सोयाबीन उत्पादक किसान परेशान हैं। इस बार उन्हें अपनी इस फसल से अच्छी उम्मीदें थीं लेकिन मौसम के चलते वे नुकसान झेल रहे हैं। क्षेत्र में पहले सूखे और फिर तेज़ बारिश के कारण सोयाबीन को खासा नुकसान हुआ है। सूखे के दौरान सोयाबीन की फसल मुरझा गई थी तो अब भीषण बारिश ने एक बार फिर सोयाबीन की इस फसल को बर्बाद कर दिया है। इन दोनों मौसमों के बीच हजारों खेतों में से सोयाबीन की फसल पहले ही खत्म हो चुकी है। फिलहाल खेतों में पानी भरा हुआ है और किसान परेशान है। ऐसे में उत्पादन काफी कम होने की आशंका है।
जिन किसानों के खेत नदी, तालाबों के पास हैं उन्हें तो बहुत अधिक नुकसान हुआ है। उनके खेतों में पानी पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। इसके साथ जिन खेतों में पानी निकलने की जगह नहीं है वहां आज भी पानी भरा हुआ है। इसके अलावा पिछले कुछ दिनों में हर रोज़ पानी बरस रहा है और खेतों में खड़ी सोयाबीन गलने लगी है। ऐसे में जल्दी ही मौसमी राहत नहीं मिली तो फसल पूरी तरह खराब हो जाएगी। फसल पकने पर बरस रहे इस पानी से फल्ली में अंकुरण हो रहा है जो कि उपज के लिए ठीक नहीं।
लगातार बारिश से हाल बेहाल: पिछले दिनों हुई 40 घंटे से अधिक बरसात में हुई 18 इंच बारिश ने ग्रमीण इलाकों मे हाहाकार मचा दिया है। एक सप्ताह से मौसम साफ होने के बाद फिर से बारिश का दौर शुरू हो गया। रविवार से बूंदाबांदी शुरू हो गई लेकिन दोपहर बाद जोरदार बारिश हुई है। घने काले बादलों के छाए रहने के साथ ही गड़गड़ाहट के साथ जोरदार बारिश ने मौसम में ठंडक ला दी। अब खेतों में पानी भर गया है, ऊँचाई वाली जगह पर सोयाबीन की स्थिति थोड़ी ठीक है मगर निचली इलाकों में काफी नुकसान पहुंच रहा है।
बीते दिनों रुक-रुक कर हुई बारिश से खेतों में काटने के लिए खड़ी सोयाबीन की फसल खराब होने लगी है। बारिश के कारण सोयाबीन की फसल में लगी फलियों में दाने अंकुरित हो चुके हैं। इससे दाने को और अधिक नुकसान होने की आशंका है। इस साल मानसून की अनियमित गतिविधि के चलते किसानों को काफी परेशानी उठानी पड़ी है। फिलहाल सोयाबीन की उन किस्मों को ज्यादा नुकसान हुआ है जिनकी समयावधी कम है। जो कम दिन वाली फसल है वह पक कर कटने को तैयार थी और बारिश शुरू हो गई जिससे फलियों में नमी आ गई और वो अंकुरित हो गई। इसके कारण कम अवधि वाली सोयाबीन की फसल को भी अधिक नुकसान पहुंचा है। इससे दाना या तो गलकर खराब हो जाएगा या फिर दाग दार हो जाएगा। जिससे इन फसलों के दामों में काफी गिरावट आएगी।
जाते-जाते मानसून ने किसानों को रुला दिया वहीं अब आने वाली फसलों के लिए भी खेतों को सुधारने के लिए वक्त लगेगा। मजदूरों का नहीं मिलना भी किसानों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। वहीं जिले में पलायन के कारण मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं जिससे वह अपनी सोयाबीन की फसल नहीं कटवा पा रहे हैं वही हार्वेस्टर खेतों में डाल कर अपना नुकसान कर फसल कटवा रहे हैं।
मंडियों में सोयाबीन का भाव नहीं मिल रहा: इस बार मंडियों में सोयाबीन के सही भाव भी नहीं मिल रहे हैं। सोयाबीन में नमी के चलते व्यापारियों द्वारा सोयाबीन का भाव भी कम लगाया जा रहा है जिससे किसानों की चिंता और बढ़ गई है क्योंकि किसान अपनी फसल को कटाई के साथ मण्डी में बेच रहे हैं, उनके पास सुखाने की जगह नहीं है। बाजार धीमा होने के चलते अच्छी सोयाबीन के लिए भी भाव नहीं मिल रहे हैं। किसान लाखन डोडिया का कहना है कि एक तरफ मौसम साथ नहीं दे रहा है। वहीं मंडी में व्यापारी मनमाने दाम पर खरीदी कर रहे हैं। नए सोयाबीन की खरीदी 2500 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब बोली लगा रही है वही सबसे अच्छे सोयाबीन के दाम 3800 रुपए हैं जो पर्याप्त नहीं है। लाखन कहते हैं कि इस भाव में तो लागत भी नहीं निकाली जा सकती है।
कैसे लाभ का धंधा बनाए खेती को: जानकारी के मुताबिक शासन के तमाम प्रयासों के बावजूद खेती लाभ का धंधा नहीं बन पा रही है। कभी मौसम की मार तो कभी प्राकृतिक आपदा के अलावा प्रशासनिक बदइंतजामी के कारण किसान को खेती करने में फायदा नहीं हो पा रहा है। मौजूदा समय में यदि किसानों की समस्याओं को सिलसिलेवार ढंग से देखें तो इसका अंत होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अन्नदाता की मुश्किलों की कम होने का नाम ही नही है किसान तो प्रकृति पर ही निर्भर है। सकतली गांव के किसान कालू यादव ऐसा कहते हुए आगे बताते हैं कि अगर सरकारी व्यवस्था चाहे तो किसान को सोयाबीन का भाव तो सही दिलवा ही सकती है।
एक अन्य किसान आत्माराम चौधरी ने फसल बीमा को लेकर शिकायत की, उन्होंने बताया कि एक ओर पहले ही बारिश ने किसानों को परेशान कर दिया है वहीं दूसरी सर्वे के बाद भी अभी तक राहत राशि नही मिली है वही लगातार बारिश होने से सरकार द्वारा खेतों में कर्मचारियों को तो पहुंचा दिया मगर राहत के नाम पर बस कोरा कागज नजर आ रहा है वही अखबार-टीवी सरकारी विज्ञापन आया था कि किसानों को बड़ा बीमा दिया है लेकिन जमीनी स्तर पर हालात ठीक नहीं हैं।
एक अन्य बसंती लाल भाकर जो कि जिले के भाकर गांव में रहते हैं वे कहते हैं कि लगातार बारिश से सोयाबीन की कम अवधि वाली फसल को नुकसान हो रहा है। इसी तरह बारिश होती रही तो पौधों में ही दाने अंकुरित जाएंगे। इससे काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। अब खेतों में जो फसल बची है, किसान उसे कटवाने की तैयारियों में जुटे हैं। जमीन इतनी खराब हो चुकी है कि अगली फसल की बुआई के लिए भी मुश्किल से तैयार होगी।
फसल काटना ही मुश्किलः अनारद गांव के किसान दीपेंद्र डोडिया कहते हैं कि बारिश के बाद खेत गीले हो गए हैं। ऐसे में फसल काटने के लिए न तो हार्वेस्टर और न ही मजदूर खेतों में जा सकते हैं। फसल कटाई में हार्वेस्टर मशीन का उपयोग नहीं होने से मशीन मालिक भी परेशान हैं। उनका कहना है कि बारिश होने से कटाई रुकी हुई है और उनके हार्वेस्टर पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को भी दैनिक भुगतान नहीं मिल पा रहा है। हार्वेस्टर नहीं चलने से फसल कटाई की लागत ढाई गुना बढ़ गई है।