अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, भोपाल के परिसर में 16-21जनवरी तक सालाना जलवायु महोत्सव का आयोजन हुआ। भोपाल में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय परिसर की स्थापना और संचालन शुरु होने के बाद यह पहला अवसर रहा जब शहर के सरकारी और निजी स्कूलों के बच्चे, शिक्षक, आस-पास के क्षेत्रों से आदिवासी समुदायों के लोग, अन्य राज्यों से संस्कृति कर्मी और युवा शोधार्थी इस परिसर में आए।
16 जनवरी से शुरू हुए इस आयोजन में अब तक शहर और आस-पास के सरकारी व निजी स्कूलों के लगभग 600 बच्चे और 50 शिक्षाओं ने शिरकत की और इस आयोजन को शिक्षण की जीवंत प्रयोगशाला के रूप में देखा। इसके अलावा, इन मुद्दों पर सक्रिय गैर-सरकारी संस्थाओं ने भी इस आयोजन को देखा।
इस वर्ष जलवायु -महोत्सव में अपने देश के जंगलों को केंद्र में लाया गया। भारतवर्ष अपनी- अपनी भौगोलिक विशिष्टताओं और विविधताओं से सम्पन्न व समृद्ध जंगलों से जन मानस के रिश्ते को समझने और महसूस करने के उद्देश्य से देश के जंगलों पर शोध हुआ।
यहां लगभग 60 युवा शोधार्थियों ने इन जंगलों से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात को समझा। इन जंगलों में निवासरत समुदायों के जीवन, उनकी संस्कृति और जंगलों के साथ उनके अनन्य सम्बन्धों का चित्रांकन, दस्तावेजीकरण किया गया।
इस आयोजन का शुभारंभ 16 जनवरी को मध्य प्रदेश शासन के पूर्व मुख्य सचिव और देश के ख्यात शिक्षाविद श्री शरद चन्द्र बेहार ने किया और मुख्य वक्ता के तौर पर मध्य प्रदेश और देश के जंगलों के महत्वपूर्ण अध्येयता एडवोकेट अनिल गर्ग ने शिरकत की।
आज जब पूरी दुनिया जलवायु -परिवर्तन के खतरों को लगभग स्वीकार कर चुकी है ऐसे में भारतवर्ष के जंगलों पर भी मंडरा रहे खतरों, विकास की अविवेकी व अंधाधुंध रफ्तार से कैसे जंगलों का वजूद खतरे में आ रहा है और इन खतरों से कैसे जंगलों और उनके ज़रिए मानव समुदाय के अस्तित्व को बचाया जा सकता है, इन तमाम पहलुओं पर भी इस वर्ष ध्यान खींचा गया।
इस आयोजन में विभिन्न गतिविधियां समानान्तर रूप से संचालित हुईं। जिनमें जंगलों के अलग अलग पहलुओं पर निर्मित शॉर्ट फिल्म्स, शोधार्थियों से चर्चा, तमाम पक्षों पर केन्द्रित कार्यशालाएं, जंगलों से प्राप्त होने होने वाले विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी और एक ही मंडप के नीचे पूरे देश के भूगोल में अवस्थित जंगलों की एक सुनियोजित प्रदर्शनी भी जिसका अवलोकन करना अपने आप में एक अनुभव रहा।
अन्य राज्यों से आए सांस्कृतिक जत्थों ने आदिवासी लोक संस्कृति और जंगलों पर आधारित नृत्य -संगीत व वाद्य यंत्रों की भी नुमाइश की। जिनका आनंद भी स्कूली विद्यार्थियों ने लिया। वो भी इन लोक-कलाकारों के साथ थिरके। इस आयोजन के माध्यम से कई संस्कृतियाँ एक दूसरे में शामिल होते हुईं दिखलाई दीं और भारत जैसे विशाल देश की विविधताएँ एक परिसर में अपनी छटा बिखेरती हुईं लगीं।
स्कूल के छात्रों ने अपने अनुभवों को बहुत बहुत खूबसूरती से बयान किया। सातवीं कक्षा के एक छात्र ने कहा कि- “इस प्रदर्शनी से गुजरने के बाद लगा कि जैसे हम पूरे भारत की यात्रा कर आए हों”। वहीं एक शिक्षक ने कहा कि –“यह हमारे दिमाग की खिड़कियाँ खुलने जैसा अनुभव रहा। भारत का विशाल भूगोल जंगलों से बना है और हमारे जंगलों के स्वस्थ होने से ही हम स्वस्थ रहेंगे”।
अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में स्थापित किया है जिसका व्यापक सामाजिक उद्देश्य एक न्यायसंगत, समतामूलक, मानवीय स्वभाव के अनुकूल और टिकाऊ समाज के निर्माण में योगदान देना है। इस उद्देश्य को इस आयोजन में इस्तेमाल हुए साधनों के रूप में भी देखा जा सकता है। हम देखते हैं कि जिन छात्रों पर यह प्रदर्शनी लगाई गई है वो बांस से निर्मित हैं और जिन्हें जंगलों पर आश्रित और बांस के उत्पादों में हुनर मंद समुदायों ने बनाया है। इसमें खर्च हुई राशि, ऐसे समुदायों के पास गयी है जो इस कौशल के आधार पर जीवन यापन करते हैं और इस प्रदर्शनी में नगण्य कार्बन फुट प्रिंट पैदा किए गए है।
फॉरेस्ट्स ऑफ लाईफ़ के साथ साथ 18 जनवरी को इसी परिसर में हम ‘हम भारत के लोग’– भारतीय संविधान पर आधारित प्रश्नोत्तरी (क्विज) का आयोजन भी किया गया। इस क्विज में 30 स्कूलों व कॉलेज से 11वीं-12वीं और स्नातक में अध्यनरत 120 छात्रों ने भाग लिया जिन्हें 60 टीमों में बांटा गया। प्रतियोगिता का संचालन नेक्सस एजेंसी ने किया जो कौन बनेगा करोड़पति जैसे शो का भी संचालन करती है। इस क्विज का उद्देश्य छात्रों के बीच भारत के संविधान, कानून, राजनीति और समसामयिक घटनाओं के प्रति जागरूकता लाना व इनके प्रति सजग होकर एक अच्छे नागरिक बनने की तैयारी करना था।
इस क्विज में 62 शैक्षणिक संस्थाओं ने सहभागिता की। प्रत्येक संस्थान से 2 विद्यार्थियों ने भाग लिया। कुल 64 टीमें शामिल हुईं। कुल प्रतिभागियों की संख्या 128 रही। इस प्रतियोगिता में शासकीय आईईएचई की टिम को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। वहीं नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी की टीम दूसरे और सागर पब्लिक स्कूल, साकेत की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। सभी विजेताओं को विश्वविद्यालय की ओर से पुरस्कार प्रदान किया गया।
इसी क्रम में 20 जनवरी को अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए जा रहे जन-व्याख्यान शृंखला के तहत देश के जाने -माने गांधीवादी पर्यावरणविद और ऐतिहासिक चिपको आंदोलन के नेता चांदी प्रसाद भट्ट ने नरोना अकादमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट के सभागार में शहर में अपना व्याख्यान दिया।