The Sabarmati Report’, जो 2002 के गोधरा कांड पर आधारित है, को दर्शकों और समीक्षकों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। फिल्म ने एक गंभीर ऐतिहासिक घटना को उठाते हुए पत्रकारिता, राजनीति और सच्चाई के बीच की कश्मकश को दिखाने का प्रयास किया है। तीन प्रमुख समीक्षकों—द हिंदू, इंडिया टुडे, और द फर्स्टपोस्ट—की राय में फिल्म का मुख्य आकर्षण विक्रांत मैसी का अभिनय है, लेकिन फिल्म की पटकथा और संतुलित दृष्टिकोण पर सवाल उठाए गए हैं।
जहां द हिंदू ने इसे पत्रकारिता के संघर्ष और विक्रांत के प्रदर्शन के लिए सराहा, वहीं इंडिया टुडे ने इसे भावनात्मक लेकिन कमजोर बताया। द फर्स्टपोस्ट ने फिल्म की संरचना और संतुलन पर तीखी आलोचना की, हालांकि इसमें मौजूद अभिनय को एक मजबूत पक्ष माना। यह रिपोर्ट तीनों समीक्षाओं के आधार पर फिल्म के मजबूत और कमजोर पक्षों का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
द हिंदू: सिनेमा और सत्य के बीच संघर्ष
द हिंदू ने फिल्म की पृष्ठभूमि और इसके प्रस्तुतिकरण पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। उनका मानना है कि फिल्म ने गोधरा कांड की ऐतिहासिक घटना को उठाते हुए न केवल तथ्यों को उजागर किया है, बल्कि अंग्रेजी और हिंदी पत्रकारिता के बीच गहराई से मौजूद विभाजन को भी दिखाया है।
विक्रांत मैसी का किरदार समर, जो एक छोटे स्तर का पत्रकार है, घटनाओं की तह तक पहुंचने की कोशिश करता है। वह मीडिया हाउस की राजनीति और सच्चाई को छुपाने के दबाव का सामना करता है। समीक्षा के अनुसार, फिल्म की शुरुआत दमदार है, लेकिन इसके बाद यह मुख्य मुद्दे से भटक जाती है। पत्रकारिता में संतुलन और निष्पक्षता की बात करते हुए फिल्म अंत में कई सवाल छोड़ जाती है।
हालांकि, फिल्म को तथ्यात्मक रूप से सटीक नहीं कहा जा सकता, लेकिन विक्रांत मैसी और रिद्धि डोगरा के सशक्त अभिनय को खूब सराहा गया है।
इंडिया टुडे: भावनाओं पर आधारित एक अधूरी कहानी
इंडिया टुडे ने फिल्म को एक भावनात्मक लेकिन कमजोर प्रस्तुति करार दिया। समीक्षा में कहा गया है कि गोधरा कांड फिल्म का केंद्र बिंदु तो है, लेकिन यह केवल एक पृष्ठभूमि की तरह इस्तेमाल होता है। फिल्म मुख्यतः पत्रकार समर के व्यक्तिगत संघर्ष और अमृता गिल के साथ उसके मिशन पर केंद्रित है।
मीडिया, राजनीति और न्याय प्रणाली के टकराव को दिखाने के प्रयास में फिल्म कई जगहों पर दिशा खो देती है। समीक्षा में यह भी उल्लेख किया गया है कि फिल्म में अयोध्या से जुड़े घटनाक्रम को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, जो गोधरा कांड का महत्वपूर्ण संदर्भ है।
विक्रांत मैसी का अभिनय जहां प्रशंसा का पात्र है, वहीं फिल्म की पटकथा कमजोर पड़ जाती है। अमृता का किरदार (राशी खन्ना) और मणिका (रिद्धि डोगरा) के योगदान को सराहा गया है, लेकिन उनका विकास सीमित महसूस होता है।
द फर्स्टपोस्ट: सच्चाई और कल्पना का असंतुलन
द फर्स्टपोस्ट ने फिल्म की आलोचना करते हुए इसे एक अधूरी कोशिश बताया। उनकी समीक्षा में कहा गया है कि ‘द साबरमती रिपोर्ट’ गोधरा कांड की जटिलता को पूरी तरह से प्रस्तुत करने में असफल रहती है। फिल्म में हिंदी पत्रकारों को “सच्चे” और अंग्रेजी पत्रकारों को “पक्षपाती” दिखाने का प्रयास इसे संतुलित दृष्टिकोण से दूर कर देता है।
समीक्षा में यह भी कहा गया है कि फिल्म का निर्देशन कई जगहों पर बिखरा हुआ लगता है। समर और अमृता का कोर्टरूम ड्रामा और उनकी जांच की कहानी रोचक हो सकती थी, लेकिन इसे नाटकीयता में उलझा दिया गया।
हालांकि, समीक्षा ने विक्रांत मैसी के प्रदर्शन को एक मजबूत बिंदु बताया है। उनकी सहजता और गहराई ने समर के किरदार को जीवंत किया है। रिद्धि डोगरा और राशी खन्ना ने भी अपने-अपने किरदारों में अच्छा योगदान दिया, लेकिन पटकथा ने उनके प्रदर्शन को सीमित कर दिया।
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तीनों समीक्षाओं का विश्लेषण यह दिखाता है कि ‘द साबरमती रिपोर्ट’ एक साहसी लेकिन असमान फिल्म है। विक्रांत मैसी और अन्य कलाकारों के प्रदर्शन को भले ही सराहा गया हो, लेकिन फिल्म अपने विषय की जटिलता को पकड़ने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाई। जहां द हिंदू ने इसे पत्रकारिता और सत्य के संघर्ष पर केंद्रित फिल्म बताया, वहीं इंडिया टुडे और द फर्स्टपोस्ट ने इसके भावनात्मक पहलुओं और पटकथा की कमजोरियों पर सवाल उठाए। यह फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है, खासकर अगर आप विक्रांत मैसी के अभिनय के प्रशंसक हैं।