लोकसभा में मंगलवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक के तौर पर 129वां संविधान संशोधन बिल पेश किया गया। बिल को पेश करने से पहले इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई, लेकिन कुछ सांसदों की आपत्तियों के बाद पर्ची से दोबारा मतदान कराया गया। बिल के पक्ष में 269 वोट पड़े जबकि विपक्ष में 198 सांसदों ने मतदान किया। इसके बाद केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को सदन के सामने रखा।
गृह मंत्री अमित शाह ने चर्चा के दौरान कहा कि जब यह बिल कैबिनेट के समक्ष रखा गया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया था कि इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून मंत्री इस दिशा में प्रस्ताव रख सकते हैं।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’ का मतलब?
‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक भारत के चुनावी इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव रखता है। इसके तहत लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने का प्रावधान है। सरकार का कहना है कि यह विधेयक वित्तीय बचत, प्रशासनिक कार्यकुशलता और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करेगा।
हालांकि, विपक्षी दलों ने इसे संविधान के संघीय ढांचे पर हमला बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), समाजवादी पार्टी (SP) और अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस बिल को अव्यवहारिक करार दिया। उन्होंने दावा किया कि इससे क्षेत्रीय पार्टियों के लिए असमानता पैदा होगी और बड़े संसाधन वाले राष्ट्रीय दलों को फायदा होगा।
इसके साथ ही रामनाथ कोविंद समिति की सिफारिशें भी चर्चा के केंद्र में हैं, जिसने ‘एक देश, एक चुनाव’ को व्यवहारिक बनाने के लिए संवैधानिक संशोधनों की वकालत की थी।
मोदी सरकार का मानना है कि अगर सभी चुनाव एक साथ होंगे तो इससे सरकार के कामकाज में रुकावटें कम होंगी और वित्तीय खर्च में भारी कटौती होगी। इसके लिए सरकार दो विधेयक लाई है। इनमें से एक संविधान संशोधन बिल है, जिसे पास कराने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।
कोविंद समिति की सिफारिशें और प्रस्ताव
सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई थी। समिति का काम था ‘एक देश, एक चुनाव’ की व्यवहार्यता का अध्ययन करना।
कोविंद समिति ने सुझाव दिया कि:
- संवैधानिक संशोधन की जरूरत: लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान के अनुच्छेद 82 और 172 में संशोधन की जरूरत होगी।
- आम चुनावों का चरणबद्ध क्रियान्वयन: पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे। दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव को इसमें शामिल किया जाएगा।
- मध्यावधि चुनाव पर प्रावधान: यदि किसी सरकार का कार्यकाल बीच में ही समाप्त होता है तो नए चुनाव केवल शेष कार्यकाल के लिए होंगे, पूरे पांच साल के लिए नहीं।
सरकार के समर्थन में तर्क
बीजेपी और एनडीए सहयोगियों का कहना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ से कई फायदे होंगे:
- वित्तीय बचत: लगातार चुनावों पर खर्च होने वाले अरबों रुपये की बचत होगी।
- प्रशासनिक कार्यकुशलता: चुनावी आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य प्रभावित होते हैं। एक साथ चुनाव होने से यह समस्या हल हो जाएगी।
- राजनीतिक स्थिरता: बार-बार चुनाव के कारण आने वाली अस्थिरता से बचा जा सकेगा।
- मतदान में बढ़ोतरी: एक साथ चुनाव से मतदाताओं की भागीदारी बढ़ेगी।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा, “यह विधेयक देश के लोकतांत्रिक और विकासशील भविष्य की नींव है। चुनावी प्रक्रिया को सरल और सुसंगत बनाना समय की मांग है।”
एक देश एक चुनाव विधेयक पर विपक्ष का विरोध और तर्क
हालांकि, विपक्षी पार्टियाँ इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रही हैं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल समेत INDIA गठबंधन की कई पार्टियों ने इस विधेयक का विरोध किया।
- संघीय ढांचे पर खतरा: विपक्ष का मानना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ से राज्यों के अधिकारों का हनन होगा।
- क्षेत्रीय पार्टियों पर असर: छोटे और क्षेत्रीय दलों को आशंका है कि राष्ट्रीय दलों का दबदबा और बढ़ जाएगा।
- संविधान का उल्लंघन: तृणमूल कांग्रेस ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह भारत जैसे विविधता भरे देश में लागू करना मुश्किल है।
- व्यवहारिक दिक्कतें: विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाया कि अगर किसी राज्य में सरकार गिरती है तो चुनाव कैसे कराए जाएंगे और शेष कार्यकाल तक सरकार की स्थिरता कैसे बनी रहेगी?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “यह विधेयक लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश है। यह राज्यों की स्वायत्तता पर हमला है।”
क्या सरकार के लिए विधेयक पास कराना आसान है?
‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को पास कराने के लिए सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। लोकसभा में एनडीए के पास 292 सीटें हैं जबकि दो-तिहाई बहुमत के लिए 362 सीटें जरूरी हैं। वहीं, राज्यसभा में भी सरकार के पास जरूरी संख्याबल नहीं है। इसके अलावा, कई राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन भी जरूरी होगा। बिल को पास कराने की राह आसान नहीं है। इसके लिए सरकार को विपक्ष को मनाने के साथ-साथ गठबंधन के अन्य दलों का समर्थन भी जुटाना होगा। वहीं, ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने में व्यवहारिक चुनौतियाँ भी बड़ी बाधा बन सकती हैं।