धार में आयोजित सांसद खेल महोत्सव के दौरान खिलाड़ियों द्वारा मंच पर किए गए विरोध ने बीते दिनों जिले की राजनीति और प्रशासनिक हलकों में चर्चा को तेज कर दिया। मंच पर टी-शर्ट उतारकर विरोध और ट्रॉफियां लौटाने के दृश्य सामने आने के बाद यह मामला तेजी से सुर्खियों में आ गया। हालांकि, पूरे घटनाक्रम को तथ्यों के साथ देखा जाए तो यह विवाद किसी बड़े निर्णय या घोटाले से नहीं, बल्कि नकद पुरस्कार को लेकर बनी अपेक्षाओं और आयोजन की तय शर्तों के बीच हुई गलतफहमी से जुड़ा नजर आता है।
जानकारी के अनुसार, सांसद खेल महोत्सव का आयोजन युवाओं को खेलों से जोड़ने और प्रतिभाओं को मंच देने के उद्देश्य से किया गया था। आयोजन की पूर्व निर्धारित रूपरेखा में नकद पुरस्कार देने का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं था। विजेता खिलाड़ियों को मेडल, ट्रॉफी और प्रमाण पत्र दिए जाने थे। यही व्यवस्था आयोजन से पहले तय की गई थी।
हालांकि, प्रतियोगिता में भाग लेने वाले कुछ खिलाड़ियों को यह उम्मीद थी कि उन्हें नकद पुरस्कार भी मिलेगा। इसकी वजह यह रही कि अन्य जिलों में आयोजित कुछ खेल आयोजनों में नकद राशि दी गई थी। इसी तुलना के आधार पर खिलाड़ियों ने यह अपेक्षा बना ली। जब पुरस्कार वितरण के समय नकद राशि नहीं दी गई, तो कुछ खिलाड़ियों ने मंच पर असंतोष जताया और विरोध स्वरूप टी-शर्ट उतारकर ट्रॉफी लेने से इनकार कर दिया।
इस घटनाक्रम के बाद सोशल मीडिया और मीडिया रिपोर्ट्स में विरोध के दृश्य तेजी से वायरल हुए। कई खबरों में मंच पर हुए प्रदर्शन को प्रमुखता से दिखाया गया, जिससे यह मामला और बड़ा नजर आने लगा। इसी बीच, दैनिक भास्कर की खबर में यह भी उल्लेख आया कि धार–महू लोकसभा क्षेत्र से सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री सावित्री ठाकुर ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कहा कि यह एक छोटा विषय था, लेकिन इसे अनावश्यक रूप से तूल दिया गया। उन्होंने यह आशंका भी जताई कि इस तरह के मामलों को बढ़ाकर उन्हें बदनाम करने की साजिश हो सकती है, जबकि महोत्सव में नकद पुरस्कार का प्रावधान ही नहीं था।
सूत्रों और जानकारों का मानना है कि यह पूरा विवाद आयोजन के स्तर पर संवाद की कमी का परिणाम रहा। यदि प्रतियोगिता से पहले ही पुरस्कार प्रणाली को लेकर खिलाड़ियों को स्पष्ट जानकारी दी जाती, तो संभवतः यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती। यह भी स्पष्ट है कि नकद पुरस्कार न देना किसी सांसद या मंत्री का व्यक्तिगत निर्णय नहीं था, बल्कि आयोजन की तय व्यवस्था के अनुसार ही पुरस्कार वितरण किया गया।
निष्कर्ष रूप में देखा जाए तो सांसद खेल महोत्सव के दौरान हुआ विरोध किसी बड़े राजनीतिक या नीतिगत विवाद से जुड़ा नहीं था। खिलाड़ियों की नकद पुरस्कार की मांग उनकी अपेक्षा के तौर पर समझी जा सकती है, लेकिन चूंकि यह आयोजन की शर्तों में शामिल नहीं थी, इसलिए यह मामला एक प्रशासनिक और प्रबंधन संबंधी चूक के रूप में सामने आया। भविष्य में ऐसे आयोजनों में नियमों और पुरस्कारों को लेकर पहले से स्पष्ट संवाद आवश्यक है, ताकि खेल भावना और आयोजन का उद्देश्य प्रभावित न हो।

























