खेती, पर्यावरण और चुनाव! महंगाई के चलते किसान नरवाई जलाकर खराब कर रहे एशिया में सबसे उपजाऊ अपनी मिट्टी


कृषि प्रधान क्षेत्र नरसिंहपुर में किसान महंगाई से बचने के लिए अपने खेतों में नरवाई जल रहे हैं। क्योंकि मजदूरी महंगी हो चुकी है और खुद मजदूरों का जीवन भी इस महंगाई के चलते आसान नहीं।



रबी सीजन में सैकड़ो हेक्टेयर गेहूं की रकबे कटाई गहाई के लिए हार्वेस्टर चल रहे हैं। हार्वेस्टर से कटाई के बाद किसान खेत में पड़े अवशेष को आग के हवाले कर रहे हैं जिससे धूं-धूं जल रहे नरवाई से खेत की उम्दा उपजाऊ जमीन बर्बाद हो रही है। हजारों पशुओं की खुराक का भूसा जल कर राख में तब्दील हो रहा है। किसान कहते हैं कि उनका नरवाई जलाना,महंगाई की वजह से है क्योंकि सरकार खेती किसानी में महंगाई कम करने में अक्षम रहीं हैं। इस तरह यह मुद्दा खेती किसानी, पर्यावरण और चुनाव सभी से जुड़ता नजर आता है।

अप्रैल की पहली पखवाड़े में खेतीबाड़ी वाले इलाके नरसिंहपुर जिले में इस समय गेहूं और चने की कटाई हो रही है। गेहूं की कटाई के लिए हर बार की तरह इस बार भी पंजाब, हरियाणा से लगभग 100 से अधिक हार्वेस्टर जिले के विभिन्न स्थानों पर गेहूं की कटाई कर रहे हैं। बड़े रकबे वाले किसान हार्वेस्टर से कटाई करवा रहे हैं। किसान अपने खेतों में करीब 1400 से 1600 रु प्रति घंटे की दर पर हार्वेस्टिंग करवा रहे हैं। कई एकड़ की गेहूं की हार्वेस्टिंग यानि कटाई कुछ घंटे में हो जाती है। कटाई के तुरंत बाद खेत में बड़े पैमाने पर गेहूं की डंठलों, तनों का अवशेष जिससे भूसा निकलता है उसे खेत में ही आग के हवाले कर दिया जा रहा है। सैकड़ों खेतों की उम्दा किस्म की उपजाऊ जमीन हर साल आग से प्रभावित होकर बर्बाद हो रही है ।

इस मसले पर कृषि वैज्ञानिक डॉ. एस आर शर्मा कहते हैं कि किसानों को बार-बार यह सलाह दी जाती है कि नरवाई में आग नहीं लगाएं इससे खेतों की मिट्टी के जीवाणु जलकर नष्ट हो जाते हैं और खेत की मिट्टी गर्म होकर कठोर हो जाती है। डॉ. शर्मा उदाहरण के जरिए समझाते हैं कि जिस तरह जिस तरह मिट्टी से बनने वाली ईंट आग से ही कठोर होती है उसी तरह खेत की मिट्टी कठोर हो जाती है जिसका असर उपजाऊ, उर्वरा शक्ति पर पड़ता है इसलिए किसानों को खेत में खड़ी नवाई पर आग नहीं लगना चाहिए।

पशुओं का भूसा मिलना भी मुश्किल: 

एक कृषि मित्र भागचंद कोरी कहते हैं कि नरवाई जलने के बाद भूसा भी नहीं मिलता जबकि जिले में पशुधन अधिक है। गेहूं के भूसे की मांग रहती है। खास कर दुधारू पशुओं के लिए लेकिन कई किसान नरवाई जलाकर यह भूसा नष्ट कर देते हैं ।

एशिया की सबसे उपजाऊ मिट्टी में को कर रहे खराब…

प्रगतिशील किसान बाबू भाई पटेल कहते हैं कि नरसिंहपुर जिले के कई इलाके की जमीन एशिया की सबसे अधिक उपजाऊ जमीन है। कलमेटा. हार की जमीन एशिया महाद्वीप में प्रसिद्ध सबसे उपजाऊ है जिसकी मिट्टी में जीवाणु होते हैं। इसी खासियत वाले जिले में किसानों द्वारा नरवाई जलाना दुर्भाग्य जनक है।

वे कहते हैं कि इसलिए 2 साल पहले प्रशासन ने प्रतिबंधात्मक आदेश निषेधाज्ञा धारा 144 के तहत नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगाया था और किसानों पर जुर्माना अधिरोपित किया था जिससे कुछ हद तक किसान ऐसा करने से रुक रहे थे लेकिन प्रशासन की ढील और किसानों में जागरूकता के अभाव में यह स्थिति फिर जोर पकड़ने लगी।

महंगाई से नुकसान

इसी क्षेत्र के ही एक किसान नारायण पटेल कहते हैं की मजदूरी बढ़ गई है ।300, 400 दिन की मजदूरी चल रही है। हजार डेढ़ हजार रु सिर्फ नरवाई हटवाने में खर्च हों या 2 – 4 हजार रु भूसा निकालने में खर्च हों तो इससे अच्छा यही कि नरवाई में आग लगा दी जाए, वैसे ही खेती घाटे का सौदा है।

मजदूरों की परेशानी

कलमेटा हार गांव के ही एक खेेत में मजदूरी कर रहे खेतिहर मजदूर हरी सिंह बताते हैं कि मजदूरी महंगी हुई है लेकिन इसका कारण जीवन यापन करने में आने वाली दूसरी मुश्किलें हैं। हरि सिंह महंगाई  को लेकर कहते हैं कि सरकार अनाज तो दे देती है लेकिन पकाने के लिए तेल, गैस सभी कुछ महंगा है। इसके बाद पेट्रोल, बस किराया का हाल भी ऐसा ही है फिर मजदूरों की मंजदूरी क्यों न बढ़े! हरी सिंह कहते हैं कि वे भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं इसीलिए निजी स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं लेकिन वहां भी महंगी फीस एक बड़ी परेशानी है।

खेती-बाड़ी के कई जानकार और कृषि वैज्ञानिक डॉ एसआर शर्मा, डा.आशुतोष शर्मा एवं उपसंचालक कृषि उमेश कुमार कटहरे ने किसानों से कहा है की नरवाई ना जलाएं इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटती है।

चुनाव की बात…

इलाके में चुनावी शोर शुरू हो चुका है। नर्मदा नदी के किनारे बसा नरसिंहपुर एक कृषि प्रधान जिला है और यहां की एक बड़ी आबादी खेती किसानी और मजदूरी से जुड़ी हुई है। ऐसे में किसानों की मांग अहम हैं।

इसी इलाके के एक अन्य किसान कहते हैं कि फसलों के सही दाम नहीं मिलते ऐसे में किसान अपने खेतों में ज्यादा से ज्यादा उपज चाहते हैं और यही वजह है कि खेतों में पेस्टिसाइड का उपयोग भरपूर किया जाता है। ऐसे में मिट्टी को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचता है। किसानों के मुताबिक उनकी आमदनी में कोई इज़ाफा नहीं हुआ है। ऐसे में पर्यावरण का ध्यान रखते हुए खेती करना मुश्किल है। हालांकि ये किसान जानते हैं कि पर्यावरण पर इसका नुकसान बड़े पैमाने पर दिखाई देगा लेकिन उनके मुताबिक इसके जिम्मेदार अकेले वे नहीं सरकारें भी हैं।


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