कहते हैं कि जब मुश्किलें आती हैं तो चारों ओर से आती हैं। इस समय किसान भी ऐसी ही विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। एक ओर सोयाबीन की कीमतों में भारी गिरावट से किसानों को पहले ही चिंता थी, और अब इस बेमौसम बारिश ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। खरीफ की प्रमुख फसल सोयाबीन, जो किसानों के लिए आय का मुख्य स्रोत होती है, अब खराब होने के कगार पर है। खेतों में भरा पानी और लगातार बारिश की वजह से फसलें नष्ट होने लगी हैं, जिससे किसानों के चेहरों पर निराशा और चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं। किसानों को इस बात का डर सताने लगा है कि उनकी लागत भी शायद ही निकल पाए।
बारिश ने किसानों की बढ़ाई मुश्किलें
इस साल मानसून की अनियमित गतिविधियों ने किसानों को पहले ही काफी परेशान कर रखा था। लंबे समय तक बारिश न होने के कारण फसलें सूखने लगी थीं। अब जब फसलें पकने को तैयार थीं, तभी अचानक हुई मूसलाधार बारिश ने किसानों की आशाओं पर पानी फेर दिया है। खेतों में खड़ी और काटने के लिए तैयार सोयाबीन की फसलों को इस बारिश ने बर्बाद कर दिया है। कई जगहों पर तो खेतों में पानी भरने से फसलें गलने लगी हैं। अगर आने वाले दिनों में बारिश नहीं थमी, तो किसानों को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा।
नदी-तालाब किनारे के खेतों में सबसे अधिक नुकसान
नदी और तालाबों के किनारे स्थित खेतों को इस बार भारी नुकसान हुआ है। लगातार बारिश से नदियों और तालाबों का जलस्तर बढ़ गया है, जिससे इनके किनारे के खेतों में पानी भर गया है। कई जगहों पर तो स्थिति यह है कि पानी पूरी तरह से खेतों में घुस चुका है और जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण वहां की फसलें बर्बाद होने के कगार पर हैं। इस बर्बादी का सबसे बड़ा कारण है खेतों में भरा पानी, जिससे फसलें सड़ने लगी हैं। किसानों को अब यह चिंता सता रही है कि अगर एक-दो दिन में बारिश नहीं थमी, तो उनकी पूरी फसल खराब हो जाएगी और उन्हें खाली हाथ रहना पड़ेगा।
सोयाबीन के दामों में गिरावट की चिंता
इस बार मंडियों में सोयाबीन का उचित भाव न मिलने के कारण किसान पहले से ही परेशान थे। व्यापारी नमी का बहाना बनाकर नई फसल के लिए कम दाम तय कर रहे हैं। किसानों को प्रति क्विंटल मात्र 2500 से 3000 रुपये मिल रहे हैं, जबकि उत्पादन लागत इससे कहीं अधिक है। कुछ व्यापारी ऊंचे दामों पर भी खरीदारी कर रहे हैं, लेकिन वह भी अधिकतम 3800 रुपये प्रति क्विंटल तक ही सीमित है, जो कि पर्याप्त नहीं है। ऐसे में किसान अपनी लागत भी निकालने में असमर्थ हो रहे हैं।
खेती को लाभ का धंधा बनाने के सरकारी दावे पर सवाल
सरकार अक्सर खेती को लाभ का धंधा बनाने की बात करती है, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। मौजूदा हालात में किसानों को मौसम की मार, प्राकृतिक आपदा और प्रशासनिक अनदेखी का सामना करना पड़ रहा है। इस साल मानसून की अनियमितता और सरकारी स्तर पर किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज करने के कारण उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। कभी बेमौसम बारिश, तो कभी उचित बाजार मूल्य न मिलना, किसानों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। सरकार अगर किसानों की उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए प्रयास करे, तो इस मुश्किल समय में किसानों को कुछ राहत मिल सकती है।
किसानों की स्थिति और उनकी पीड़ा
राहत की कोई उम्मीद नहीं
राजू यादव, किसान, सकतली: “बारिश ने हमारी फसलों को बर्बाद कर दिया है। मंडियों में भी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। ऐसे में हमारी मेहनत का कोई फायदा नहीं हो रहा। फसल तो जैसे-तैसे हमने उगाई थी, अब मंडी में भी उचित दाम नहीं मिल रहे हैं। न ही सरकार हमारी सुन रही है, और न ही व्यापारियों का कोई भरोसा।”
फसल खराबी का कोई सर्वे नहीं
बाबू सिंह डोडिया, किसान, अनारद: “इस बार तो किसानों को हर ओर से नुकसान हो रहा है। सरकार न तो फसल खराबी का सर्वे करवा रही है, और न ही मंडियों में भाव सही मिल रहे हैं। अब किसान अपनी मेहनत का मोल किससे मांगे? बस हमें यही लगता है कि हमारे हितों के नाम पर सरकारी योजनाएं बस कागजों तक सीमित रह गई हैं।”
कटाई पर भी पड़ा असर
जितेंद्र मंडलोई, किसान, मलगांव: “लगातार बारिश से खेत गीले हो गए हैं। हार्वेस्टर और मजदूर भी खेतों में नहीं जा पा रहे हैं। कटाई के लिए अगर मजदूर मिल भी जाते हैं, तो लागत इतनी बढ़ गई है कि वह निकलेगा भी या नहीं, यह बड़ा सवाल है। वहीं, बारिश के कारण अब हार्वेस्टर भी खेतों में नहीं चल पाएंगे। जब तक पानी नहीं सूखता, तब तक हमें इंतजार करना होगा।”
आने वाली फसलों पर भी असर
बारिश ने सिर्फ वर्तमान फसल को ही नहीं, बल्कि आने वाली फसलों को भी प्रभावित किया है। खेतों में पानी भर जाने के कारण फसल चक्र में बदलाव आ सकता है। किसानों को खेतों को फिर से सुधारने के लिए वक्त लगेगा और खर्च भी बढ़ जाएगा।
मजदूरों की कमी ने बढ़ाई परेशानी
इस बार खेतों में मजदूरों की कमी भी किसानों की मुश्किलें बढ़ा रही है। जिले में पलायन के कारण खेतों में मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं। जो मजदूर मिल भी रहे हैं, वे महंगे हैं और किसानों के पास उन्हें देने के लिए पैसे भी नहीं हैं। ऐसे में किसान खुद ही फसल काटने में लगे हुए हैं, जिससे उनकी लागत और श्रम दोनों बढ़ गए हैं।
सरकार से किसानों की उम्मीदें
इस मुश्किल घड़ी में किसानों को उम्मीद है कि सरकार उनकी समस्याओं को गंभीरता से लेगी। उन्हें फसल का उचित मूल्य दिलवाने के साथ-साथ आपदा की स्थिति में राहत पैकेज देने की भी आवश्यकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आने वाले समय में किसानों की स्थिति और बदतर हो सकती है।