सुप्रीम कोर्ट में ग्रीन क्रेडिट नियमों को चुनौती: पर्यावरण संरक्षण को लेकर उठे सवाल


यह मामला पर्यावरण संरक्षण और समुदायों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए अहम साबित हो सकता है।


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भारत के सर्वोच्च न्यायालय में ग्रीन क्रेडिट नियमों को चुनौती देने वाली एक महत्वपूर्ण याचिका दाखिल की गई है। ‘पीपुल्स फॉर अरावली’ और ‘रेनबो वॉरियर्स’ नामक दो प्रमुख पर्यावरण समूहों ने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में किए गए संशोधनों के खिलाफ रिट याचिका (सिविल) संख्या 1164/2023 में हस्तक्षेप आवेदन प्रस्तुत किया है। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अनीता शेनॉय द्वारा पैरवी की जा रही है, जबकि रश्मि नंदकुमार एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड हैं।

 

क्या है ग्रीन क्रेडिट नियम?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने 12 अक्टूबर 2023 को ग्रीन क्रेडिट नियमों को अधिसूचित किया था। इसका उद्देश्य पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करना और बाजार आधारित तंत्र के माध्यम से व्यापार योग्य ‘ग्रीन क्रेडिट’ उत्पन्न करना है। इसके तहत, वृक्षारोपण और अन्य पर्यावरणीय गतिविधियों के बदले ग्रीन क्रेडिट अर्जित किए जा सकते हैं। मंत्रालय ने 22 फरवरी 2024 को एक और अधिसूचना जारी की, जिसमें वृक्षारोपण संबंधी ग्रीन क्रेडिट की गणना की कार्यप्रणाली स्पष्ट की गई थी।

 

याचिकाकर्ताओं की मुख्य आपत्तियां

‘पीपुल्स फॉर अरावली’ की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने बताया कि ग्रीन क्रेडिट नियमों के वर्तमान स्वरूप में गंभीर खामियां हैं। उन्होंने कहा, “नियमों में पेड़ों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी स्पष्ट नहीं है। नियम केवल वृक्षारोपण तक सीमित हैं, जबकि उनके संरक्षण की कोई जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की गई है। इसके अलावा, बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के प्रति हेक्टेयर 1100 वृक्ष लगाने की अनुमति दी गई है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नुकसानदायक हो सकता है।”

उनका यह भी कहना है कि नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों, जैसे खुले वन, झाड़ीदार भूमि, बंजर भूमि और जलग्रहण क्षेत्रों में भी वृक्षारोपण की अनुमति दी गई है, जिससे जैव विविधता को खतरा हो सकता है। याचिका में वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006 का उल्लंघन होने की आशंका भी जताई गई है, क्योंकि इन नियमों के तहत प्रस्तावित वृक्षारोपण से अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

 

रेनबो वॉरियर्स की आपत्ति

रेनबो वॉरियर्स के महासचिव अभिजीत प्रभुदेसाई ने कहा, “हमने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि पर्यावरण मंत्रालय को यह निर्देश दिया जाए कि वृक्षारोपण करने वाली संस्थाएं लगाए गए पेड़ों के जीवित रहने की गारंटी दें। इसके अलावा, ग्रीन क्रेडिट तभी दिए जाएं जब विशेषज्ञ संस्थान यह प्रमाणित करें कि लगाए गए पेड़ एक निर्धारित अवधि तक जीवित हैं।”

उन्होंने यह भी मांग की कि प्रति हेक्टेयर 1100 पेड़ लगाने की बाध्यता को हटाया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों में वृक्षारोपण न हो। साथ ही, वन अधिकार अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त वन अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो।

 

सरकार की प्रतिक्रिया

पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है कि वे याचिका में उठाए गए मुद्दों पर विचार करेंगे और ग्रीन क्रेडिट नियमों में सुधार के सुझावों का संज्ञान लेंगे। मंत्रालय का कहना है कि उनका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है, लेकिन नियमों में किसी भी तरह की खामी होने पर उस पर विचार किया जाएगा।

यह मामला पर्यावरण संरक्षण और समुदायों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए अहम साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से यह स्पष्ट होगा कि सरकार किस प्रकार इन मुद्दों का समाधान करती है और पर्यावरणीय नीतियों को अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बनाती है।