इन दिनों महिला और पुरुष के आधार पर रोजगार के बंटवारे की पंरपरा को इन्दौर की महिलाओं ने तोड़ने में सफलता हासिल की है। यहां सक्रिय संस्था ‘समान सोसायटी’ के प्रयासों से इन्दौर शहर संभवतया देश का ऐसा पहला शहर बन गया है, जहां महिलाएं मैकेनिक और ड्राईवर के रूप में अपनी पहचान बना रही है।
आज शहर में करीब 250 महिलाएं बाईक मैकेनिक के रूप में प्रशिक्षत हैं, जबकि 300 महिलाएं प्रोफेशनल कार ड्राईवर के रूप में प्रशिक्षित होकर पुरुष वर्चस्व वाले रोजगार से जुड़ी हैं। शहर में ‘सखा कैब’ के नाम से महिला ड्राईवर चालित सेवा संचालित हो रही है, साथ ही नगर निगम, होटलों एवं कई कंपनियों में आज महिलाएं ड्राईवर के रूप में काम कर रही है। इसके अलावा कई महिलाए बाईक मैकेनिक के रूप में हीरो एवं टीवीएस कंपनियों से सर्विस सेंटरों में मैकेनिक के रूप में नियुक्त हैं। खास बात यह है शहर में ‘यंत्रिका सर्विस सेंटर’ के नाम से तीन बाईक सर्विस सेंटर संचालित हो रहे हैं, जहां सिर्फ महिला मैकेनिक कार्यरत हैं।
महिलाओं को गैर-पारंपरिक रोजगार से जोड़ने की परिकल्पना शहर की संस्था ‘समान सोसायटी’ द्वारा आज से पांच वर्ष पहले की गई थी। समान सोसायटी का मुख्य ध्येय हिंसा से पीड़ित महिलाओं की न्याय तक पहुंच कायम करना है। इसी ध्येय के लिए संस्था ने शुरुआती दौर में कानूनी सहायता और सशक्तिकरण के जरिये हिंसा मुक्त और समता युक्त समान निर्माण के प्रयास किए। वर्तमान में लीगल क्लिनिक के नाम से यह पहल जारी है। इस दौरान संस्था इस निष्कर्ष पर पहुंची कि सामाजिक-आर्थिक न्याय के बगैर कानूनी न्याय अधूरा है और इसके लिए कमजोर तबकों की महिलाओं को गैर-परंपरागत कौशल विकास के जरिये ड्राईविंग और मैकेनिक के रोजगार से जोड़ा गया।
इसके लिए संस्था ने इन्दौर में शहर में दो प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किए, जिनमें एक बाईक मैकेनिक और दूसरा ड्राईविंग प्रशिक्षण केन्द्र है। महिलाओं कौ गैरपारंपरिक प्रशिक्षण और रोजगार से जोड़ने की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं और उनके परिजनों को इसके लिए तैयार करना रही है। आमतौर पर परिवार के लोग यह नहीं चाहते कि महिलाएं ड्राईविंग और मैकेनिक जैसे रोजगार से जुड़ें, क्योंकि इन दोनों ही रोजगार में महिलाओं को घर से बाहर जाना पड़ता है।
वर्ष 2015 में जब इस कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी, तब मात्र 19 महिलाएं ही ड्राईविंग प्रशिक्षण में शामिल हुईं। किन्तु संस्था इससे निराश नहीं हुई, बल्कि संस्था के कार्यकर्ताओं ने समुदाय के साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास किया। बस्तियों में रोजगार शिविर आयोजित किए गए, घर-घर सम्पर्क किया गया और लोगों को ड्राइविंग एवं मैकेनिक के रोजगार का महत्व बताया गया। इस प्रयास के परिणामस्परूप आज शहर की 500 से अधिक महिलाएं ड्राईवर एवं मैकेनिक के रूप में कौशल हासिल कर चुकी है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की खास बात यह है कि यह सिर्फ ड्राईविंग एवं मैकेनिक के तकनीकी प्रशिक्षण पर ही जोर नहीं देता, बल्कि इसमें सशक्तिकरण के अन्य आयामों को भी शामिल किया गया है। इसके लिए संस्था द्वारा विशेषज्ञों की सहायता से विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किए गए और तीन से छह माह के प्रशिक्षण माड्यूल के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें सेल्फ डिफेंस, फर्स्ट एड, कानूनी जानकारी, स्वास्थ्य और पोषण, मैप रीडिंग एवं जीपीएस कौशल, संवाद कौशल और स्पोकन इंग्लिश के पाठ्यक्रम प्रमुख हैं।
महिलाओं को गैर-पारंपरिक रोजगार से जोड़ने वाले इस अभियान ने शहर में बदलाव की प्रक्रिया को अंजाम दिया है। यह कार्यक्रम जेंडर भेदभाव की उस जड़ता पर प्रहार करता है, जो यह मानती है कि महिलाएं तकनीक आधारित रोजगार में सक्षम नहीं है। आज इन्दौर की महिलाओं ने यह साबित किया है कि ड्राईविंग एवं मैकेनिक जैसे रोजगार सिर्फ पुरुष के बूते की बात नहीं है, ये काम महिलाएं भी बयूबी कर सकती हैं।