
यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निष्पादन का दूसरा चरण शनिवार रात 8 बजे पूरा हो गया। इस प्रक्रिया के तहत पीथमपुर के री-सस्टेनेबिलिटी (पूर्व में रामकी) कंपनी में 10 टन जहरीला कचरा जलाया गया। यह ट्रायल रन 6 मार्च की सुबह 11:06 बजे शुरू हुआ था और इसे पूरा होने में 57 घंटे लगे।
इस दौरान 180 किलो प्रति घंटे की दर से कचरा जलाया गया। हालांकि, यह प्रक्रिया 55 घंटे में पूरी होनी थी, लेकिन तकनीकी कारणों से इसमें दो घंटे अधिक लगे।
इंटरनेट बंद होने से 20 मिनट बाधित रही प्रक्रिया
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, 8 मार्च को दोपहर 12:46 बजे इंटरनेट सेवा बाधित होने के कारण ऑनलाइन सर्वर पर डेटा फीड होना बंद हो गया था। इस वजह से दोपहर 1 बजे से 20 मिनट तक कचरा जलाने की प्रक्रिया रोकनी पड़ी। हालांकि, भस्मक (इंसिनरेटर) के तापमान को बनाए रखने के लिए आखिरी खेप को जलाने में अतिरिक्त समय लगा।
10 मार्च से तीसरा चरण, बढ़ाई जाएगी जलाने की गति
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के निर्देशानुसार, 10 मार्च से ट्रायल रन का तीसरा चरण शुरू किया जाएगा। इसमें भी 10 टन कचरा जलाया जाएगा, लेकिन इस बार इसे 270 किलो प्रति घंटे की दर से जलाया जाएगा। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद तीनों ट्रायल रन की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर हाई कोर्ट में प्रस्तुत की जाएगी।
सख्त निगरानी में हो रही है प्रक्रिया
कचरा जलाने की प्रक्रिया के दौरान चिमनी से निकलने वाले धुएं और हानिकारक कणों की निगरानी के लिए मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 20 अधिकारी-कर्मचारी तैनात किए गए हैं। इस दौरान हवा की गुणवत्ता और अन्य पर्यावरणीय प्रभावों की सख्त मॉनिटरिंग की जा रही है।
भोपाल गैस त्रासदी के कचरे का समाधान
यूनियन कार्बाइड का यह जहरीला कचरा भोपाल गैस त्रासदी के समय का बचा हुआ अवशेष है, जिसे लंबे समय से सुरक्षित रखा गया था। इसे जलाने की प्रक्रिया को लेकर कई सालों से विवाद चल रहा था। हाई कोर्ट के आदेश के बाद यह निष्पादन प्रक्रिया शुरू की गई है, जिससे भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े जहरीले कचरे से हमेशा के लिए छुटकारा मिलने की उम्मीद है।
पर्यावरणीय चिंताएं बनी हुई हैं
हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया को लेकर पर्यावरणविदों की चिंता बनी हुई है। उनका कहना है कि जहरीले कचरे को जलाने से वातावरण में हानिकारक गैसें और विषैले तत्व फैल सकते हैं, जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए, इस पर सख्त मॉनिटरिंग जरूरी है।