जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ रहा और नाकाफी है पर्यावरण के लिए बजट


वित्त वर्ष 2025-26 में पर्यावरण मंत्रालय को 3412.82 करोड़ रुपये का आवंटन मिला है, जो पिछले साल की तुलना में मामूली वृद्धि है। लेकिन क्या यह भारत के बढ़ते पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त है?


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हवा-पानी Published On :

नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए केंद्र सरकार ने कुल 50.65 लाख करोड़ रुपये के बजट का अनुमान लगाया है, जिसमें पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को 3412.82 करोड़ रुपये का आवंटन मिला है। हालांकि, यह राशि पिछले वर्ष के 3330.37 करोड़ रुपये की तुलना में मामूली बढ़ोतरी दर्शाती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह देश में बढ़ते पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए अपर्याप्त है।

पर्यावरणीय योजनाओं के लिए सीमित बजट

बजट प्रावधानों के अनुसार, इस वर्ष केंद्रीय पर्यावरण योजनाओं एवं परियोजनाओं के लिए 1060.56 करोड़ रुपये, पर्यावरण वानिकी एवं वन्यजीव संरक्षण के लिए 720 करोड़ रुपये, हरित भारत राष्ट्रीय मिशन के लिए 220 करोड़ रुपये, प्राकृतिक संसाधन एवं पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के लिए 50 करोड़ रुपये, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के लिए मात्र 35 करोड़ रुपये तथा ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ और ‘प्रोजेक्ट एलिफेंट’ के लिए 290 करोड़ रुपये रखे गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह राशि भारत में तेजी से बिगड़ते पर्यावरणीय हालात को सुधारने के लिए अपर्याप्त है।

भारत में बढ़ता प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का असर

भारत में पर्यावरण संकट लगातार गहराता जा रहा है। विश्व के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में हैं, और दुनिया के सबसे प्रदूषित 10 देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, देश की 521 प्रमुख नदियों में से 351 नदियां प्रदूषित पाई गई हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण देश में विभिन्न आपदाओं की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इनमें अत्यधिक गर्मी, असामान्य बारिश, सूखा, भूजल स्तर में गिरावट, हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना, चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं शामिल हैं। 2023 में जलवायु परिवर्तन के कारण भारत को 1 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ था, जिसकी पुष्टि स्विस रे की एक रिपोर्ट में की गई है।

अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है गहरा असर

एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अगर इसी तरह जारी रहा तो 2070 तक भारत की जीडीपी में 24.7% तक की गिरावट आ सकती है। समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और कृषि उत्पादकता में गिरावट इस आर्थिक नुकसान के प्रमुख कारण बन सकते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए दक्षिण एशिया को हर साल 102 अरब डॉलर से 431 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।

राज्यों और स्थानीय निकायों को अतिरिक्त सहयोग जरूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरण सुधार के कार्यों की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों की होती है, लेकिन वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण वे प्रभावी रूप से इन कार्यों को नहीं कर पाते। शहरी विकास योजनाओं में पर्यावरण और स्वच्छता संबंधी बजट में वृद्धि की आवश्यकता है।

पर्यावरण संकट से सर्वाधिक प्रभावित कमजोर तबकों के लिए राहत की मांग

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के अध्यक्ष राज कुमार सिन्हा ने मांग की है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और कमजोर तबकों के लिए विशेष वित्तीय प्रावधान किए जाएं। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से कृषि और जल स्रोतों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है, जिससे विस्थापित और ग्रामीण समुदायों की आजीविका संकट में है।

सरकार का रुख?

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बजट आवंटन में व्यापक वृद्धि करनी चाहिए। भारत जैसे देश में, जहां करोड़ों लोग कृषि पर निर्भर हैं, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मजबूत नीतियों और ठोस वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। जल, वायु और भूमि प्रदूषण को कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और जंगलों की सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनाई जानी चाहिए।  सरकार द्वारा पर्यावरण मंत्रालय के बजट में की गई मामूली वृद्धि मौजूदा संकट के समाधान के लिए अपर्याप्त लगती है। भारत में बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को अधिक वित्तीय संसाधन जुटाने और प्रभावी पर्यावरणीय नीतियां लागू करने की जरूरत है। अन्यथा, आने वाले वर्षों में देश को पर्यावरणीय आपदाओं और आर्थिक संकट का अधिक गंभीर सामना करना पड़ सकता है।



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