इंदौर। आलू उत्पादक किसान इन दिनों खासे परेशान हैं। उनकी फसल तो शानदार आई है लेकिन फिलहाल आलू के दाम इतने कम हैं कि मुनाफा तो दूर उनकी लागत भी डूब रही है। राशन के उपयोग आने वाला यह आलू ज़्यादा दिनों तक रखा भी नहीं जा सकता और किसान कैसे भी इसे बेचने की तैयारी में हैं। उन्हें डर है कि अगर उन्होंने देरी की तो आने वाले दिनों में दाम और भी गिर सकते हैं।
किसानों के सामने यह मुश्किल केंद्र सरकार के भूटान से आलू आयात करने वाले फैसले से आई है। इस विदेशी आलू ने मालवा क्षेत्र के आलू की आमद बिगाड़ दी है। मालवी आलू आना शुरु हो चुका है लेकिन दाम में लगातार गिरावट के बाद अब यह आलू केवल 10-12 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है।
कारोबारियों को पहले ही इसकी खबर थी ऐसे में उन्होंने किसानों से आधे से भी कम दाम में आलू लेना शुरु कर दिया था। करीब दो-तीन हफ्ते पहले तक जिस आलू के दाम चालीस से पैंतालीस रुपये प्रति किलोग्राम थे वही दाम अब केवल 10-12 तक आ गए हैं। हफ़्ते भर पहले तक आलू 16-20 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रहा था।
मालवा क्षेत्र के आलू उत्पादक किसान बताते हैं कि इस बार उन्हें बड़ा नुकसान होगा। इस बार आलू की बुआई में लागत पहले से कहीं ज्य़ादा रही है। किसानों ने पंजाब से आलू का जो बीज लिया था वह करीब 30-40 रुपये किलो का था। एक बीघे खेत में करीब साढ़े सात क्लिंटल तक बीज तक एक बीघे में लगता है और एक बीघे से 60 किलो वजन के करीब 50 कट्टे तक आलू निकलते है।
मालवा के इन किसानों को एक बीघा खेत में आलू की बुआई से लेकर कटाई तक कितनी लागत आती है और फिलहाल उन्हें क्या दाम मिल रहे हैं इस गणित को इस तरह से समझिए।
बीज का औसत दाम 30 रुपये प्रतिकिलो
एक बीघे में 750 किलो बीज की कीमतः 22500 रुपये
तीन बोरी खाद 3300 रुपये
बुआई के समय हकाई-जुताई 1500 रुपये
बुआई में ट्रैक्टर किराया- 1000 रुपये
एक महीने का होने पर आलू के पौधे पर गार चढ़ाई- 800 रुपये
दो दवा के स्प्रे- 2500 रुपये
बिजली बिल और पानी घुमाने की मज़दूरी- 4000 रुपये
फसल निकालने की मजदूरी- 3000 रुपये
हकाई के लिए ट्रैक्टर- 800 रुपये
एक बीघे के लिए बारदान- 700 रुपये
हम्माली- 7 रुपये कट्टे से करीब 400 रुपये
मंडी ले जाने का किराया- 25 रुपये प्रति कट्टा तकरीबन 1200 रुपये
इस प्रक्रिया के बाद एक बीघा की कुल लागत करीब 42000 रुपये के आसपास आ रही है।
मंडी में इस समय आलू के दाम करीब 10-12 रुपये प्रति किलो तक हैं। ऐसे में किसान के एक बीघा खेत से निकलने वाली औसत फसल करीब 30 क्विटंल तक होती है। ऐसे में किसान यदि अपनी फसल करीब 12 रुपये में भी बेच रहा है तो एक क्विंंटल पर 36000 रुपये मिलेंगे यानी लागत से करीब 6000 रुपये कम।
ऐसे में समझना मुश्किल नहीं कि आलू के आयात के एक फैसले ने किसानों की कमर किस तरह तोड़ दी है। किसानों को हर कीमत पर आलू बेचना ही होगा क्योंकि राशन का आलू रखा नहीं जा सकता वहीं अगर संभावना के विपरीत थोड़ा बहुत दाम अधिक मिल भी गया तो भी लागत निकलना मुश्किल ही होगा।
इंदौर सब्जी मंडी की फर्म किशोरीलाल एंड संस इस बारे में कहते हैं…
तीन राज्यों यूपी, पंजाब, मध्यप्रदेश के किसानों के आलू का उत्पादन एक साथ हो गया है इस कारण आवक अधिक होने है भाव में गिरावट आ रही है, साथ ही बाहरी मांग में भी कमी हो रही है। ऐसे में किसानों को उचित भाव मिलना मुश्किल है।
किसानों को अपना घाटा पूरा करने के लिए अगली फसल लगानी ज़रूरी होगी और ऐसे में आलू को बाज़ार में बेचकर ही उनके पास नकदी आएगी। इस सूरत में वे आलू बाजार में लेकर जा रहे हैं। इंदौर मंडी में इन दिनों करीब पच्चीस हजार कट्टे आलू प्रतिदिन रहा है।