पीला सोना कहे जाने वाला सोयाबीन इस बार किसानों के लिए निराशा लेकर आया है। लगातार बारिश, कीटों के प्रकोप और पीलेपन ने किसानों की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया है। जाते-जाते मानसून ने फसलों की हालत और भी खराब कर दी, जिससे खेतों में खड़ी फसल अब दागदार हो गई है। कई क्षेत्रों में सोयाबीन का उत्पादन इस कदर घट गया है कि एक बीघा में तीन क्विंटल भी फसल नहीं निकल पा रही। खासकर निचले इलाकों में इसका असर ज्यादा देखा जा रहा है। किसानों की लागत भी नहीं निकल रही, जिससे वे हताश हैं और प्रशासन से सर्वे की मांग कर रहे हैं।
हालांकि, वर्तमान में हो रहे सर्वे में न तो राजस्व विभाग के अधिकारी शामिल हैं और न ही बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि। इस कार्य को केवल एक ग्राम सेवक ही कर रहा है, जिससे किसानों को बीमा मिल पाना मुश्किल लगता है। पिछले साल की फसलों का बीमा अब तक नहीं मिला है, जबकि किसान हर साल हजारों रुपये की प्रीमियम भरते हैं। इस बार धार जिले के अनारद और आसपास के क्षेत्रों में सोयाबीन का रकबा लगभग 70 हजार हेक्टेयर है, लेकिन लगातार बारिश के कारण आधी फसल बर्बाद हो गई है। इसके चलते किसानों को भारी नुकसान हुआ है, और उन्हें इस बार फसल का उचित भाव भी नहीं मिल पा रहा।
बारिश और बीमारियों का असर:
किसानों ने बताया कि इस बार बारिश इतनी ज्यादा हुई कि सोयाबीन की फसल पीली पड़ गई और कई बीमारियां लग गईं। किसान कमल यादव कहते हैं, “सोयाबीन की फसल बोई थी, लेकिन अब एक बीघा में तीन क्विंटल भी उत्पादन नहीं हो रहा।” जिस सोयाबीन की चमक पहले किसानों के लिए गर्व का कारण होती थी, अब बारिश और कीटों के कारण उसका दाना खराब हो गया है। जाते हुए मानसून ने खेतों में खड़ी फसल को जलमग्न कर किसानों के सपने चूर कर दिए।
महंगाई और मजदूरी की मार:
जहां एक तरफ सरकार किसानों की फसलों का उचित मूल्य नहीं दे पा रही, वहीं किसानों को कटाई और मजदूरी के लिए अधिक खर्च करना पड़ रहा है। हार्वेस्टर मशीनों के किराए भी बढ़ गए हैं। लेकिन सोयाबीन की कीमत पिछले कुछ सालों से स्थिर है, जबकि सोयाबीन तेल के दाम आसमान छू रहे हैं। किसानों का कहना है कि इस बार सोयाबीन 3,000 से 3,800 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है, जिससे गीले खेतों में कटाई का खर्च भी नहीं निकल पा रहा।
कम उत्पादन के कारण:
खरीफ फसल के कम होने के चार प्रमुख कारण हैं – बारिश की अनियमितता, कीटों का प्रकोप, लागत की तुलना में नुकसान अधिक होना, और औसतन उत्पादकता का कम रहना। इस बार जल्दी उत्पादन वाली किस्में भी प्रभावित हुई हैं। वहीं, देर से पकने वाली सोयाबीन को जाते हुए मानसून ने पछाड़ दिया, जिससे दाना खराब हो गया और सोयाबीन की चमक फीकी पड़ गई। किसानों का कहना है कि उन्होंने महंगे बीज लगाए थे, लेकिन प्रकृति की मार ने उनकी सारी मेहनत बेकार कर दी।
आगामी फसल के लिए राहत:
हालांकि जाते-जाते मानसून ने किसानों को कुछ राहत भी दी है। अच्छी बारिश से तालाब और नदियां भर गई हैं, जिससे आगामी फसलों जैसे लहसुन, प्याज, गेहूं और चने को फायदा मिलेगा। गेहूं के अलावा अन्य फसलों का रकबा भी बढ़ेगा। अब किसान खेतों को सुधारने और अगली फसल की तैयारी में जुट गए हैं।
सूखती फसल और किसान की जद्दोजहद:
बारिश के डर से किसानों ने सोयाबीन की फसल को खेतों से काटकर खलिहानों में और खुले मैदानों में सूखने के लिए रखा है। किसान दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं ताकि उनकी फसल को अधिक नुकसान न हो। यदि सोयाबीन गीला रह गया, तो उसके खराब होने का खतरा है, जिससे किसानों को और अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए किसान सोयाबीन को सुखाकर ही गोदाम में जमा कर रहे हैं, ताकि आने वाले दिनों में नमी और खराबी से बचा जा सके।
सोयाबीन की खेती में एक बीघा पर आने वाला खर्च:
- 1600 रुपये – जुताई और बुवाई का खर्च।
- 2500 रुपये – तीस किलो बीज और उपचार।
- 6000 रुपये – दवाई और छिड़काव (चार बार)।
- 1500-2000 रुपये – फसल कटाई।
- 2500 रुपये – सोयाबीन निराई और अन्य खर्च।
कुल मिलाकर एक बीघा का खर्च 14,100 रुपये आता है, जबकि इस बार एक बीघा से मात्र तीन क्विंटल उत्पादन हो रहा है। इस समय नई सोयाबीन का भाव 3,360 रुपये प्रति क्विंटल है। किसान समर्थन मूल्य पर भी बेचने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि भुगतान में एक महीने का समय लगता है और उन्हें अगली फसल की बुवाई के लिए नगद पैसों की आवश्यकता होती है। इसी कारण अधिकांश किसान सरकारी खरीदी से दूरी बनाए हुए हैं।
सरकार से उम्मीद:
किसानों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा दिया जाए और सोयाबीन की फसल के लिए समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए।