क्या आप भी 44 या 60 की उम्र में खुद को बूढ़ा महसूस कर रहे हैं? स्टैनफोर्ड के शोध से जानिए क्यों

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक नए अध्ययन से पता चला है कि 44 और 60 साल की उम्र में शरीर में बड़े बदलाव होते हैं, जिससे लोग खुद को सच में बूढ़ा महसूस करने लगते हैं। यह सिर्फ सोच नहीं है, बल्कि शरीर में होने वाले असली बदलावों का नतीजा है।

मध्य-चालीस की उम्र में खुद को “बूढ़ा महसूस करना” केवल कल्पना नहीं हो सकता है। मानव बुढ़ापे पर किए गए एक महत्वपूर्ण नए अध्ययन ने पाया है कि जीवन के दो चरणों में शरीर के आणविक स्तर पर महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं—पहला 44 साल की उम्र में और दूसरा 60 साल की उम्र में।

 

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि ये निष्कर्ष मानव बुढ़ापे के दौरान महत्वपूर्ण परिवर्तनों की जानकारी प्रदान करते हैं। खास बात यह है कि शोध से यह भी पता चलता है कि बीमारी के जोखिम गैर-रैखिक होते हैं, अर्थात उम्र बढ़ने के साथ ये जोखिम आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ते।

 

अध्ययन में क्या पाया गया

इस अध्ययन का शीर्षक है ‘नॉनलाइनर डायनामिक्स ऑफ मल्टी-ओमिक्स प्रोफाइल्स ड्यूरिंग ह्यूमन एजिंग’, जिसे ‘नेचर एजिंग’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें 25 से 75 साल के 108 प्रतिभागियों के कोशिका-स्तरीय डेटा का विश्लेषण किया गया, जो सभी कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका के निवासी थे।

 

अध्ययन के प्रतिभागियों पर औसतन 1.7 साल तक नजर रखी गई। हर तीन से छह महीने में शोधकर्ताओं ने रक्त, मल, त्वचा के स्वाब, मौखिक स्वाब और नासिका स्वाब के नमूने लिए। इन नमूनों का उपयोग प्रोटीन, लिपिड, मल माइक्रोबायोम, त्वचा माइक्रोबायोम आदि के विश्लेषण के लिए किया गया। कुल मिलाकर 5,000 से अधिक नमूनों का विश्लेषण किया गया।

 

शोधकर्ताओं ने पाया कि 44 और 60 की उम्र के आसपास विशिष्ट अणु और जैविक प्रक्रियाओं में बदलाव होते हैं। 60 साल की उम्र में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली और कार्बोहाइड्रेट के टूटने और परिवर्तित होने में बदलाव देखा गया। वहीं, 40 साल की उम्र के आसपास हृदय रोगों और शराब और लिपिड (वसायुक्त यौगिक) के चयापचय से जुड़े बदलाव देखे गए।

 

अध्ययन के परिणाम

बुढ़ापा आमतौर पर कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों के समय के साथ होने वाले अपरिवर्तनीय और धीमे अपक्षय के रूप में समझा जाता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता कमजोर हो जाती है। वैज्ञानिक शोध का उद्देश्य अक्सर यह समझना होता है कि बुढ़ापा कैसे काम करता है और इसे धीमा करने के लिए क्या किया जा सकता है।

 

कोशिका स्तर पर बुढ़ापा उन नुकसानों को दर्शाता है जो शरीर ने समय के साथ झेले हैं, जैसे सूरज की पराबैंगनी किरणों से लेकर पोषण की कमी तक। बुढ़ापे के साथ कोशिकाओं की विभाजित और गुणित होने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे विकास पर असर पड़ता है।

 

हालांकि, बुढ़ापे की गति जीवों में बहुत भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, टर्क्वॉइज़ किलिफिश (एक छोटी मछली जो 14 दिनों में अपना जीवन चक्र पूरा कर सकती है) तेजी से बढ़ती है और जल्दी मर जाती है, जबकि ग्रीनलैंड शार्क (जो 500 साल तक जीवित रह सकती है) धीरे-धीरे बढ़ती है और उसकी उम्र बहुत लंबी होती है।

 

शोधकर्ताओं का मानना है कि उनके निष्कर्ष बुढ़ापे से संबंधित बीमारियों के समय पर निदान और उपचार के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह अध्ययन जीवनकाल को बढ़ाने के बजाय स्वस्थ जीवनकाल (हेल्थस्पैन) बढ़ाने के उद्देश्य से नए चिकित्सीय लक्ष्यों की पहचान करने में मदद कर सकता है।

 

हालांकि, अध्ययन की सीमाओं में प्रतिभागियों की संख्या कम होना और एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित होना शामिल है।

 

यह लेख इंडियन एक्सप्रेस की वेबसाइट पर प्रकाशित पत्रकार ऋषिका सिंह के लेख से साभार अनूदित है। मूल लेख को यहां पढ़ा जा सकता है।

First Published on: August 16, 2024 10:27 AM