सरकार को समर्थन मूल्य पर मूंग देने के लिए किसानों को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। कहीं उन्हें सर्वेयरों की जेब गर्म करनी पड़ रही है तो कहीं कई दिनों तक ट्रैक्टरों में अनाज भरकर मंडी या वेयरहाउस में वक्त गुजारना पड़ रहा है। कहीं बरदाने नहीं हैं, जिससे उन्हें अपने अनाज को बेचने का इंतजार करना पड़ रहा है। कहीं अनाज का पैसा एक-एक माह गुजर जाने के बावजूद नहीं मिला है।
पूरे मध्यप्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग खरीदी का अंतिम दौर है। हर जगह किसान सरकार की ढुलमुल नीतियों और केंद्र की व्यवस्थाओं से दो-चार हो रहा है। इसकी कुछ बानगी प्रदेश के दो बड़े खेतीबाड़ी वाले जिलों में आसानी से देखी जा सकती है कि किस तरह किसान व्यवस्थाओं से परेशान हैं। प्रदेश में अच्छी खेती-बाड़ी करने वाले जिलों में विदिशा और नरसिंहपुर शामिल हैं।
पहले विदिशा जिले की बात करें तो लोगों को याद होगा कि एक हफ्ते पहले ही नरसिंहपुर जिले के पड़ोसी जिले रायसेन में राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने मूंग खरीदी केंद्र का जायजा लिया था और खरीदी केंद्र पर अवैध वसूली की शिकायत पर जमकर अधिकारियों की क्लास भी ली थी। लेकिन विदिशा जिले में ऐसा किसी भी जनप्रतिनिधि ने नहीं किया, जिसका फायदा उठाते हुए मूंग खरीदी केंद्र के जिम्मेदारों की सहमति से सर्वेयर द्वारा विदिशा जिला मुख्यालय की पुरानी उपज मंडी स्थित गोदाम क्रमांक 2 में हर एक किसान से 300 रु प्रति क्विंटल के हिसाब से वसूली की जा रही है, इसके बाद ही खरीदी की जा रही है। ऐसा कुछ आरोप मूंग की उपज तुलाने उपार्जन केंद्र पर पहुंचे किसान बाबू सिंह राजपूत ने लगाए।
बाबू सिंह राजपूत ने एक वीडियो साझा करते हुए पैसे के लेन-देन की पुष्टि भी की है। किसान ने बताया कि वह शुक्रवार को अपनी उपज लेकर खरीदी केंद्र पहुंचा था। वहां मौजूद सर्वेयर ने पैसे नहीं देने के कारण उपज को नहीं तौला। शनिवार को पैसे के लेन-देन की बात हुई, फिर उपज को तौला गया। लेकिन शनिवार को सर्वेयर ने 2700 रुपए लेने के उपरांत भी मूंग की खरीदी ऑनलाइन नहीं दिखाई। कच्ची हस्तलिखित पर्ची किसान को देकर शेष 300 रु और भुगतान कर ऑनलाइन पर्ची लेने को कहा। जिस पर किसान ने सोमवार की शाम ऑनलाइन पर्ची के लिए बकाया 300 रु दिए, तब उसकी उपज को ऑनलाइन विक्रय होना दर्शाया गया।
जब हमने इस मामले में किसान कल्याण तथा कृषि विकास अधिकारी केएस खपेडिया (डीडीए विदिशा) से बातचीत की तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए सारी बात मार्फेड जिला अधिकारी केएस ठाकुर पर डालते हुए उनसे संपर्क करने को कहा। जब केएस ठाकुर से बात करना चाहा तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
जब विदिशा जिला मुख्यालय का यह हाल है तो जिले के अन्य खरीदी केंद्रों की वास्तविकता को बेहतर समझा जा सकता है।
अब देखिए दूसरे जिले नरसिंहपुर की भी तस्वीर…
नरसिंहपुर जिले में प्रशासन द्वारा करीब 41 मूंग उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं, लेकिन अब मूंग उपार्जन खरीदी केंद्रों पर बारदाने उपलब्ध नहीं कराए जा रहे। बारदाने नहीं होने के कारण मूंग विक्रय करने में किसानों को 5 से 6 दिन का इंतजार करना पड़ रहा है। बारदाने की कमी का ऐसा ही मामला लिंगा में बने मूंग उपार्जन केंद्र नायक देवी प्रभा वेयरहाउस में देखने को मिला। यहां पर किसानों ने बताया कि 6 दिनों से हम कतार में लगे हुए हैं, लेकिन बारदाने की कमी के कारण हमारी मूंग खरीदी नहीं हो पा रही है। इसके पहले फटे बारदाने को किसानों ने सिलकर मूंग विक्रय की, अब तो फटे बारदाने भी नहीं बचे हैं। अब एक अधिकारी कहते हैं कि मार्फेड ने दूसरे विभाग से बारदाने उधार मांगे हैं।
प्रशासन को खरीदी केंद्र की तैयारियों में आखिर कहां चूक हुई कि बारदाने की कमी आ गई। जब इस बारे में डीएमओ मूलचंद कुसरे को अवगत कराया तो उन्होंने कहा कि पाली वेयरहाउस से वारदाना मंगवाए, लेकिन पाली वेयरहाउस में भी बारदाने नहीं मिल सके। किसान मायूस, बेबस होकर वेयरहाउस में तीन-चार दिनों से बारदाने का इंतजार कर रहे हैं और वेयरहाउस के बाहर लंबी-लंबी ट्रैक्टर ट्रक की लाइन लगी हुई है।
खरीदी केंद्र पर आए कृषि विभाग के अधिकारियों से भी किसानों ने शिकायत की, लेकिन वह भी बेअसर रही।
जिले के गाडरवारा तहसील में बने मूंग खरीदी केंद्रों में भी वारदाने नहीं हैं। उधर, किसानों को अनाज देने के महीने भर गुजर जाने के बावजूद भुगतान नहीं मिला है। मसलन, समनापुर के बाबूलाल पटेल कहते हैं कि उन्होंने लगभग 3.30 लाख रुपये की मूंग दी, लेकिन 24 जुलाई हो जाने के बावजूद उन्हें राशि का भुगतान नहीं हो सका।
किसान बाबूलाल पटेल का आरोप है कि सर्वेयर तंग करते हैं। कहीं एक या दो फीसदी मिट्टी कचरा होने के बावजूद उसे लिया नहीं जाता, जबकि जुगाड़ करने वालों की चार से पांच फीसदी कचरा होने पर भी आसानी से ले लिया जाता है। सर्वेयरों की मनमानी है, इन्हीं व्यवस्थाओं के कारण गांव के करीब 40% किसानों ने पंजीयन नहीं कराया।
इसके पहले मूंग खरीदी में उपार्जन सीमा को लेकर भी किसान काफी तंग रहे, इसलिए मजबूर होकर उन्होंने 7000-7100 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से व्यापारियों को अपनी उपज बेच दी। इसके बाद जब मांग उठी तो उपार्जन सीमा बढ़ाई गई, तब तक आधे से ज्यादा किसान 8454 की बजाय करीब 7000 रु प्रति क्विंटल की दर से अपनी मूंग बेचने मजबूर हो गए।
किसानों का तो अब आरोप है कि समर्थन मूल्य पर कोई भी खरीदी हो, हमेशा प्रशासन, सर्वेयरों, समिति प्रबंधकों की मनमानी चलती है इसलिए अब समर्थन मूल्य पर खरीदी बंद कर देना चाहिए।