इंदौर लोकसभा कैसे हुई कांग्रेस मुक्त! चौंकाने वाली है अक्षय बम की नाम वापसी तक की ये असल कहानी


कहा जाता है कि इंदौर का टिकिट सीधे प्रियंका गांधी के स्तर से हुआ था और उनके एक सहयोगी की इसमें खास भूमिका थी।



राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की प्रयोगशाला बन चुके इंदौर में भाजपा की चुनौती अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है। कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांतिलाल बम ने लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी के तौर पर अपना नाम वापस ले लिया है। इसके बाद वे भाजपा में भी शामिल हो चुके हैं। हालांकि उन्हें पहले ही टक्कर में नहीं माना जा रहा था लेकिन कांग्रेस के पारंपरिक वोटबैंक के चलते उनकी गिनती जरूर हो रही थी लेकिन अब जब कांग्रेस का अधिकृत प्रत्याशी मैदान में नहीं है ऐसे में भाजपा के लिए यह स्थिति वॉक ओवर की है। हालांकि नाम वापसी के बाद भी अब 14 उम्मीदवार हैं लेकिन भाजपा के जीतने के लिए यह मतदान महज औपचारिकता बन गया है।

बताया जाता है कि जब बम ने अपना नाम वापस लिया तो भाजपा ने अन्य उम्मीदवारों से भी संपर्क किया और उनसे नाम वापसी पर चर्चा की। इस दौरान कुल 23 उम्मीदवारों में से 9 ने नाम वापस ले लिये हैं।

कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों ने आरोप लगाया कि उन्हें नहीं पता कि उनकी नाम वापसी कैसे हो गई जबकि उन्होंने इसके लिए आवेदन ही नहीं दिया।  निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व सैनिक धर्मेंद्र सिंह झाला और दिलीप ठक्कर ने बताया, ‘हम दोनों के नाम को फर्जी रूप से साइन करके वापस लिया गया है। दोनों ने कहा कि हमने वीडियोग्राफी की मांग की है।’ इन दोनों ने ही कलेक्ट्रोरेट में धरना भी दिया। एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी लीलाधर चौहान ने कहा, ‘मैंने तो फॉर्म भी नहीं भरा है। यह कैसे हो गया? यह जानकारी आपको किसने दी? चौहान ने कहा कि वे तो वहां गए ही नहीं फिर ये कैसे हो गया।

अक्षय बम के भाजपा में जाने के बाद उन्हें पार्टी में उपर उठाने वाले नेता परेशान हैं, वैसे तो बम दिग्विजय सिंह के सर्मथक माने जाते हैं लेकिन प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने उन्हें पार्टी के उच्च पदाधिकारियों से मिलवाया था और अंत में टिकिट भी करवाया। हालांकि इस दौरान बम को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के निजी सहयोगियों के खूब चक्कर काटने पड़े। बम के टिकिट होने के बाद इंदौर कांग्रेस में फूट भी हुई और क्योंकि यह टिकिट जीतू पटवारी ने करवाया था तो उनसे कई नेता नाराज़ भी हुए और उन्होंने चुनावों में अब तक हुए प्रचार में कांग्रेस के लिए काम भी नहीं किया।

जब बम की नाम वापसी हुई, भाजपा ने ऑपरेशन सूरत-2 शुरू किया। इस प्लान के तहत, गुजरात की सूरत लोकसभा सीट के बचे हुए उम्मीदवारों के नाम वापस लिए जाने का प्रस्ताव बनाया गया था, ताकि इंदौर में निर्विरोध जीत हासिल की जा सके। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में दोपहर 3 बजे तक माथापच्ची चलती रही, लेकिन यह प्रस्ताव लागू नहीं हो पाया। 23 में से केवल 9 उम्मीदवारों ने नाम वापस लिया। अब इंदौर लोकसभा सीट पर भाजपा के शंकर लालवानी सहित 14 उम्मीदवार मैदान में हैं।

वहीं, निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व सैनिक धर्मेंद्र सिंह झाला और दिलीप ठक्कर ने बताया, ‘हम दोनों के नाम को फर्जी रूप से साइन करके वापस लिया गया है। हमने वीडियोग्राफी की मांग की है।’ एक और निर्दलीय प्रत्याशी लीलाधर चौहान ने कहा, ‘मैंने तो फॉर्म भी नहीं भरा है। यह कैसे हो गया? यह जानकारी आपको किसने दी? मैंने तो गया ही नहीं।’ ठक्कर और झाला ने कलेक्टर कार्यालय में धरना भी दिया।

कांग्रेस से ज्यादा जनता पर मनोवैज्ञानिक हमला

अक्षय बम के जाने से कांग्रेस को खासा नुकसान पहुंचा है। इंदौर के पत्रकार संतोष पाटीदार कहते हैं कि बम कहीं भी टक्कर में नहीं थे लेकिन भाजपा ने ऐसा करके लोगों को भाजपा की मजबूती की एक तय स्थिति दिखाई है।

पाटीदार मानते हैं कि भाजपा इस समय अपने विरोधियों और खुद जनता को मनोवैज्ञानिक तौर पर हराना चाहती है। वे कहते हैं कि जनता को भी यह सोचने पर मजबूर किया जा रहा है कि अब उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है। वहीं इंदौर शहर में भाजपा की मुख़ालफत करने वालों के लिए हर तरह से मुश्किल स्थिति दिखाई जा रही है।

कांग्रेस पार्टी पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि जिन राज्यों में पार्टी की स्थिति बहुत मजबूत नहीं है वहां टिकिट बंटवारे में सीईसी में बहुत मंथन नहीं होता है। कांग्रेस के लिए उप्र और मप्र ऐसे ही दो राज्य हैं जहां के उम्मीदवारों पर समय खर्च नहीं किया गया। इंदौर में भी ऐसा ही हुआ।

एक कांग्रेसी सूत्र के मुताबिक इस दौरान बड़े फैसले आलाकमान स्तर या उनके करीबी लोग लेते हैं। ये लोग प्रत्याशियों का चयन किसी राय मश्विरे से नहीं बल्कि अपने निजी सहयोगियों से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर करते हैं। ज़ाहिर है कि प्रत्याशी बनने की चाह रखने वाले नेता इस दौरान निजी सहयोगियों की खूब खातिरदारी करते हैं। इसी तरह का फीडबैक अक्सर विवादों में रहने वाले प्रियंका गांधी के एक करीबी सहयोगी ने अक्षय बम के बारे में दिया था।

इंदौर में बम का राजनीतिक कद न के बराबर था लेकिन उनके पास चुनाव में खर्च करने के लिए संसाधन थे और इन्हीं को देखते हुए उनके नाम पर विचार हुआ।  जिसके बाद उनका टिकिट तय हुआ और इसे सीधे प्रियंका गांधी के स्तर से तय किया गया। ऐसे में इसके बदलने की संभावना न के बराबर थी। हालांकि कांग्रेस के कई नेता जिन्होंने टिकिट की मांग की थी उन्होंने कहा कि कांग्रेस पैसे के आधार पर टिकिट देती है।

बम प्रियंका गांधी के करीबी लोगों तक काफी समय से पहुंच रहे थे। जिसके बाद वे कई बार दिल्ली में इन सहयोगियों से मिलते रहे थे। बताया जाता है कि इन्हीं सहयोगियों ने उनकी प्रियंका गांधी से भी मुलाकात करवाई थी। अक्षय बम इसके पहले इंदौर विधानसभा की चार नंबर सीट से टिकिट मांग चुके थे लेकिन उस समय उन्हें टिकिट नहीं दिया गया। इसके बावजूद बम लगातार सक्रिय रहे। वे इंदौर में कांग्रेस के सभी कार्यक्रमों में सक्रिय रहे। राहुल और प्रियंका की सभाओं और यात्राओं में भी उन्होंने व्यवस्थाएं देखीं। इस तरह वे गांधी परिवार की नज़रों में चढ़ते रहे और उनके निजी सहयोगियों के संपर्क में आ गए।

पहले से तय था जाएंगे बम…

इंदौर में भाजपा सूत्र बताते हैं कि बम को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा में शामिल करने का प्लान तो पहले ही बना लिया गया था। इसके पीछे कैलाश विजयवर्गीय का दिमाग था जिन्होंने पूरे धैर्य के साथ इस योजना को अंजाम दिया। जानकारी की मानें तो कांग्रेस सर्मथकों और भाजपा के खिलाफ जा रहे मतदाताओं को एक बड़ा मनोवैज्ञानिक झटका देने की ये योजना पहले से थी और नाम वापसी ऐसे समय पर की गई है जब कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। इसके अलावा उन लोगों की भी नाम वापसी करवाई जा रही है। कांग्रेस की ओर से ही निर्दलीय पर्चा भरने वाले लीलाधर चौहान ने भी अपना नाम वापस ले लिया है। वहीं कांग्रेस के एक अन्य नेता मोती सिंह पटेल का  नामांकन तो 26 अप्रैल को ही रद्द हो गया था।

विधानसभा चुनाव में इस बार इंदौर में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो चुका है ऐसे में अब लोकसभा चुनाव में  भाजपा की कोशिश है कि इस तरह कांग्रेस को इंदौर से पूरी तरह साफ कर दिया जाए। ऐसे में इंदौर से आने वाले प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी की छवि पर बड़ा हमला होगा। वहीं कांग्रेस के नेताओं से जनता का भरोसा भी खत्म हो जाएगा।

बम पर भाजपा को भी नहीं था भरोसा!

इस मामले को करीब से देखने वाले एक पत्रकार ने गोपनीयता की अपील पर बताया कि अक्षय बम क्योंकि कांग्रेस के साथ विश्वासघात कर रहे थे ऐसे में उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। यही वजह रही कि उन पर हर तरह का दबाव बनाया जा रहा था। अक्षय बम का कारोबार-व्यापार शैक्षणिक संस्थानों और जमीन जायदाद से जुड़ा है और ऐसे में व्यापार को संभावित नुकसान का डर था। बम के शैक्षणिक संस्थानों में कमियां खोजने का काम कुछ दिनों पहले ही शुरू हो चुका था और बताया जाता है कि यहां एक मामला तैयार भी हो रहा था। उन पर तीन दिन पहले ही एक 17 साल पुराने हुए मारपीट के मामले में धारा 307 बढ़ाने की तैयारी कर ली गई है।

इसके अलावा एक अन्य पुराने मामले में जो एक महिला से संबंधित था उसमें भी बम के खिलाफ फाइल नए सिरे से खोली जा सकती थी।  कहा जा रहा है कि ये सीधे इशारे थे कि उनके पास कांग्रेस को धोखा देकर भाजपा में आने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

वहीं जब सोमवार को अक्षय ने नाम वापस लिया तो डर था कि कांग्रेसी उनके खिलाफ तीखा प्रदर्शन न करें, ऐसे में इंदौर से भाजपा के बाहुबली छवि वाले विधायक रमेश मेंदोला और उनकी टीम अक्षय के साथ थी। मेंदोला, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के सबसे पुराने और सबसे करीबी साथी रहे हैं।

अक्षय बम को जानिये

अक्षय कांति बम इंदौर में रहने वाले 44 वर्षीय कारोबारी हैं। वे इंदौर लॉ इंस्टिट्यूट सहित कुल तीन शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं और खुद को शिक्षा के क्षेत्र में पायनियर यानी अग्रणी बताते हैं।  जैन परिवार से आने वाले बम ने डेली कॉलेज में अपनी पढ़ाई की थी और बाद में उन्होंने मुंबई से ग्रेजुएशन कर, पिलानी से मैनेजमेंट में पीएचडी की है। बम के पास करीब 78 करोड़ रुपए की संपत्ति है। पिछले दिनों अपने चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्ति के बारे में तमाम जानकारी दी और बताया था वे 14 लाख रुपए की रोलेक्स की घड़ी भी पहनते हैं। उनकी इस रईसी की खूब चर्चा हुई थी।

 


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