चैतन्य सोनी
मध्य प्रदेश की राजनीति में सीनियर नेताओं के बीच अंदरूनी राजनीति एक बार फिर सामने आई है। सागर में आयोजित रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को मंच पर उचित सम्मान नहीं दिया गया। कभी हर कार्यक्रम में सबसे आगे रहने वाले इन नेताओं को इस इन्हें सीएम के मंच से सबसे पीछे नौवें नंबर की लाइन में लगी कुर्सियों पर बैठाया गया थे। इसके विपरीत, उनसे काफी जूनियर विधायकों को ज्यादा तवज्जो दी गई, जिससे आहत होकर दोनों सीनियर नेता कार्यक्रम के बीच में ही बाहर चले गए।
ये हैं जिले के नए ‘ बड़े नेता ‘
कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री के आगमन के समय केवल सागर जिले के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और विधायक शैलेंद्र जैन ही उनके पास नज़र आए। हालांकि बुंदेलखंड के अन्य मंत्री, जैसे लखन पटेल, धर्मेंद्र लोधी, और दिलीप अहिरवार को मंच पर स्थान मिला, लेकिन वे मुख्यमंत्री के ज्यादा नजदीक नहीं दिखे।
हालांकि मुख्यमंत्री ने सबसे पीछे बैठाने के बाद दोनों वरिष्ठ नेताओं को कई आगे किया लेकिन उनका यह तरीका भी नेताओं के अपमान के अहसास को शायद कम नहीं कर सका। दीप प्रज्ज्वलन के समय सीएम ने गोपाल भार्गव को आगे बुलाया और जब सम्मान पत्र बांटे जा रहे थे, तब भी उन्होंने भार्गव और भूपेंद्र सिंह को अपने पास बुलाकर उन्हें सम्मानित किया।
‘ जो कभी साथ नहीं आए, आज एक साथ गए ‘
इसके बाद दोनों नेता जैसे बेज़ार नज़र आए और एक ही कार में रवाना हुए, जिसमें गोपाल भार्गव आगे की सीट पर और भूपेंद्र सिंह पीछे बैठे थे। इस घटना की तस्वीरें सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गईं। क्योंकि प्रदेश की इस नई राजनीति ने कभी नजदीक न आने वाले इन दो नेताओं के एक ही कार में पहुंचा दिया था। संभवतः इस तरह की घटना से इनकी अदावत कुछ कम हुई हो लेकिन इसके बदले कहीं ऑफ बढ़ी भी है।
समझिए इस घटना की कड़ियां
इसे 2016 के सिंहस्थ महाकुंभ के समय उज्जैन में हुए भूमि विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है, जब तत्कालीन विधायक मोहन यादव को मंत्री भूपेंद्र सिंह से मिलने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। उस समय सीएम शिवराज सिंह के चलते भूपेंद्र सिंह राज्य सरकार में एक ताकतवर मंत्री थे और उनका राजनीतिक प्रभाव काफी ऊँचा था। मीडिया में इस उपेक्षा की खबरें भी आई थीं, जिसमें यह कहा गया था कि भूपेंद्र सिंह जानबूझकर मोहन यादव को नज़रअंदाज़ कर रहे थे।
इसके बाद से ही दोनों नेताओं के बीच संबंध बहुत अच्छे नहीं माने जाते थे। विधायक मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने से पहले तक भूपेंद्र सिंह के लिए यह कोई परेशानी वाली बात नहीं थी लेकिन अब स्थितियां एकदम उलट हैं।
जमीन विवाद जो नहीं भूले…
इसके अलावा उज्जैन सिंहस्थ के दौरान जमीन के आवंटन और मास्टर प्लान में बदलाव से जुड़े विवाद में मोहन यादव और उनके परिवार के हितों की बात उठी थी। भूपेंद्र सिंह ने उस समय इन बदलावों का विरोध किया। बाद में यह बड़ा विवाद भी बना और डॉ मोहन यादव पर गंभीर आरोप लगे लेकिन फिर भी वे ही नए मुख्यमंत्री के तौर पर चुने गए और गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे दर्जनों नेता हाशिए पर आ गए।