उपयोगिता, आवश्यकता और रोजगार देने की क्षमता के आधार पर बढ़ती हैं भाषाएं – प्रो. द्विवेदी


भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) एवं अरुंधती भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र, पी.जी.डी.ए.वी.कॉलेज (सांध्य) के संयुक्त तत्वाधान में ‘भारतीय भाषाएं और भारतीय ज्ञान परम्परा’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।


DeshGaon
विविध Published On :
prof. sanjay dwivedi iimc dg

नई दिल्‍ली। “भाषाएं अपनी उपयोगिता, आवश्यकता और रोजगार देने की क्षमता के आधार पर आगे बढ़ती हैं। अगर आज हमारी भाषाएं सीमित हैं, तो इसकी जिम्मेदारी हम किसी और पर नहीं डाल सकते। भाषाएं और माताएं अपने पुत्र और पुत्रियों से सम्मानित होती हैं। भारतीय भाषाओं के विकास के लिए हमें ऐसे मार्ग तय करने पड़ेंगे, जिनसे भाषाओं की उन्नति हो।”

ये विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) एवं अरुंधती भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र, पी.जी.डी.ए.वी.कॉलेज (सांध्य) के संयुक्त तत्वाधान में ‘भारतीय भाषाएं और भारतीय ज्ञान परम्परा’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान व्यक्त किए।

इस अवसर कॉलेज के प्राचार्य प्रो. रवींद्र कुमार गुप्ता, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से प्रो. उमापति दीक्षित, भारतीय भाषा समिति के सहायक कुलसचिव जे.पी. सिंह एवं संगोष्ठी के समन्वयक प्रो. हरीश अरोड़ा उपस्थित रहे।

प्रो. द्विवेदीने कहा कि आज स्वभाषाओं के सम्‍मान का समय है। हिन्दी और भारतीय भाषाएं सशक्त होकर दुनिया के मंच पर स्थापित हो रही हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिन्दी बोलकर दुनिया के हृदय पर राज कर रहे हैं। सभी भारतीय भाषाएं हमारी अपनी मातृभाषाएं हैं।

संगोष्ठी के दौरान कॉलेज के प्राचार्य प्रो. रवींद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि भारतीय भाषाएं एवं भारतीय ज्ञान परम्परा दोनों में भारतीय शब्द समान है। अगर हमें भारत को जानना-समझना है, तो भारतीय ज्ञान परम्परा को जाने बिना नहीं समझ सकते।

प्रो. उमापति दीक्षित ने कहा कि भारतीय भाषाएं और भारतीय ज्ञान परम्परा गंगा की तरह पवित्र, प्रवाहमान, अक्षुण्ण और अबाध हैं। भाषा भी गंगा की तरह अपने प्रवाह में संस्कृति, सभ्यता और स्वर्णिम अतीत को आत्मसात् करके चलती है।

इस अवसर पर भारतीय भाषा समिति के सहायक कुलसचिव जे.पी. सिंह ने कहा कि भारतीय भाषा समिति भाषाओं के संवर्धन एवं उनके विकास का कार्य करती है। भाषाएं संस्कृति की वाहक हैं और उनका सरंक्षण आवश्यक है।

अतिथि वक्ता के रूप में सत्यवती कालेज, हिंदी विभाग की प्रोफ़ेसर रचना विमल ने कि प्रत्येक देशवासी को अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त एक भारतीय भाषा सीखनी चाहिए।

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पांच सत्रों का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। संगोष्ठी के समन्वयक प्रो. हरीश अरोड़ा ने कहा कि भारत सदैव से ज्ञान के क्षेत्र में श्रेष्ठ रहा है। जब विश्व में लोग लिखना- पढ़ना भी नहीं जानते थे, उस समय भारत में वेदों की रचना हो चुकी थी। यही कारण है कि भारत को विश्वगुरु कहा जाता है।


Related





Exit mobile version