामले की निष्पक्ष जांच और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।


DeshGaon
भोपाल Updated On :

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने 19 सितंबर 2024 को मध्य प्रदेश के किसान बंसी कुशवाहा की कस्टोडियल मौत के मामले की समीक्षा की। यह मामला लॉकडाउन के दौरान अप्रैल 2020 में पुलिस की कथित बर्बरता से जुड़ा हुआ है, जिसमें पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए गए हैं। मामले की जांच रिपोर्ट और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सामने आने के बाद यह स्पष्ट हुआ है कि कुशवाहा की मौत के पीछे पुलिस की कथित हिंसा एक अहम कारण हो सकती है। NHRC ने राज्य सरकार से जवाब मांगते हुए 7 लाख रुपये के मुआवजे की सिफारिश की है और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

 

मामले की पृष्ठभूमि: पुलिस की कथित बर्बरता

शिकायतकर्ता, प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता लेनिन रघुवंशी, ने अखबार की एक रिपोर्ट के आधार पर यह मामला NHRC में दर्ज कराया था। रिपोर्ट के अनुसार, 50 वर्षीय किसान बंसी कुशवाहा 16 अप्रैल 2020 की रात को जब अपने खेत से लौट रहे थे, तब जबलपुर के पास गोराबाजार पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मियों ने उन्हें कथित रूप से बर्बर तरीके से पीटा। इस घटना के बाद कुशवाहा की हालत बिगड़ती चली गई और तीन दिन बाद 19 अप्रैल को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी मौत 20 अप्रैल को हो गई।

 

शुरुआती जांच में यह बात सामने आई कि कुशवाहा के साथ मारपीट करने वाले पुलिसकर्मियों ने इस घटना की कोई भी औपचारिक रिपोर्ट दर्ज नहीं की। इस मामले में आठ पुलिसकर्मियों को, जिनमें एक सहायक उप-निरीक्षक (ASI) भी शामिल थे, निलंबित कर दिया गया था। हालांकि, इस घटना के बाद की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई बेहद हल्की थी—ASI को मात्र 2000 रु का जुर्माना किया गया और अन्य पुलिसकर्मियों को केवल चेतावनी दी गई।

 

पोस्टमार्टम रिपोर्ट: हिंसा के स्पष्ट संकेत

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बंसी कुशवाहा के शरीर पर 11 गंभीर चोटों के निशान दर्ज किए गए, जो किसी ठोस वस्तु से मारे जाने के कारण थे। ये चोटें उनके जांघ, कूल्हे, कंधे, और हाथों पर पाई गईं, जो कि बर्बर हिंसा की ओर इशारा करती हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कुशवाहा की मौत के पीछे उनके जिगर, फेफड़े और किडनी की पुरानी बीमारियां भी हो सकती हैं, लेकिन NHRC के फोरेंसिक विशेषज्ञ ने इस तथ्य पर जोर दिया कि पुलिस द्वारा की गई हिंसा उनकी मौत का मुख्य कारण हो सकती है।

 

हालांकि, घटनास्थल से प्राप्त की गई विसरा रिपोर्ट में कोई भी जहरीला पदार्थ नहीं पाया गया, लेकिन फोरेंसिक विशेषज्ञ ने बताया कि जो चोटें कुशवाहा के शरीर पर दर्ज की गईं, वे सामान्य परिस्थितियों में मौत के लिए पर्याप्त थीं। विशेषज्ञ ने यह भी कहा कि यह मामला गहन जांच की मांग करता है, क्योंकि कस्टोडियल मौतों के मामलों में इस प्रकार की हिंसा को गंभीरता से लेना जरूरी है।

 

कानूनी कार्यवाही: न्याय में देरी और चिंताएं

इस मामले में अब तक की जांच बेहद धीमी रही है। NHRC ने पहले ही मध्य प्रदेश पुलिस को विशेषज्ञ चिकित्सा राय और पीड़ित परिवार से रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था, लेकिन यह रिपोर्ट देरी से प्रस्तुत की गई। NHRC ने इस मामले में राज्य सरकार को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 18 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इसमें पूछा गया है कि क्यों न कुशवाहा के परिवार को 7,00,000 रु का मुआवजा दिया जाए। यदि सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो NHRC अपनी सिफारिशों के साथ आगे बढ़ेगी।

 

मामले के व्यापक प्रभाव: पुलिस की जवाबदेही पर सवाल

यह मामला केवल बंसी कुशवाहा की मौत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत में कस्टोडियल हिंसा और पुलिस की जवाबदेही के मुद्दे को भी उजागर करता है। इस मामले में NHRC का हस्तक्षेप स्पष्ट रूप से यह दिखाता है कि प्रारंभिक पुलिस जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई कितनी अपर्याप्त थी।

NHRC ने मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को सुप्रीम कोर्ट के परमवीर सिंह सैनी निर्णय के पालन की सिफारिश की है, जिसमें पुलिस थानों में CCTV कैमरे लगाने और उनकी फुटेज कम से कम एक साल तक सुरक्षित रखने का निर्देश दिया गया था। यह कदम इसलिए जरूरी है ताकि भविष्य में होने वाली कस्टोडियल मौतों को रोका जा सके और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।

 

न्याय की मांग: पीड़ित परिवार के लिए आशा

बंसी कुशवाहा की दुखद मृत्यु ने मानवाधिकारों के संरक्षण पर गंभीर सवाल उठाए हैं। NHRC की जांच ने पुलिस विभाग में छिपी खामियों को उजागर किया है, जहां कस्टोडियल हिंसा पर नकेल कसने की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है और पीड़ितों के परिवारों को न्याय के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।



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