कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की देखरेख में सतना के व्यक्ति ने दुर्घटना से उबरकर फिर से चलने की हिम्मत पाई


39 वर्षीय शिवलोक सिंह ने गंभीर दुर्घटना और व्यक्तिगत क्षति के बाद साहस और चिकित्सा देखभाल की मदद से फिर से चलने की राह पकड़ी


DeshGaon
इन्दौर Updated On :

सतना के 39 वर्षीय शिवलोक सिंह एक भयानक सड़क दुर्घटना का शिकार हुए, जिसमें उनकी पत्नी का निधन हो गया और वे खुद गंभीर रूप से घायल हो गए। इस दुर्घटना के बाद कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स की देखभाल और उनके साहस के चलते, आज वे फिर से अपने पैरों पर चलने लगे हैं।

 

2 नवंबर 2023 का दिन उनके जीवन में एक कड़वी याद बन गया, जब एक दुर्घटना में उनके पेल्विस की हड्डी टूट गई और उन्हें साइटिक नर्व पाल्सी की समस्या हो गई, जिससे वे चलने-फिरने में असमर्थ हो गए। 3 नवंबर को उन्हें गंभीर हालत में कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, इंदौर में भर्ती कराया गया। दुर्घटना की भयावहता के कारण उन्हें अपनी पत्नी के निधन की जानकारी तक नहीं थी।

 

डॉक्टरों की एक मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम ने उनकी जान बचाने और ठीक करने के लिए हर संभव प्रयास किया। उनकी चोटें इतनी गंभीर थीं कि पेल्विस का एसिटाबुलम (कूल्हे के जोड़ का सॉकेट) कई टुकड़ों में बंट गया था। इस जटिल स्थिति का इलाज करना चुनौतीपूर्ण था क्योंकि इससे जीवन भर की विकलांगता हो सकती थी। इसके अलावा, सिंह का वजन 155 किलोग्राम था और वे मोटापे से जुड़ी स्लीप एपनिया और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं से भी ग्रस्त थे, जिससे सर्जरी के दौरान जोखिम और बढ़ गए।

 

इस चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक्स और जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन, डॉ. मनीष लधानिया के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने पूरी मेहनत से काम किया। डॉ. लधानिया ने बताया, “बहुत सावधानीपूर्वक सर्जरी की योजना बनाई गई। यह सर्जरी 12 घंटे से अधिक समय तक दो चरणों में चली। दूसरे चरण में पेट की तरफ से फ्रैक्चर तक पहुँचने और पेल्विस को स्थिर करने का काम था। पहले चरण में हिप साइड पर ध्यान केंद्रित कर एसिटाबुलम को फिर से बनाना और साइटिक नर्व की मरम्मत की गई।”

 

सर्जरी सफल रही, लेकिन सिंह की रिकवरी के दौरान सर्जरी वाली जगह पर खून का थक्का जम गया, जिसके लिए तुरंत इलाज की आवश्यकता पड़ी। उन्हें सांस लेने में गंभीर समस्या होने पर इलेक्टिव ट्रेकियोस्टोमी और मैकेनिकल वेंटिलेशन की भी ज़रूरत पड़ी। अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ ने विशेष देखभाल के जरिए बेडसोर्स और अन्य जटिलताओं को रोकने में मदद की।

 

डॉ. लधानिया ने कहा, “जब उन्हें अपनी पत्नी के निधन के बारे में पता चला, तो वे गंभीर अवसाद में चले गए, जिसका उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। समय पर मनोवैज्ञानिक सहायता और परामर्श से उन्हें इस भावनात्मक आघात से उबरने में मदद मिली। इस दौरान उनके भाई ने भी हर वक्त साथ रहकर उनका हौसला बनाए रखा।”

 

सिंह को ठीक होने में एक महीना लगा। दस महीनों की लगातार फिजियोथेरेपी के बाद आज वे बिना सहारे के चल पा रहे हैं। इसके साथ ही उनका वजन भी 40 किलो तक कम हुआ।

 

कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, इंदौर के उपाध्यक्ष  सुनील मेहता ने कहा, “यह मामला दर्शाता है कि हमारा अस्पताल न सिर्फ शारीरिक बीमारियों का इलाज करता है, बल्कि मानसिक रूप से भी मरीज़ की पूरी मदद करता है। इस चुनौतीपूर्ण मामले के सफल इलाज के लिए डॉक्टरों, नर्सों और सहायक कर्मचारियों की सामूहिक कोशिशों पर मुझे गर्व है।”

 

(अस्पताल द्वारा जारी जानकारी के आधार पर)



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