शरद पूर्णिमा: चंद्रमा की अमृत वर्षा और आध्यात्मिक ऊर्जा की रात, जानिए क्या हैं इसकी महत्वता के वैज्ञानिक कारण


शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है, जिसे चंद्रमा की अमृतमयी रात कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से संपूर्ण होकर पृथ्वी के सबसे करीब होता है, जिससे उसकी किरणों में विशेष ऊर्जा मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस रात खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है, ताकि वह अमृतमयी गुणों से भर जाए। इसके साथ ही, भगवान श्रीकृष्ण के रासलीला से जुड़ी इस रात को आध्यात्मिक ऊर्जा और स्वास्थ्य लाभों के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।


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शरद पूर्णिमा का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत महत्व रखता है। यह दिन न केवल धार्मिक पूजा-अर्चना का समय होता है, बल्कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा मानी जाती है, जो तन और मन को स्वस्थ करती है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनाई जा रही है, और यह दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।

 

चंद्रमा और अमृत की मान्यता शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से संपूर्ण होकर पृथ्वी के सबसे करीब होता है। इसके कारण उसकी किरणों में विशेष प्रकार की ऊर्जा और औषधीय गुण माने जाते हैं। यह एकमात्र पूर्णिमा है, जब लोग दूध-चावल की खीर को चंद्रमा की रोशनी में रातभर रखते हैं, ताकि उसमें अमृतमयी गुणों का संचार हो सके। माना जाता है कि इस खीर को सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ होते हैं।

 

रास पूर्णिमा और आध्यात्मिकता धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ महारास किया था, जिसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व प्रेम, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। भक्तजन इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा कर उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। इस दिन किए गए पूजन और उपवास से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।

 

शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी का पृथ्वी पर आगमन होता है, इसलिए इस दिन धन की देवी का पूजन करना अत्यधिक शुभ माना गया है। यदि आप भी इस रात समृद्धि और शांति की कामना करते हैं, तो देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा अवश्य करें और चंद्रमा की रोशनी में खीर का प्रसाद ग्रहण करें।

 

शरद पूर्णिमा: चंद्रमा की अमृतमयी किरणें और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 

शरद पूर्णिमा को धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, जिसे ‘पेरिजी’ कहा जाता है। इस कारण चंद्रमा की किरणें सामान्य दिनों की तुलना में अधिक चमकदार होती हैं और इनका प्रभाव वातावरण पर खास रूप से देखा जाता है।

 

चंद्रमा और मानव शरीर पर प्रभाव

चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी पर ज्वार-भाटा उत्पन्न करता है, और माना जाता है कि इसका प्रभाव हमारे शरीर पर भी हो सकता है, क्योंकि शरीर का अधिकांश भाग जल से बना है। इसके साथ ही, कुछ अध्ययनों के अनुसार, चंद्रमा की रोशनी मेलाटोनिन जैसे हार्मोन के उत्पादन को प्रभावित कर सकती है, जो नींद के चक्र को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस कारण शरद पूर्णिमा की रात खुली हवा में रहना और चंद्रमा की रोशनी में समय बिताना मानसिक शांति और नींद की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक हो सकता है।

 

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की शीतल किरणें शरीर की पित्त ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करती हैं। विशेषकर चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखने और उसे सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से स्वास्थ्य लाभ होते हैं। माना जाता है कि चंद्रमा की ऊर्जा खीर में अमृतमयी गुण भरती है, जिससे यह शरीर के रोगों को दूर करने में सहायक होती है।

 

उत्सव और स्वास्थ्य

विभिन्न भारतीय परंपराओं में, शरद पूर्णिमा की रात को क्रीड़ाओं और नृत्य के साथ उत्सव मनाया जाता है, जो न केवल आनंद का स्रोत होते हैं, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देते हैं। चंद्रमा की किरणों से जुड़ी यह प्रथा न केवल सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभकारी माना गया है।

 

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