नई दिल्ली। भारत में ऐनिमिया से लड़ने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 80 करोड़ लोगों की आबादी को फोर्टिफाईड चावल दिए गए। फोर्टिफायड यानी जिसमें पोषक तत्व अलग से मिलाए जाते हैं और यह शारीरिक कमियों से लड़ने में अहम होते हैं। इस दौरान इस बात को भी नजर अंदाज़ किया गया कि इन चावलों का मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसकी फिलहा कोई जांच पूरी नहीं हो सकी है। अहम बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद लाल किले से इसका ऐलान किया।
वित्त मंत्रालय ने इस चावल का परिक्षण पूरा न होने की दलील पर इस योजना को प्री मेच्योर यानी समय से पहले बताया लेकिन पीएम मोदी ने इस तथ्य को नज़रअंदाज करते हुए इसकी घोषणा कर दी। इसे लेकर कांग्रेस अब सरकार को घेर रही है। पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस मुद्दे पर सरकार से कई सवाल पूछे हैं।
यह रिपोर्ट मूल रूप से रिपोर्टर्स कलेक्टिव में प्रकाशित हुई है जिसे पत्रकार श्रीगिरीश जैलहल ने लिखा है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार सरकारने एनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों के लिए राज्यों को 137.74 लाख टन से अधिक फोर्टिफाइड चावल आवंटित किया है।
भारत में 1.7 लाख से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। खाने में आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया में बढ़ोत्तरी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के 67.1% बच्चे और 15-49 वर्ष की आयु के बीच की 57% महिलाएँ एनीमिक हैं। 2015-16 की तुलना में 2019-2021 में बच्चों में खून की कमी के मामले 9% बढ़े। सरकार का दावा है कि आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी -12 से युक्त चावल भारत में बढ़ती सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की समस्या को कम करेगा। इससे पहले भारत में ऐसा आयोडीन युक्त नमक के वितरण और प्रचार के साथ किया गया था।
विशेषज्ञों का कहना है कि फोर्टिफिकेशन द्वारा सूक्ष्म पोषक तत्वों का कृत्रिम रुप से अनाज में पहुंचाा दीर्घकालीन समाधान नहीं है। वे कहते हैं कि एक विविध आहार और उचित मूल्य पर दिया जाने वाला पर्याप्त भोजन ही इसका समाधान है।
सरकार की शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने पहले ही इसे लेकर अपनी राय दी थी और कहा था कि फोर्टिफाइड चावल का स्कूल जाने वाले बच्चों में एनीमिया के स्तर को कम करने पर कोई ठोस प्रभाव नहीं पड़ा है।
Science hasn't yet given a thumbs up to fortified rice
ICMR research shows fortified rice had no substantive effect on mitigating anaemia levels among school-going children
Public health experts have been warning of the risks of mandatory rice fortification
Finance ministry…
— Anusha Ravi Sood (@anusharavi10) May 22, 2023
इसके अलावा सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी चावल पर फोर्टिफिकेशन के जोखिमों की चेतावनी देते रहे हैं। इस मामले को नीति आयोग ने भी अपने संज्ञान में लिया है। कृषि पर नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने नवंबर 2021 में कहा, “कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों ने बच्चों के स्वास्थ्य पर आयरन-फोर्टिफाइड चावल के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है। इसका उल्लेख डीजी (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च) ने भी किया था…”
ज़ाहिर बात है इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक ने इस योजना कोआगे बढ़ाने से पहले मानव स्वास्थ्य पर चावल के फोर्टिफिकेशन के प्रभाव पर विशेषज्ञों की एक विस्तृत श्रृंखला के परामर्श की आवश्यकता पर जोर दिया था। जाहिर बात है कि ICMR ने इसे लेकर आशंका जताई थी जिसे अंततः दरकिनार कर दिया गया।
इस रिपोर्ट के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार पर सवाल उठाने की शुरुआत कर दी है। सबसे पहले प्रवक्ता पवन खेड़ा मैदान में आए। उन्होंने गुरुवार को आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत 80 करोड़ लाभार्थियों के स्वास्थ्य पर ऐसे चावल के दुष्प्रभावों का पता लगाए बिना फोर्टिफाइड चावल वितरित किया है।
एक प्रेस वार्ता के दौरान पवन खेड़ा ने पूछा कि निर्धारित सूक्ष्म पोषक तत्वों से युक्त फोर्टिफाइड चावल प्रदान करने की योजना को लागू करने की इतनी क्या जल्दबाजी थी और “सरकार का विदेशी समूह रॉयल डीएसएम के साथ क्या संबंध है” जिसे चावल वितरित करने के लिए एक बड़ा ठेका मिला है।
कांग्रेस प्रवक्ता खेड़ा ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट विफल होने और विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) और नीति आयोग द्वारा कई चेतावनियों के बावजूद खाद्य सुरक्षा कानून के तहत फोर्टिफाइड चावल पेश किया।
नीति आयोग के शोधार्थियों के अनुसार, हाइपर टेंशन और डायबिटीज के मरीजों के लिए फोर्टिफाईड चावल हानिकारक है।
बगैर किसी गाइडलाइन के बोरी भेज दी जाती है, बिना यह बताए कि ये चावल किसे खाना है, किसे नहीं!
हम दावे के साथ कह सकते हैं कि वैज्ञानिक रिसर्च के माध्यम से ये निर्णय नहीं लिया… pic.twitter.com/718WpobSKS
— Congress (@INCIndia) May 25, 2023
खेड़ा ने रिपोर्ट्स के आधार पर दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने 2021 में स्वतंत्रता दिवस पर चेतावनियों के बावजूद फोर्टीफाइड चावल योजना को लागू करने के बारे में “असामान्य और अपरंपरागत” घोषणा की थी।
उन्होंने कहा कि नीति आयोग के कृषि सदस्य रमेश चंद ने बच्चों के स्वास्थ्य पर आयरन-फोर्टिफाइड चावल के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को उठाया था और आईसीएमआर के महानिदेशक ने इसे लागू करने से पहले मानव स्वास्थ्य पर चावल के फोर्टिफिकेशन के प्रभाव पर बड़े पैमाने पर विशेषज्ञों से चर्चा करने की जरुरत बताई थी।
अन तथ्यों के आधार पर खेड़ा ने कहा कि “इसका मतलब यह था कि ICMR – भारत की प्रमुख चिकित्सा अनुसंधान संस्था – को भी फोर्टीफाइड चावल की प्रभावशीलता के बारे में गंभीर संदेह था। नीति आयोग के नेशनल टेक्निकल बोर्ड ऑन न्यूट्रिशन की सदस्य अनुरा कुरपड ने पाया कि जिन बच्चों को आयरन फोर्टिफाइड चावल दिया गया, उनमें मधुमेह से जुड़े सीरम स्तर में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। उन्होंने पूछा कि “क्या 80 करोड़ लोग पीएम मोदी के फोर्टिफाइड चावल को गलत तरीके से थोपने की कीमत चुकाएंगे? क्या मोदी सरकार किसी विदेशी समूह से आसक्त हो गई थी या इसमें निहित स्वार्थ शामिल थे? ”
80 करोड़ लोगों को दिए गए अनाज पर यह रिपोर्ट काफी चौकाने वाली है और ज़ाहिर है इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सरकार पर आरोप और तेज़ होंगे। फिलहाल कांग्रेस ने इन आरोपों की शुरुआत कर दी है। जानकार बताते हैं कि इस मामले में अभी काफी तथ्य सामने आ सकते हैं।