भारतीय उद्योग जगत को दिशा दिखाने वाले रतन टाटा: एक बेमिसाल शख़्सियत को विदाई….


रतन टाटा को करोड़ों भारतीयों ने कभी उस तरह नहीं देखा होगा जैसे वे आज कई लोगों को देखते हैं लेकिन उनकी सादगी, दरियादिली और विनम्रता की कहानियां उन करोड़ों लोगों ने जरूर सुनी होंगी।


DeshGaon
विविध Updated On :

रतन नवल टाटा नहीं रहे, उनका न रहना सामान्य नहीं है। रतन टाटा का न रहना भारत के उद्योग और कारोबारी जगत में एक सूनापन है। इसे महसूस करना हो तो कभी टाटा की कहानियां सुनिएगा, किताबों में बहुत मिलेंगी और नहीं तो ऑनलाइन तो इनकी बाढ़ आई हुई है। रतन टाटा जैसी शख़्सियत की कहानी भी बड़ी होती थीं। महान औद्योगिक साम्राज्य को लेकर चलते हुए भी कमाल की  विनम्रता, ईमानदारी और दृढ़ संकल्पित रहना। टाटा के कई किस्से अब याद आते रहेंगे क्योंकि शायद भारत में उनकी मयार के कोई लोग होंगे जिन्होंने नैतिक और सामाजिक ईमानदारी से अपनी कारोबारी जिम्मेदारी निभाई होगी। 9 अक्टूबर 2024 को 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। टाटा समूह के इस महानायक ने न सिर्फ व्यापार को एक नई दिशा दी, बल्कि लाखों लोगों के दिलों में अपनी सादगी और परोपकार के लिए भी खास जगह बनाई।

एक दूरदर्शी नेता जिसने टाटा को वैश्विक पहचान दिलाई

1991 में रतन टाटा ने टाटा समूह की बागडोर संभाली, जब भारतीय अर्थव्यवस्था उदारीकरण की ओर बढ़ रही थी। यह समय चुनौतियों से भरा था, लेकिन उनकी साहसिक और दूरदर्शी सोच ने टाटा को दुनिया के सबसे बड़े कॉरपोरेट घरानों में से एक बना दिया। टेटली, जगुआर लैंड रोवर, और कोरस जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों का अधिग्रहण उनके नेतृत्व में हुआ, जिससे समूह की वैश्विक पहचान मजबूत हुई। 2012 में जब उन्होंने चेयरमैन का पद छोड़ा, तब टाटा समूह की आय 100 बिलियन डॉलर से अधिक थी।

समाजसेवा के प्रति रतन टाटा का समर्पण

व्यवसाय के अलावा, रतन टाटा का जीवन समाजसेवा के लिए भी समर्पित रहा। वे हमेशा मानते थे कि “व्यवसाय का असली उद्देश्य समाज की बेहतरी में योगदान देना है।” उनके नेतृत्व में टाटा ट्रस्ट्स ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में अनगिनत परियोजनाएं शुरू कीं, जो लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। उनकी विनम्रता और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता ने उन्हें एक सच्चा परोपकारी बनाया।

एक सादगी भरी जिंदगी, जो प्रेरित करती रही

रतन टाटा का जीवन सादगी और विनम्रता का प्रतीक था। वे अविवाहित रहे और अपने पालतू कुत्तों टिटो और टैंगो के बहुत करीब थे। उनकी सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बॉम्बे हाउस में आवारा कुत्तों के लिए केनेल और खाना हमेशा उपलब्ध रहता था।

चुनौतियाँ और सीख

हर उद्यमी की तरह, रतन टाटा के कार्यकाल में भी चुनौतियाँ आईं। टाटा नैनो को दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने का उनका सपना विवादों और चुनौतियों से भरा रहा, और अंततः 2018 में इसका उत्पादन बंद करना पड़ा। इसके अलावा, टाटा समूह का टेलीकॉम सेक्टर में प्रवेश भी उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं रहा। लेकिन इन असफलताओं ने कभी भी उनकी प्रतिष्ठा या समूह की छवि को धूमिल नहीं किया।

एक अधूरी आत्मकथा और भविष्य की राह

रतन टाटा का जाना टाटा समूह के लिए एक बड़ा झटका है। उनकी आत्मकथा “रतन टाटा – ए लाइफ” अब भी अधूरी है, जो उनके जीवन के और भी अनछुए पहलुओं को उजागर करने का इंतजार कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “रतन टाटा एक ऐसे दूरदर्शी नेता थे, जिन्होंने भारतीय उद्योग को नई ऊँचाइयों पर पहुंचाया और समाज के प्रति अटूट समर्पण दिखाया।”

रतन टाटा का नाम सिर्फ उद्योग और कारोबार में सफलताओं के लिए नहीं, बल्कि समाजसेवा और सादगी के लिए भी याद किया जाएगा। उनकी विरासत और उनके द्वारा छोड़ी गई मूल्यवान सीखें आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी।



Related