…तो क्या सीएम चेहरे के खिलाफ है कांग्रेस आलाकमान?


कांग्रेस आलाकमान की ओर से राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भोपाल में पत्रकारों के सामने यह ऐलान करके कि राज्य में चुनाव चेहरे पर नहीं बल्कि मुद्दों पर लड़ा जाएगा, फिर एक बार इस विवाद को हवा दे दी है।


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अतिथि विचार Published On :
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सरयूसुत मिश्रा

एमपी कांग्रेस में भावी और अवश्यंभावी सीएम के चेहरे पर कमलनाथ के होर्डिंग-पोस्टर भी मध्यप्रदेश में चस्पा कर दिए गए। कमलनाथ समर्थक उन्हें भावी सीएम बताने का जहां कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं वहीं इसके विरोध में भी आवाजें आती रही हैं। कांग्रेस आलाकमान की ओर से राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भोपाल में पत्रकारों के सामने यह ऐलान करके कि राज्य में चुनाव चेहरे पर नहीं बल्कि मुद्दों पर लड़ा जाएगा, फिर एक बार इस विवाद को हवा दे दी है।

एमपी में कमलनाथ वरिष्ठता की नजर से आलाकमान से ऊपर की हैसियत रखते हैं। उनके समर्थक भावी सीएम का ऐलान बिना उनकी जानकारी के कर रहे होंगे ऐसा तो नहीं माना जा सकता।

मध्यप्रदेश के इतिहास में पहले कभी भी सीएम के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़े गए थे। चुनाव के बाद सीएम का चयन किया गया था। 2018 में भी सीएम चयन में कमलनाथ और सिंधिया खेमों के बीच विवाद के कारण ही कांग्रेस सरकार का पतन हुआ था। हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस ने सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था। हाल ही में कर्नाटक में भी पार्टी ने बिना किसी चेहरे के चुनाव जीता था। जीत मिलने के बाद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का चयन किया गया।

कांग्रेस का आलाकमान शायद मध्यप्रदेश में भी इसी रणनीति पर आगे बढ़ना चाहता है। एमपी में कांग्रेस कमलनाथ के नाम से ही जानी पहचानी जाती है। उनका खेमा यह बात मानने को तैयार ही नहीं है कि भावी सीएम का चेहरा पहले से सुनिश्चित रूप से जनता के सामने ना रहे। उनका खेमा 2018 की गलती दोहराना नहीं चाहता। चुनाव परिणाम पर भले ही कोई भविष्यवाणी करना अभी संभव नहीं हो लेकिन कांग्रेस में कमलनाथ खेमा भावी सीएम की भविष्यवाणी में किसी प्रकार की गलती नहीं करना चाहता।

एमपी कांग्रेस में भावी सीएम का विवाद लंबे समय से चल रहा है। कई नेताओं की ओर से सीएम चयन के लिए संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए ऐसे बयान दिए गए कि चुनाव के बाद फैसला किया जाएगा। कमलनाथ खेमा किसी भी स्तर पर उन्हें ही भावी मुख्यमंत्री घोषित करने की रणनीति पर काम कर रहा है। जगह-जगह होर्डिंग लगाए गए तो ट्विटर पर भावी और अवश्यंभावी सीएम का उद्घोष किया गया।

कमलनाथ और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के बीच चल रहे राजनीतिक विवाद में ऐसे मुद्दे सामने आ रहे हैं जो चेहरे के नजरिए से अपना प्रभाव डाल सकते हैं। 1984 के सिख दंगों को लेकर कमलनाथ पर गंभीर आरोप बीजेपी सरकार की ओर से लगाया गया है। राज्य के मंत्री विश्वास सारंग ने पत्रकार वार्ता करके यह आरोप लगाए हैं। वीडी शर्मा ने भी सिख दंगों में कमलनाथ की भूमिका पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि आयोग ने कमलनाथ को सस्पेक्टेड क्यों माना है? इस बारे में उन्हें जनता को जवाब देना चाहिए।

सिख दंगों का मामला मध्यप्रदेश में लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। कांग्रेस और कार्तिकेय सिंह चौहान के बीच ट्विटर युद्ध में भी सिख नरसंहार का मामला आ गया है। सिख नेता नरेंद्र सलूजा कभी कमलनाथ के मीडिया कोऑर्डिनेटर हुआ करते थे। सिख दंगों के नाम पर ही सलूजा ने कांग्रेस से किनारा करते हुए बीजेपी का हाथ थाम लिया है। कमलनाथ इस बात का खंडन कर रहे हैं कि सिख दंगों में उनकी कोई भूमिका थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि मेरे खिलाफ कभी भी ना कोई कार्रवाई हुई है और ना ही एफआईआर।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगों में हुए सिख नरसंहार की जांच में कई कांग्रेस नेताओं की भूमिका उजागर हुई है। अदालती कार्यवाही के बाद कांग्रेस नेताओं को सजा हुई है। जांच की प्रक्रिया नए सिरे से फिर से प्रारंभ हुई है। गूगल पर सिख दंगों में एमपी पीसीसी के अध्यक्ष के नाम पर सिख दंगों की कई तरह की खबरें दिखाई पड़ती हैं। इस बात पर भले ही कोई कानूनी स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन विवाद तो बना ही हुआ है।

मध्यप्रदेश में सिख दंगों का आरोप लगाकर कमलनाथ के चेहरे को सिख विरोधी साबित करने की बीजेपी की कोशिश राजनीतिक ही कही जाएगी। केंद्र में लंबे समय से बीजेपी की सरकार काम कर रही है। दंगों की जांच भी बीजेपी सरकार में ही नए सिरे से प्रारंभ हुई है। यदि कोई भी उन दंगों में शामिल रहा है और अभी तक बचा हुआ है तो ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। केवल राजनीतिक बयानों से समाज की भावनाओं पर मरहम नहीं लगाया जा सकता।

कमलनाथ के चेहरे को भ्रष्टाचार से जोड़ने की भी बीजेपी ने कोशिश की है। हाल ही में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कमलनाथ को कमीशन नाथ के रूप में संबोधित किया। कर्नाटक में बीजेपी सरकार के खिलाफ करप्शन को कांग्रेस ने एक बड़ा मुद्दा बनाया था। मध्यप्रदेश चुनाव में भी करप्शन बड़े मुद्दे के रूप में सामने आ सकता है। इन पांच साल के दौरान कमलनाथ की सरकार भी रह चुकी है और बीजेपी की सरकार भी काम कर रही है। गवर्नेंस और करप्शन के पब्लिक एक्सपीरियंस को चुनाव के दौरान निश्चित रूप से महसूस किया जाता है। दोनों दल एक दूसरे को करप्शन से जोड़ने की शुरुआत कर चुके हैं।

कमलनाथ को यदि भावी सीएम का चेहरा अधिकृत रूप से कांग्रेस की ओर से घोषित नहीं किया जाता है तो कांग्रेस आलाकमान और कमलनाथ समर्थकों के बीच तनावपूर्ण माहौल दिखाई पड़ने की पूरी संभावना है। एमपी में कमलनाथ ही कांग्रेस के फंड मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं। कमलनाथ की वरिष्ठता और राजनीतिक अकड़ के कारण बड़ी संख्या में कांग्रेस के लोगों में निराशा देखी जा सकती है। ‘चलो-चलो’ की उनकी शैली लगातार कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने मध्यप्रदेश कांग्रेस की वास्तविक स्थितियों से पूरी तौर से अवगत हुए बिना ही आलाकमान की ओर से मुद्दों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करके एक राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। वैसे तो कांग्रेस विभिन्न खेमों के बीच एकता दिखाने की पूरी कोशिश कर रही है। सत्ता में हिस्सेदारी और लोकलुभावन वायदों के जरिए कांग्रेस को जोड़े रखने की कवायद चल रही है। कांग्रेस के डीएनए में गुटीय राजनीति और विरोधी खेमे को निपटाने की नीति हमेशा से रही है।

कांग्रेस आलाकमान ने सिख दंगे, कमीशन नाथ और बीजेपी की ओर से कमलनाथ के चेहरे पर लगाए जा रहे आरोप से बचने के लिए शायद चेहरे को पीछे रखने का मन बनाया है। कर्नाटक में मुद्दों पर मिले राजनीतिक लाभ के कारण भी शायद पार्टी इस बात के लिए प्रेरित हुई है कि चेहरे की बजाय मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाए। कांग्रेस की मध्यप्रदेश में रही पुरानी सरकारों में संतुलन बनाने के लिए उप मुख्यमंत्री बनाए गए थे। मध्यप्रदेश के भविष्य की राजनीति चेहरे से मुद्दे की ओर करवट ले रही है। चुनाव से पहले अभी कई करवट देखने को मिल सकती हैं।

(आलेख लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)