इंदौर। पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर पर पिछले दिनों सरकारी काम में बाधा डालने और डकैती के आरोपों पर पुलिस में आवेदन देने वाले डिप्टी रेंजर रामसुरेश दुबे का तबादला हो गया है। उन्हें महू से मानपुर रेंज भेजा जा रहा है हालांकि वे जाने के तैयार नहीं है। उन्होंने हाईकोर्ट में स्टे के लिए अपील की है।
इस पूरे मामले ने मंत्रियों की कार्यप्रणाली पर तो सवाल उठाया ही है साथ ही वन क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण के बारे में भी वे बातें सार्वजनिक कर दीं हैं जो अब तक दबी ज़ुबान में की जाती थीं। रामसुरेश दुबे बताते हैं कि बड़गौंदा वन्य क्षेत्र में करीब सत्तर बीघा से अधिक जमीन पर एक राजनीतिक वर्चस्व वाले परिवार का कब्जा है। यह कब्जा वर्षों से चला आ रहा है लेकिन न तो वन विभाग के अधिकारी इस पर कुछ कह सके हैं और अगर कभी कहा भी होगा तो नेताओं मंत्रियों ने उन्हें चुप करा दिया होगा। बिल्कुल वैसे ही जैसे उन्हें चुप कराया जा रहा है।
दुबे अपनी बात को और भी स्पष्ट करते हैं भाजपा के मंडल अध्यक्ष मनोज पाटीदार का नाम लेते हैं। मनोज पाटीदार के ही नाम पर अवैध उत्खनन का मामला दर्ज किया गया था। मंत्री के साथ वाहन छुड़ाने वाले लोगों की सूची में भी वे आए थे। दुबे ने अपने आवेदन में उनका नाम भी लिखा था और वन विभाग ने अपने दूसरे आवेदन में भी उन्हें आरोपी बनाया है। मनोज के पिता अशोक पाटीदार भी स्थानीय भाजपा में रुतबेदार थे और उन्हें खेती में उनके प्रयोगों के लिये जाना जाता था। पाटीदार परिवार के पास बड़गौंदा क्षेत्र में काफ़ी जमीनें हैं।
इस आरोप पर मनोज पाटीदार कहते हैं कि
उनके पास तीस साल से ज़मीनें हैं और वे इन पर खेती कर रहे हैं। ऐसे में अब तक क्यों नहीं वन विभाग ने उनकी जमीनों पर अधिकार जताया। यह सब केवल मंत्री महोदया का नाम खराब करने के लिये किया जा रहा है।
हालांकि मंगलवार 19 जनवरी को इंदौर के कई अख़बारों में डिप्टी रेंजर के बारे में खबरें प्रकाशित हुईं हैं। इनके मुताबिक जिस जमीन पर खनन को लेकर विवाद हुआ था उसका सर्वे किया जाना था लेकिन यह सर्वे अब तक बाकी है। यहां राजस्व और वन विभाग का सर्वे किया जाना है। वन विभाग से मिल रहीं ख़बरों के मुताबिक अगर सर्वे का काम सही तरीके से किया गया तो वन विभाग की बड़ी जमीन पर कब्जे की जानकारी निकलकर सामने आ सकती है।
नईदुनिया की खबर के मुताबिक
अधिकारी चार दिनों से सर्वे के लिये पहुंच रहे हैं लेकिन सर्वे पूरा नहीं हुआ है। अधिकारियों पर लगातार राजनीतिक दबाव बढ़ता जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक सड़क का निर्माण वन क्षेत्र में होना पाया गया है और अधिकारी भी इसकी पुष्टी कर चुके हैं लेकिन कक्ष क्रमांक 66 के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है।
इस विषय पर वन विभाग के महू के एसडीओ आरके लहरी बताते हैं कि सर्वे का काम जल्द ही पूरा हो जाएगा। उनके मुताबिक अब तक उन्हें डिप्टी रेंजर रामसुरेश दुबे के तबादले के आदेश नहीं मिले हैं। लहरी के मुताबिक इस बारे में फैसला उच्चस्तर से हो रहा है।
इसी मामले में दैनिक भास्कर अख़बार ने भी ख़बर प्रकाशित की है। जिसमें डिप्टी रेंजर के तबादले पर मंत्री उषा ठाकुर का बयान भी लिखा गया है। ख़बर में प्रकाशित मंत्री के बयान के मुताबिक…
किसी को भगाना हमारा स्वभाव नहीं है। वे नहीं तो कोई और उनके स्थान पर काम करेगा। ग्रामीण कई दिनों से बोल रहे थे कि कच्ची सड़क है, उसका लेवल करा दो। खराब सड़क के कारण गिरते भी थे। इस पर मंडल अध्यक्ष मनोज पाटीदार ने खुद के जेसीबी ट्रैक्टर से अपने ही खेत की मिट्टी निकालकर सड़क लेवल कर दी।
मंत्री महोदया को ऐसा नहीं करना चाहिये था…
डिप्टी रेंजर के मुताबिक उन पर अपने आवेदन लेने के कई तरह के दबाव आए और अब तक आ रहे हैं। उनसे कहा जा रहा है कि वे अपना बयान वापस ले लें लेकिन दुबे के मुताबिक वे ऐसा नहीं कर सकते। वे आज भी अप नी बात पर कायम हैं कि मंत्री उषा ठाकुर अपने सर्मथकों के साथ आईं और वन कार्यालय में रखी जेसीबी मशीन और दूसरे वाहन छुड़ाकर ले गईं। दुबे कहते हैं कि मंत्री महोदया को ऐसा कृत्य नहीं करना चाहिये था वे चाहती तो हमारे विभाग के अधिकारियों से बात कर सकती थीं।
रामसुरेश दुबे ने 10 जनवरी को मंत्री उषा ठाकुर के खिलाफ़ आवेदन दिया था इसके बाद खासा विवाद हुआ और वन विभाग ने 12 जनवरी को एक अन्य आवेदन बड़गौंदा थाने में दिया। इस आवेदन में मंत्री उषा ठाकुर का नाम हटा लिया गया था। हालांकि इस आवेदन के बाद भी पुलिस ने इस मामले में कोई खास कार्रवाई नहीं की है। वहीं दुबे के स्थान पर जिन दूसरे डिप्टी रेंजर को चार्ज दिया गया है उन पर पहले से वन जमीनों पर अतिक्रमण करवाने के एक मामले में जांच चल रही है। उनकी शिकायत महू में पदस्थ पिछले रेंजर ने की थी।
दुबे ने यहां अपने खिलाफ हुई पुरानी शिकायतों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि उनके प्रमोशन के संबंध में जो भी शिकायतें हुईं हैं उनके बारे में लोगों को सोचना चाहिये क्योंकि प्रमोशन उन्होंने अपने हस्ताक्षर से नहीं लिया है बल्कि शासन ने ही दिया है। इससे पहले तमाम दस्तावेजों को देखा परखा गया ही होगा।