उपराष्ट्रपति धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव: विपक्ष का बड़ा कदम, गंभीर आरोप


इंडिया’ गठबंधन ने भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है


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बड़ी बात Updated On :

संसद के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ता तनाव अब एक नए मुकाम पर पहुंच गया है। ‘इंडिया’ गठबंधन ने भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। इस प्रस्ताव में धनखड़ पर सदन के संचालन में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने, विपक्ष की आवाज दबाने और संविधान द्वारा स्थापित निष्पक्षता के सिद्धांतों को कमजोर करने का आरोप लगाया गया है।

विपक्ष का कहना है कि धनखड़ का व्यवहार उनके संवैधानिक पद की गरिमा के विपरीत है। कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि धनखड़ का आचरण ऐसा है जैसे वह विपक्षी नेताओं को प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। खड़गे ने आरोप लगाया, “सभापति सदन के भीतर विपक्षी नेताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हैं और सदन के बाहर सार्वजनिक मंचों पर उनका अपमान करने से भी नहीं चूकते।”

खड़गे ने कहा कि विपक्ष के सांसद जब भी सरकार से सवाल पूछते हैं, तो धनखड़ खुद मंत्रियों से पहले जवाब देने के लिए खड़े हो जाते हैं। उन्होंने कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपराष्ट्रपति, जो कि राज्यसभा के संरक्षक माने जाते हैं, ने निष्पक्षता की अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है और सत्ताधारी दल के पक्ष में खड़े नजर आते हैं।”

संविधान की भावना के खिलाफ बयानबाजी

विपक्ष ने धनखड़ के उस बयान का भी उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने खुद को “आरएसएस का एकलव्य” बताया था। विपक्ष का मानना है कि इस तरह का बयान किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए उचित नहीं है। खड़गे ने कहा, “संविधान में साफ लिखा है कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति राजनीति से परे रहेंगे। लेकिन धनखड़ ने इस सिद्धांत को तोड़कर विपक्ष को चुप कराने और सरकार की प्रशंसा करने का काम किया है।”

संसदीय परंपराओं को कमजोर करने का आरोप

खड़गे ने यह भी कहा कि धनखड़ का रवैया संसद की स्थापित परंपराओं और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करता है। उन्होंने कहा, “सभापति का काम सभी सांसदों को बोलने का समान अवसर देना है, लेकिन धनखड़ बार-बार विपक्ष के भाषणों को बाधित करते हैं।”

खड़गे ने यह भी जोड़ा कि राज्यसभा में कई वरिष्ठ नेता, पत्रकार, लेखक और प्रोफेसर हैं, जो 40-40 साल का अनुभव लेकर सदन में आए हैं। लेकिन धनखड़ उन्हें भी प्रवचन देते हैं, जो उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है।

विपक्ष के पास नहीं बचा विकल्प

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि विपक्ष ने यह कदम उठाने से पहले गहराई से विचार किया। “यह कदम व्यक्तिगत द्वेष या राजनीतिक लड़ाई के तहत नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठाया गया है,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि धनखड़ का आचरण सदन की निष्पक्षता को कमजोर कर रहा है और उनका व्यवहार यह दर्शाता है कि वह सत्तापक्ष के प्रवक्ता बन गए हैं।

संसदीय गरिमा और अंबेडकर के विचार

खड़गे ने कहा कि अंबेडकरजी ने स्पष्ट किया था कि भारत के उपराष्ट्रपति को राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। उन्होंने पहले राज्यसभा सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने 1952 में कहा था, “मैं किसी एक पार्टी का नहीं हूं, बल्कि हर पार्टी का हूं।”खड़गे ने कहा, “यह निष्पक्षता की परंपरा है, लेकिन धनखड़ ने इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है।”

विपक्ष के आरोपों का सार

  1. सभापति सदन में विपक्ष को बोलने से रोकते हैं और उनकी चिंताओं को दरकिनार करते हैं।
  2. सार्वजनिक मंचों पर विपक्षी नेताओं का अपमान करते हैं।
  3. विपक्ष के सवालों का जवाब देने के बजाय खुद सत्तापक्ष की तरफ से बोलते हैं।
  4. अपने संवैधानिक पद का इस्तेमाल सरकार के पक्ष में करते हैं।

क्या कहता है यह कदम?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह अविश्वास प्रस्ताव केवल धनखड़ के व्यवहार पर सवाल उठाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ते असंतोष का परिणाम है। यह प्रस्ताव एक बड़े संदेश का हिस्सा है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता को लेकर चिंता जाहिर करता है।



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