धार के लोगों के साथ-साथ आसपास के जिलों के लोगों को भी इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। शहरवासियों की आस्था का केंद्र भगवान धारनाथ का छबीना सोमवार को निकाला गया। गाजे-बाजे और शाही ठाठ-बाट के साथ धारेश्वर मंदिर से माझी समाज के युवाओं ने भगवान शिव की पालकी को कंधे पर उठाकर यात्रा की शुरुआत की।
पालकी के आगे श्रद्धालुओं की लंबी कतारें थीं, जिसमें लोग हाथों में झाड़ू लेकर सड़कों को बुहार रहे थे। इस दौरान बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था, और हर प्रमुख पॉइंट पर पुलिस व नगर पालिका की टीम मौजूद थी। छबीने में झांज-मंजीरे बजाते हुए युवाओं की टोलियों ने माहौल को भक्तिमय बना दिया।
पालकी के साथ चल रहे समारोह में जब ‘कर्पूर गौरम करणौ अवतरण’, ‘तेरे जैसा यार मिले भोले’, ‘भोला नहीं माने तो नहीं माने…’, ‘भोला भांग तुम्हारी…’, ‘बम लहरी बाबा बम लहरी…’, ‘भोले हो भोले…’ जैसे भजन डीजे और बैंड पर बजे, तो भक्तगण भगवान धारनाथ के रंग में झूम उठे। पालकी का मार्ग शहर के प्रमुख रास्तों से होकर गुजरा, जहां लोगों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की।
इस छबीने की शुरुआत शाम 4 बजे धारेश्वर महादेव मंदिर से हुई। इस अवसर पर विधायक नीना वर्मा, कलेक्टर प्रियंक मिश्रा, और एसपी मनोज कुमार सिंह ने भगवान शिव के पवित्र मुखौटे का पूजन कर आरती की। इसके बाद पुलिस सशस्त्र बल की टुकड़ी द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। पालकी की शुरुआत के साथ ही भक्तगण मार्ग की सफाई करते नजर आए, जिसमें जनप्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल थे।
धारनाथ की एक झलक पाने के लिए उमड़े भक्त:
जैसे ही पालकी धारेश्वर मार्ग पर आई, पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया। हर वर्ष श्रावण माह की समाप्ति के दूसरे सोमवार पर निकलने वाला यह भव्य छबीना इस बार भी धूमधाम से निकला। राजा भोज के समय से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें भगवान शिव शाही पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं और प्रजा का हाल जानते हैं। धर्म स्थान रक्षक मंडल के तत्वावधान में आयोजित इस यात्रा में धारेश्वर मंदिर और विभिन्न संगठनों की भागीदारी होती है।
हर साल बढ़ रहा है छबीने का महत्व:
धारेश्वर भगवान की पालकी यात्रा सोमवार को धूमधाम से निकली, जिसमें जनप्रतिनिधियों के अलावा पुलिस और प्रशासन का बड़ा अमला तैनात रहा। छबीने में भक्तों की भारी भीड़ रही। मंदिर परिसर में सुबह ब्राह्मणों ने रुद्राभिषेक किया, और फिर दोपहर 3 बजे भगवान का मुखटा बाहर निकाला गया। धार के छबिने का महत्व बड़ा ही खास है, जो सालों से निर्वाह किया जा रहा है। पहले और अब के स्वरूप में बदलाव जरूर आया है, लेकिन परंपरा आज भी वही है। पहले बैलगाड़ी के साथ हारफूल और केले के पत्तों से पालकी सजाई जाती थी, जबकि अब इसे धूमधाम से नगर भ्रमण कराया जाता है।
दो दर्जन से ज्यादा झांकियां व अखाड़े हुए शामिल:
छबीने में झांकियां और अखाड़े भी शामिल थे, जो चल समारोह का हिस्सा बने। धारेश्वर मंदिर से इसकी शुरुआत हुई, और पूरे शहर में भगवान ने नगर भ्रमण किया। इस आयोजन के लिए जगह-जगह स्वागत मंच और अन्य व्यवस्थाएं की गईं। नगर भ्रमण के दौरान मुख्य क्षेत्र में आवाजाही बंद रही। पालकी के पीछे अखाड़े और झांकियां शामिल थीं, जिनमें शिव महिमा आधारित झांकियां भी थीं। इन झांकियों में बड़े आकार की शिव प्रतिमा भी बनाई गई थी, जो विशेष आकर्षण का केंद्र रहीं।
12 डीएसपी, 25 थाना प्रभारी:
बाबा धारनाथ की सवारी के लिए पुलिस ने पुख्ता इंतजाम किए थे। हाइराइज बिल्डिंग्स पर तैनाती के साथ शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस की पहरेदारी रही। एएसपी डॉ. इंद्रजीत बकलवार के अनुसार, 12 डीएसपी, 25 थाना प्रभारी सहित लगभग 700 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। सोमवार दोपहर को पुलिस कंट्रोल रूम पर एसपी मनोज कुमार सिंह के निर्देशन में आरआई पुरतोषम विश्नोई द्वारा कार्य का विभाजन कर पुलिस दल को अलग-अलग क्षेत्रों के लिए रवाना किया गया।
मुख्य झलकियां:
● पालकी के मुख्य मार्ग पर आने से पहले पुलिस प्रशासन ने झाबुआ और अलीराजपुर की बसों सहित ट्रैफिक को डायवर्ट कर दिया था, जिससे वाहन चालकों को परेशानी नहीं हुई।
● छबीने में शामिल भक्तों के लिए मंच से शरबत, केला, खिचड़ी और दूध का वितरण किया गया।
● संकरे मार्ग पर पार्क किए गए वाहनों के कारण कुछ स्थानों पर परेशानी हुई।
● सुरक्षा के लिए संवेदनशील इलाकों में पुलिस बल की तैनाती की गई।
● पुलिस प्रशासन ने पूरी पालकी यात्रा की वीडियोग्राफी भी करवाई।
● पालकी यात्रा के आगे घुड़सवार पुलिसकर्मी भी चल रहे थे।
● दोपहर 4 बजकर 5 मिनट पर बाबा धारनाथ की सवारी मंदिर परिसर से निकली।
● सांसद, विधायक और कई जनप्रतिनिधियों ने भी छबीने के आगे झाड़ू लगाई।
● सुबह से बारिश की फुहारों ने पालकी यात्रा को और भी खास बना दिया।
● पालकी यात्रा में एसडीएम, सीएसपी, डिप्टी कलेक्टर, सिटी मजिस्ट्रेट, सीएमओ और तहसीलदार व्यवस्था देख रहे थे।
● छबीने में विभिन्न संस्थाओं के युवा हाथ में झांज-मजीरे और डमरू बजाते हुए शामिल थे।