– विश्वविद्यालय में विलय के लिए शासन को भेजा गया प्रस्ताव
– पृथक यूनिवर्सिटी भवन निर्माण की संभावनाओं पर लगा ग्रहण
छतरपुर। जिला मुख्यालय पर मौजूद 10 हजार छात्र-छात्राओं वाले महाराजा महाविद्यालय का 135 साल पुराना स्वर्णिम इतिहास अब खत्म होने जा रहा है। अब महाराजा महाविद्यालय को अपने भवन और संसाधनों सहित महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में विलय करने की तैयारी है।
भाजपा सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव द्वारा दो माह पहले छतरपुर प्रवास के दौरान दिए गए निर्देशों के आधार पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जिला प्रशासन के माध्यम से मप्र सरकार को यह प्रस्ताव भेज दिया है।
अगर सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी तो महाराजा कॉलेज नाम का संस्थान खत्म हो जाएगा और इसे यूनिवर्सिटी कैम्पस के रूप में ही जाना जाएगा।
अब सवाल उठता है कि जिस महाविद्यालय का निर्माण 1886 में महाराजा विश्वनाथ प्रताप सिंह जूदेव द्वारा दान दी गई 23 एकड़ भूमि पर किया गया हो। जिसके पास स्वयं का स्टेडियम, 18 विषयों में स्नातकोत्तर तक की कक्षाओं के संचालन की व्यवस्थाएं मौजूद हों। उस महाविद्यालय को अचानक खत्म कर उसकी पहचान को यूनिवर्सिटी में गुम कर देने की इस तैयारी पर आम जनता से राय क्यों नहीं ली गई।
यदि सात साल पहले छतरपुर में खोले गए महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय का विकास इसी तरह किया जाना है तो फिर शासन ने यूनिवर्सिटी के नवीन भवन व कैम्पस निर्माण हेतु 418 एकड़ जमीन क्यों चिन्हित की थी। ऐसे कई सवाल हैं जो शासन की मंशा पर खड़े कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर जिले में आक्रोश भी भड़क सकता है।
सात सालों में नहीं बन पाया यूनिवर्सिटी भवन, विलय से होगा नुकसान –
मप्र की शिवराज सिंह सरकार ने सात वर्ष पूर्व यानी 2014 में लंबे चले आंदोलन के बाद छतरपुर को यूनिवर्सिटी की सौगात दी थी। ऐलान के बाद छतरपुर में विश्वविद्यालय निर्माण के लिए 418 एकड़ जमीन भी चिन्हित कर दी गई, लेकिन आज तक इस जमीन पर यूनिवर्सिटी भवन का निर्माण करने हेतु सरकार ने कोई बजट नहीं दिया।
इतना ही नहीं विश्वविद्यालय सिर्फ नाम का विश्वविद्यालय बनकर रह गया है जो 6 जिलों के 177 महाविद्यालयों को संबंद्धता देकर उन्हें परीक्षाओं की अनुमति जारी करता है।
विश्वविद्यालय के पास न तो स्वयं का भवन है और न ही स्टाफ। सरकार ने 24 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों, एक कुलसचिव और कुलपति के सहारे छतरपुर को यूनिवर्सिटी का झुनझुना थमा दिया।
अपनी इसी असफलता को छिपाने के लिए अब सरकार यूनिवर्सिटी कैम्पस के रूप में महाराजा कॉलेज के संसाधन और इसके भवन को हड़पने की तैयारी में है।
महाराजा कॉलेज का यूनिवर्सिटी में विलय होने का मतलब है कि फिर यूनिवर्सिटी भवन का निर्माण कभी नहीं होगा और महाराजा कॉलेज का अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा।
विधायकों ने किया सरकार के कदम का विरोध, यूनिवर्सिटी प्रशासन ने साधी चुप्पी –
छात्र हित से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर जिले के ज्यादातर विधायक सरकार से सहमत नहीं हैं। विपक्षी विधायक इस मुद्दे पर सरकार से मोर्चा लेने की तैयारी कर चुके हैं।
छतरपुर विधायक आलोक चतुर्वेदी ने तो मप्र के मुख्यमंत्री को 3 मार्च को ही पत्र लिखकर इस कदम पर ऐतराज जताया है और सरकार से यूनिवर्सिटी के लिए अलग से फंड देने की मांग की है।
इसी तरह सपा विधायक राजेश शुक्ला, कांग्रेस विधायक नीरज दीक्षित, भाजपा विधायक राजेश प्रजापति ने भी अपना ऐतराज जताया है। हालांकि प्रद्युम्न सिंह इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से बचते रहे।
इसी तरह विश्वविद्यालय के कुलपति टीआर थापक इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इनकार करते रहे। कुलसचिव ने भी मुद्दे पर कोई राय नहीं दी।
महाराजा कॉलेज छतरपुर की पहचान है। पूरे प्रदेश में इस कॉलेज का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। कॉलेज को नैक द्वारा बी ग्रेड रेटिंग, रूसा के द्वारा करोड़ों रुपये का फंड दिया गया है। सरकार यूनिवर्सिटी बनाने की अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए हमारे महाविद्यालय को इस तरह खत्म नहीं कर सकती। इस मुद्दे पर विधानसभा में आवाज उठाएंगे। जरूरत पड़ी तो सड़क पर बैठेंगे।
– आलोक चतुर्वेदी, विधायक, छतरपुर
100 साल पुराना महाविद्यालय है। इस तरह से इसे खत्म करना उचित नहीं है। सरकार को यूनिवर्सिटी के लिए बजट उपलब्ध कराना चाहिए। इस मुद्दे पर हम मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री से बात करेंगे। कांग्रेस इस कदम का विरोध करेगी।
– नीरज दीक्षित, महाराजपुर विधायक
ये बेहद गलत फैसला है। हमारी ऐतिहासिक धरोहर के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विधानसभा में इस मुद्दे को उठाएंगे। जिले का सपना है कि यहां एक भव्य यूनिवर्सिटी कैम्पस बने जिसका लाभ छतरपुर सहित आसपास के जिलों को मिले।
– बबलू, सपा विधायक, बिजावर
इस मुद्दे पर मैंने उच्च शिक्षा मंत्री से चर्चा की है। उन्होंने कहा है कि जब तक यूनिवर्सिटी भवन नहीं है तब तक हम अस्थायी व्यवस्था कर रहे हैं। महाराजा कॉलेज के अस्तित्व को खत्म नहीं करने का भरोसा उन्होंने दिया है। फिर भी हम इस मुद्दे पर नजर रखेंगे।
– नातीराजा, विधायक, राजनगर
सरकार का यह कदम गलत है। जिले का एक ही अच्छा स्वशासी महाविद्यालय महाराजा कॉलेज है। इसे यूनिवर्सिटी में विलय न कर यूनिवर्सिटी के लिए बजट दिया जाना चाहिए। विद्यार्थी परिषद ने पिछले दिनों ज्ञापन देकर यूनिवर्सिटी के लिए बजट की मांग की थी हम फिर से इस मुद्दे को उठाएंगे।
– अंकिता विश्वकर्मा, प्रांत कार्यकारिणी सदस्य, अभाविप
संविलियन के इस कदम का हम पुरजोर विरोध करेंगे। भले ही हमें छात्रों के साथ महाविद्यालय परिसर की तालाबंदी करनी पड़े। ये बर्दाश्त योग्य फैसला नहीं है। जब तक यह निर्णय वापस नहीं लिया जाता, युवक कांग्रेस इस कदम का विरोध करेगी।
– लोकेन्द्र वर्मा, जिलाध्यक्ष, युवक कांग्रेस, छतरपुर