शिवाजी की तलवार से बनी मराठा पहचान: इतिहास की अनकही गाथा


छत्रपति शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की नींव रखी, जिसने महाराष्ट्र और भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। जानिए कैसे शिवाजी की दूरदर्शी सोच और नेतृत्व ने मराठा पहचान को मजबूत किया और स्वराज्य की अवधारणा को जन्म दिया।


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मराठा साम्राज्य, जिसे छत्रपति शिवाजी ने स्थापित किया था, भले ही 1800 के प्रारंभिक वर्षों में समाप्त हो गया हो, लेकिन महाराष्ट्र में मराठाओं का प्रभाव आज भी उतना ही प्रबल है। महाराष्ट्र के गठन (1960) के बाद से अब तक राज्य के 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 मराठा समुदाय से रहे हैं, जिसमें मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी शामिल हैं। राज्य में मराठा समुदाय से जुड़े मुद्दे, जैसे कि आरक्षण की मांग, बार-बार चुनावी बहस का केंद्र बनते रहे हैं। इस विशेष लेख श्रृंखला में, हम मराठाओं के बहुआयामी इतिहास और उनकी सांस्कृतिक विरासत को गहराई से समझने की कोशिश करेंगे।

 

शिवाजी और मराठा साम्राज्य की स्थापना

शिवाजी भोसले ने जब 1674 में महाराष्ट्र के रायगढ़ में छत्रपति का ताज पहना, तब तक वह एक साहसी विजेता के रूप में उभर चुके थे। उन्होंने पश्चिमी तट के कई किलों पर कब्जा किया, ब्रिटिश शासन के तहत आने वाले सूरत जैसे समृद्ध नगरों पर छापे मारे और बीजापुर सल्तनत व दिल्ली के मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़े। उनके ताजपोशी समारोह को लेकर कई विवाद हुए, जिनमें उनकी जाति और वंश को लेकर सवाल उठाए गए। उस समय अन्य मराठा प्रमुख भी थे जिन्होंने शिवाजी के छत्रपति बनने का विरोध किया था।

 

शिवाजी की मृत्यु (1680) के बाद उनका नवगठित राज्य एक बड़े मराठा संघ में परिवर्तित हो गया, जिसमें कई छोटे-छोटे राज्यों ने व्यापक भारतीय उपमहाद्वीप के हिस्सों पर अधिकार कर लिया। इन राज्यों को एकजुट करने वाला तत्व था शिवाजी के शासन का आदर्श और उनकी स्वतंत्रता की भावना।

 

मराठा पहचान और उसकी जटिलता

मराठा संघ की पहचान को लेकर विद्वानों के बीच लंबे समय से बहस चल रही है। इतिहासकार स्टुअर्ट गॉर्डन ने अपने गहन अध्ययन द न्यू कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया: द मराठाज 1600-1818 में बताया है कि ‘मराठाओं’ की कहानी वास्तव में मुस्लिम आक्रमणों के समय से शुरू होती है। 13वीं शताब्दी के अंत में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दक्षिण भारत में पहला हमला हुआ था, जिससे 14वीं शताब्दी तक लगातार संघर्ष चलता रहा।

 

‘मराठा’ शब्द की उत्पत्ति एक क्षेत्रीय पहचान के रूप में हुई थी। प्रारंभ में, यह शब्द केवल उस क्षेत्र के निवासियों के लिए प्रयोग किया जाता था जो वर्तमान महाराष्ट्र में स्थित थे। बाद में, मुस्लिम सल्तनतों के शासन के दौरान, यह शब्द एक नयी अभिजात्य पहचान का प्रतीक बन गया। मराठा परिवार जैसे कि लोहार, सुतार, भंडारी, ठाकुर और धनगर, जो पहले समाज के निचले स्तर पर माने जाते थे, उन्होंने शिवाजी के शासन के तहत एक नई सामूहिक पहचान प्राप्त की।

 

मराठा संघ और पेशवाओं का उदय

शिवाजी के निधन के बाद उनके पोते शाहू के नेतृत्व में मराठा शक्ति को फिर से जीवित किया गया। पेशवा, जो कि मराठा साम्राज्य में प्रधानमंत्री के समान पद था, धीरे-धीरे प्रमुख शक्ति बन गए। शाहू की मृत्यु के बाद, पेशवाओं की सत्ता इतनी बढ़ गई कि शिवाजी के वंशज धीरे-धीरे महत्वहीन हो गए। पेशवाओं ने पुणे को अपनी सत्ता का केंद्र बनाया और मराठा संघ का नेतृत्व किया, जबकि विभिन्न मराठा प्रमुख अपने-अपने क्षेत्रों पर स्वतंत्र रूप से शासन करते रहे।

हालांकि मराठा संघ को अक्सर एक ‘संघीय’ व्यवस्था के रूप में देखा जाता है, विद्वानों के बीच इसे लेकर मतभेद हैं। कुछ विद्वान इसे एक वास्तविक संघ नहीं मानते। उदाहरण के लिए, होल्कर और सिंधिया परिवारों के बीच अक्सर संघर्ष होते रहे। पेशवा और अन्य मराठा प्रमुखों के बीच सत्ता संघर्ष ने संघ को कमजोर कर दिया, जिसका प्रभाव पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) में मराठाओं की हार के रूप में सामने आया।

 

छत्रपति शिवाजी की विरासत और सांस्कृतिक पुनर्जागरण

इतिहासकारों का मानना है कि छत्रपति शिवाजी ने जो ‘स्वराज्य’ की स्थापना की, वह न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक था, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी था। शिवाजी ने स्थानीय समाज की परंपराओं और मान्यताओं को संरक्षित करने का प्रयास किया। उन्होंने केवल राजनीतिक शक्ति ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों का भी विकास किया, जिसमें वाराणसी जैसे स्थानों पर घाट और मंदिरों का निर्माण शामिल है, जो आज भी उनकी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं।

 

शिवाजी की विचारधारा को न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि पूरे भारत में सम्मान मिला। आज भी उन्हें हिंदुत्व समर्थकों और वामपंथी विचारधारा दोनों के द्वारा आदर्श माना जाता है। मराठाओं की यह एकता और उनकी सांस्कृतिक धरोहर ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।

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इस चार-भाग वाली श्रृंखला के माध्यम से, हम मराठा समुदाय की इस अद्वितीय और जटिल यात्रा को समझने का प्रयास करेंगे और जानेंगे कि कैसे छत्रपति शिवाजी की विरासत आज भी महाराष्ट्र और देश की राजनीति, संस्कृति और समाज में जीवित है।

 



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