आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) वैसे तो दशकों से हमारी मदद चुपचाप करता आ रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें जैसी तीव्र प्रगति देखी गई है उस लिहाज से 2023 के वर्ष को AI के ‘बिग बैंग’ क्षण के रूप में याद रखा जा सकता है। जनरेटिव AI (मनुष्य से सीखकर कंटेंट पैदा करने वाला AI) के आने से यह तकनीक अब लोकप्रिय मानस का हिस्सा बन चुकी है और हमारे लोकप्रिय विमर्शों को आकार देने के साथ-साथ निवेश और आर्थिक गतिविधि को प्रभावित कर रही है, भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा पैदा कर रही है और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर कलाओं तक हर किस्म की इंसानी गतिविधि को बदल रही है। हर हफ्ते कुछ न कुछ ऐसा नया घट रहा है जो सांसें रोक दे। AI की दिशा अब उलटने वाली नहीं है। बदलाव की रफ्तार बहुत तेज हो चुकी है।
इसी के साथ AI के संबंध में नीति-निर्माण की गति में भी तेजी आई है। नई नियामक पहलें शक्ल ले रही हैं और इस चुनौती भरे क्षण का सामना करने के लिए नए-नए मंच पनप रहे हैं। इनमें जी-7 समूह के देशों, यूरोपीय संघ और अमेरिका के प्रयास उत्साहजनक हैं, लेकिन इनमें कोई भी सार्वभौमिक नहीं है जो साझा वैश्विक संसाधन की नुमाइंदगी करता हो। वास्तव में, AI का विकास कुछ देशों में महज मुट्ठी भर सीईओ और बाजार ताकतों द्वारा परिचालित है जबकि बहुसंख्य की आवाज, विशेषकर दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों का मत AI के राजकाज से जुड़ी बहसों से नदारद है।
AI हमारे समक्ष जो विशिष्ट चुनौतियां पैदा कर रहा है, उस संदर्भ में इसका संचालन एक समन्वित वैश्विक नजरिये की मांग करता है और दुनिया में केवल एक ही ऐसी संस्था है जिसके पास ऐसी प्रतिक्रिया देने के लिहाज से आंतरिक समावेश मौजूद है: संयुक्त राष्ट्र। हमें यदि AI की संभावनाओं का दोहन करते हुए इसके द्वारा पैदा किए गए जोखिम का शमन करना है, तो इसके गवर्नेंस को दुरुस्त करना होगा। इसी बात को दिमाग में रखते हुए AI पर संयुक्त राष्ट्र की उच्च परामर्शदात्री इकाई की स्थापना की गई थी, जो AI के वैश्विक गवर्नेंस में मौजूद खामियों को संबोधित करने के लिए विश्लेषण और सिफारिशें मुहैया करवा सके। इस इकाई में दुनिया भर से 38 व्यक्ति शामिल हैं, जो भौगोलिक, लैंगिक, अनुशीलनात्मक पृष्ठभूमि और उम्र की विविधिता का प्रतिनिधित्व करते हैं और साथ ही जिनके पास सरकारों से लेकर नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और अकादमिया का व्यापक अनुभव मौजूद है।
इस परामर्शदात्री इकाई की कार्यकारी समिति का हिस्सा होने पर हम सम्मानित महसूस करते हैं। हमने इस समूह की एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की है जिसमें AI के गवर्नेंस से संबंधित पांच सिद्धांतों को प्रतिपादित किया गया है और कई परस्पर जुड़ी हुई चुनौतियों को संबोधित किया गया है।
पहला, चूंकि अलहदा वैश्विक संदर्भों में जोखिम अलग-अलग हैं इसलिए प्रत्येक के हिसाब से विशिष्ट समाधान की जरूरत होगी। इसमें यह हपचान किए जाने की जरूरत होगी कि कैसे प्रत्येक संदर्भ में AI के डिजाइन, उसके उपयोग (और दुरुपयोग) व गवर्नेंस के विकल्पों से अधिकारों और स्वतंत्रताओं को खतरा पहुंच रहा है। AI को रचनात्मक रूप से लागू करने में नाकामी- जिसे हम ‘उपयोग की चूक’ कहते हैं- अनावश्यक रूप से मौजूदा दिक्कतों और असमानताओं को बढ़ाने का काम कर सकती है।
दूसरे, AI के आर्थिक, वैज्ञानिक और सामाजिक विकास का एक औजार होने के नाते उसका परिचालन जनहित में ही होना चाहिए क्योंकि लोगों की दैनंदिन जिंदगी में यह पहले से ही योगदान दे रहा है। इसका मतलब है कि दिमाग में समता, सातत्य, और सामाजिक व निजी कल्याण के लक्ष्यों को लगातार रखा जाए और साथ ही व्यापक संरचनागत मसलों जैसे प्रतिस्पर्धी बाजारों और स्वस्थ नवाचारी प्रणालियों को भी संज्ञान में लिया जाए।
तीसरे, AI के ग्लोबल गवर्नेंस से उपजी चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में उभर रहे उसके नियामक ढांचे को समन्वित किया जाना होगा। चौथे, AI का परिचालन ऐसे हो जिससे कर्ता का महत्व कायम रहे और निजी डेटा की सुरक्षा और निजता भी कायम रहे। अंत में, AI का परिचालन संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में निबद्ध हो जहां कुछ मुद्दों पर व्यापक वैश्विक सहमति कायम है, जैसे सतत विकास के लक्ष्य।
AI के संदर्भ में इन सिद्धांतों की परिपुष्टि के लिए जरूरी है कि कुछ मुश्किल चुनौतियों से पार पाया जाए। AI कंप्यूटिंग की भारी-भरकम ताकत, डेटा और विशिष्ट मानवीय प्रतिभा से मिलकर बना है। इसलिए वैश्विक गवर्नेंस को यह ध्यान में रखना होगा कि इन तीनों तक व्यापक पहुंच कैसे विकसित और सुनिश्चित हो। इसमें AI पारिस्थितिकी के मूल में स्थित बुनियादी संरचना के लिए क्षमता संवर्द्धन को भी संबोधित किया जाना होगा, जैसे टिकाऊ ब्रॉडबैंड और बिजली- यह दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के लिए बहुत अहम होगा।
AI के विकास, तैनाती और उपयोग से उभरने वाले ज्ञात और अज्ञात खतरों का सामना करने के लिए भी महती प्रयासों की जरूरत होगी। AI के जोखिमों पर आजकल खूब बहस हो रही है। कुछ बहसों में तो मनुष्यता के अंत तक की बातें सामने आ रही हैं, तो दूसरी बहसों में मनुष्य को होने वाले नुकसानों पर बात हो रही है, लेकिन दोनों में ही इस बात पर मोटी सहमति है कि अनियामित AI से उपजे खतरे हमें स्वीकार्य नहीं हो सकते।
गवर्नेंस का अच्छा मानक ठोस साक्ष्यों के आधार पर तैयार होता है। हम AI की मौजूदा दशा और दिशा के वस्तुपरक आकलन की जरूरत को महसूस करते हैं, ताकि नागरिकों और सरकारों को उसके नियमन और नीति का एक ठोस आधार दिया जा सके। साथ ही एक विश्लेषणात्मक प्रेक्षण AI के सामाजिक प्रभावों पर भी होना चाहिए- नौकरियों के खात्मे से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरों तक- जिससे AI के दुनिया में पैदा किए वास्तविक बदलावों को समझने की सलाहियत नीति-निर्माताओं को मिल सके। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपने भीतर पुलिसिंग की क्षमता भी विकसित करनी होगी, जैसा वित्तीय संकट के क्षण में बड़े केंद्रीय बैंक करते हैं ताकि अस्थिर करने वाली संभावित घटनाओं की वे निगरानी कर सकें, उस पर प्रतिक्रिया दे सकें, जवाबदेही सुनिश्चित कर सकें और यहां तक कि अनुपालनात्मक कार्रवाइयों को भी अंजाम दे सकें।
यही कुछ सिफारिशें हैं जिन्हें हमने आगे बढ़ाया है। इन्हें बुनियादी ही समझा जाना चाहिए, न कि कोई सुरक्षा की छतरी। वास्तव में इससे भी आगे, ये सिफारिशें लोगों को एक न्योता हैं कि वे आगे आकर ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपनी राय रख सकें कि वे कैसा AI गवर्नेंस चाहते हैं।
AI को यदि अपनी वैश्विक संभावनाएं साकार करनी हैं, तो उसके विकास की प्रक्रिया में हम सब के बने रहने के लिए नए सुरक्षात्मक ढांचे और निगरानी प्रणालियां स्थापित करनी होंगी। AI के सुरक्षित, समतापूर्ण और जवाबदेह विकास में हर किसी की दावेदारी है। कुछ न करने का जोखिम भी स्पष्ट है। हम मानते हैं कि AI के वैश्विक राजकाज के मानक तय करना अनिवार्य है ताकि इस प्रौद्योगिकी द्वारा प्रत्येक देश, समुदाय और व्यक्तियों सहित आने वाली पीढि़यों के लिए पैदा की गई संभावनाओं की फसल काटी जा सके और जोखिमों को दूर किया जा सके।
इयान ब्रेमर, कार्मे आर्टिगास, जेम्स मानईका, और मारिएट श्चाके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर संयुक्त राष्ट्र की उच्चस्तरीय परामर्शदात्री इकाई की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं
(यह लेख प्रोजेक्ट सिंडिकेट से साभार प्रकाशित है)