मध्य प्रदेश सरकार ने आपराधिक न्याय प्रणाली को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने की दिशा में अहम कदम उठाए हैं। राज्य सरकार और उच्च न्यायालय के सहयोग से पुलिस, अदालत, और फॉरेंसिक विभाग के बीच एक मजबूत डिजिटल नेटवर्क तैयार किया जा रहा है, जिससे मामलों की जांच, अभियोजन और अदालती प्रक्रियाएं अधिक पारदर्शी और तेज हो जाएंगी।
पायलट प्रोजेक्ट और उसकी शुरुआत
उच्च न्यायालय ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत इंदौर, देवास और राजगढ़ जिलों में डिजिटल एफआईआर और केस डायरी को ऑनलाइन भेजने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए राष्ट्रीय सूचना केंद्र (एनआईसी) की सहायता से एक नया सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है। पायलट प्रोजेक्ट के सकारात्मक परिणामों के आधार पर इसे राज्य के अन्य जिलों में भी लागू किया जा रहा है। इससे पुलिस द्वारा जांच में लगने वाले समय को काफी कम किया जा सकेगा।
तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से अपील की है कि इस डिजिटल परिवर्तन के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता पर उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए केंद्र सरकार की आईसीआईजेएस 2.0 योजना के तहत अतिरिक्त वित्तीय सहायता की मांग की गई है। इस कदम से आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत पुलिस, अस्पताल, फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं, और अदालतों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जाएगा।
ऑनलाइन सम्मन और वारंट प्रणाली
मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है जिसने न्यायिक प्रक्रियाओं में ऑनलाइन सम्मन और वारंट जारी करने के नियमों को औपचारिक रूप से लागू किया है। यह कदम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) 2023 के तहत उठाया गया है। इसके तहत सम्मनों और वारंटों को ईमेल, व्हाट्सएप, और टेक्स्ट मैसेज के माध्यम से जारी किया जा सकेगा।
कृत्रिम मेधा उपयोग
इसके अतिरिक्त, राज्य के उच्च न्यायालय ने आपराधिक न्याय प्रणाली में एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) के उपयोग पर भी विचार किया है। विशेष रूप से संकेत भाषा की व्याख्या और अपराध स्थल की वीडियोग्राफी के विश्लेषण के लिए एआई आधारित समाधान विकसित किए जा रहे हैं। यह पहल आपराधिक न्याय प्रणाली को आधुनिक और अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
संभावित प्रभाव
इस डिजिटल परिवर्तन से न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी आएगी और कानूनी मामलों में होने वाली देरी को कम करने में मदद मिलेगी। डिजिटल सम्मन और वारंट प्रणाली से मामलों की सुनवाई में तेजी आएगी और कानूनी दस्तावेजों की डिलीवरी में लगने वाले समय और मानव संसाधनों की बचत होगी। यह पहल न केवल पुलिस और न्यायपालिका के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करेगी बल्कि अपराधियों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करने में भी सहायक होगी।
माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में आपराधिक न्याय प्रणाली में इस डिजिटल सुधार से न केवल जांच और अभियोजन प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी, बल्कि न्याय देने की प्रक्रिया भी तेजी से हो सकेगी।
ये खतरे भी हैं…
इन डिजिटल सुधारों के ये कई लाभ हैं, लेकिन इनके साथ कुछ चुनौतियाँ और संभावित खतरे भी सामने आते हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सबसे प्रमुख चिंता डेटा सुरक्षा और गोपनीयता की है। डिजिटल माध्यम से एफआईआर, केस डायरी, और सम्मन जैसी संवेदनशील जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध होने से साइबर हमलों, डेटा चोरी, और दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, आपराधिक न्याय प्रणाली के कई अधिकारी और कर्मचारी तकनीकी रूप से प्रशिक्षित नहीं हो सकते, जिससे इस सुधार के प्रभावी क्रियान्वयन में मुश्किलें आ सकती हैं। डिजिटल माध्यम से जारी सम्मन और वारंट की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना भी एक बड़ी चुनौती है, खासकर तब जब प्राप्तकर्ता भेजी गई जानकारी को अस्वीकार कर दे।
डिजिटल असमानता भी एक चिंता का विषय है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों और वंचित समुदायों के कई लोगों के पास डिजिटल साधनों और इंटरनेट की सुविधा नहीं होती। इससे यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है कि सभी को न्यायिक प्रणाली का समान लाभ मिल सके। इसके अलावा, साइबर अपराध का खतरा भी बढ़ सकता है, जिससे संवेदनशील जानकारी लीक होने की संभावना रहती है। व्यवहारिकता और विश्वसनीयता से जुड़े सवाल भी उठते हैं; यदि कोई व्यक्ति तकनीकी कारणों से सम्मन प्राप्त नहीं कर पाया या उसने इसे प्राप्त करने से इनकार कर दिया, तो इसे साबित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
इन जोखिमों को कम करने के लिए एक मजबूत साइबर सुरक्षा ढांचा तैयार करना, अधिकारियों को उचित तकनीकी प्रशिक्षण देना, और एक समावेशी प्रणाली बनाना आवश्यक है, ताकि आपराधिक न्याय प्रणाली में ये डिजिटल सुधार सही दिशा में काम कर सकें।
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