रेवड़ी कल्चर ही बना वर्तमान राजनीति में सत्ता का सत्य


लोकतंत्र में बहुमत पाने के लिए यह तरीके भले ही देर से सही लेकिन आत्मघाती ही साबित होंगे। भूल होना प्रकृति है मान लेना संस्कृति है और सुधार लेना ही प्रगति है।


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अतिथि विचार Published On :
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सरयूसुत मिश्रा

भगवान कृष्ण ने गीता में ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ का जीवन दर्शन हमें दिया है। सियासत की रेवड़ी कल्चर ने गीता ज्ञान को ही बदल दिया है। फल के लिए कर्म की कोई आवश्यकता ही नहीं है। चुनाव के समय सियासी दल अपनी फ्रीबी नीति के जरिए रेवड़ी कल्चर का खेल खुलकर खेलेंगे और सरकार बनने पर बिना किसी कर्म के फल मिल ही जाएगा।

रेवड़ी कल्चर की शुरुआत तो बहुत पहले से सियासत में हो गई थी लेकिन वर्तमान दशक में फ्रीबी योजनाएं ही सत्ता का सत्य बन गई हैं। कर्ज लेकर घी पीने की नास्तिक विचारधारा का सिद्धांत जैसे लौकिक भौतिकता पर ही निर्भर है। यह विचारधारा पारलौकिक चिंतन और अनुभूतियों को अस्वीकार करती है। वर्तमान सियासत भी सत्ता पाने के लिए लौकिक भौतिकता को ही अपना अंतिम सत्य मानती है। भले ही इसके लिए राज्य क़र्ज़ के जाल में फंस जाएँ। सत्ता का वर्तमान ही उनके लिए सत्य है। इसके लिए राज्य के कितने भी संसाधन लुटाये या उड़ाए जाएं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

फ्रीबी योजनाओं की भरमार आम आदमी पार्टी की राजनीति में उभार के साथ बढ़ती गई। दिल्ली और पंजाब में फ्रीबी बिजली-पानी और अन्य योजनाओं के जरिए सत्ता तक पहुंचने वाली इस पार्टी ने सभी राजनीतिक दलों को फ्रीबी नीति अपनाने के लिए मजबूर किया है। आर्थिक उदारवाद के प्रगतिशील कदम उठाने वाले राजनीतिक दल भी सत्ता के लिए फ्रीबी के प्रतिगामी कदम उठाने से कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। ना कोई दल बचा है और ना ही कोई राज्य बचा है जहां मुफ्तखोरी और रेवड़ी कल्चर की योजनाओं को सत्ता पाने के लिए जरिया ना बनाया जा रहा हो।

कर्नाटक में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत में पार्टी द्वारा वहां के नागरिकों को मुफ्त में दी गई 5 गारंटी की घोषणाओं का प्रभाव शामिल है। कांग्रेस की प्रचंड जीत में फ्रीबी की घोषणाओं को पूरा करने पर एक साल में ही 62 हज़ार करोड़ से ज्यादा राशि खर्च होने का अनुमान है। राहुल गांधी चुनाव प्रचार में यह घोषणा कर चुके हैं कि पहली कैबिनेट में ही पार्टी द्वारा दी गई सभी गारंटी योजनाओं को मंजूरी दी जाएगी।

इसका मतलब है कि कर्नाटक में नए मुख्यमंत्री और कैबिनेट के शपथ लेते ही 62 हजार करोड़ रुपए के खर्चों को मंजूरी दी जाएगी। इसके लिए यह नहीं देखा जाएगा कि राज्य की वित्तीय स्थिति क्या इतना अधिक खर्च करने के लिए सक्षम है या नहीं है। राज्य पर कर्जों के हालात का अध्ययन नहीं किया जाएगा। चुनावी वायदा किया गया है और पार्टी की प्रचंड जीत हुई है इसलिए लोगों को दी गई गारंटी के लिए योजनाओं को मंजूरी जरूर दी जाएगी।

योजनाओं के क्रियान्वयन में फिर वही राजनीतिक विवाद केंद्र और राज्य के बीच प्रारंभ होंगे। कांग्रेस ने कर्नाटक में गृह ज्योति योजना के तहत 200 यूनिट बिजली फ्री में देने की गारंटी दी है। इसके साथ ही गृह लक्ष्मी योजना के तहत परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को ₹2000 महीने देने का ऐलान किया गया है। युवा निधि के तहत बेरोजगार ग्रेजुएट को ₹3000 प्रतिमाह मिलेंगे। बेरोजगार डिप्लोमा धारकों को 15 सौ रुपए प्रतिमाह दिए जाएंगे। सभी महिलाओं को परिवहन निगम की बसों में फ्री यात्रा की सुविधा दी जाएगी। निशुल्क अनाज देने का भी वायदा किया गया है।

रेवड़ी कल्चर की योजनाओं को गरीबों के सशक्तिकरण के नाम पर भले ही क्रियान्वित किया जाता है लेकिन नगद पैसे से कभी किसी व्यक्ति का सशक्तिकरण नहीं हो सकता है। सशक्तिकरण के जरूरी है कि लोगों को शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजगार की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों, जब सरकारों के पास मुफ्तखोरी की योजनाओं के क्रियान्वयन से राशि ही नहीं बचेगी तब इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश कम ही होता जाएगा।

राज्य सरकारें वेतन और पेंशन के साथ ही कर्जों के ब्याज चुकाने के लिए भी कई बार ऋण लेने के लिए मजबूर होती हैं। हिमाचल के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की जीत में ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली का वायदा भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार ने अपने राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का आदेश जारी करदिया है। पुरानी पेंशन योजना राज्यों की अर्थव्यवस्था के लिए इतना बड़ा प्रतिगामी कदम साबित होगा कि राज्य सरकारों का भविष्य वित्तीय अंधकार में डूब जाएगा।

रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने राज्यों की वित्तीय स्थिति पर अनेक बार रिपोर्ट जारी की है। उसमें यह बताया गया है कि कैसे कई राज्य कर्जों के जाल में फंसते जा रहे हैं। राज्य सरकारों का वित्तीय प्रबंधन बड़े संकट की तरफ बढ़ रहा है। राज्यों के आर्थिक हालात चिंताजनक होने के बाद भी रेवड़ी कल्चर की सियासत रोके से नहीं रुक रही है।

बीजेपी सरकार द्वारा भी कमोबेश इसी प्रकार की योजनाएं मतदाताओं को लुभाने के लिए क्रियान्वित की जाती हैं। मध्यप्रदेश में ‘लाडली बहना योजना’ आगामी चुनाव में बीजेपी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है। इसे सरकार का बड़ा चुनावी दांव माना जा रहा है। तीन साल तक लाडली बहनों को इस योजना में ₹1000 प्रति माह दिए जाने पर लगभग 41923 करोड़ रुपए का भार आएगा। राज्य मंत्रिपरिषद ने इस राशि की मंजूरी प्रदान कर दी है।

लाडली बहना योजना के सकारात्मक भाव से भयभीत मध्यप्रदेश कांग्रेस ने ‘नारी सम्मान योजना’ के नाम पर मौजूदा सरकार की योजना से बढ़कर राशि देने का ऐलान कर दिया है। इसके लिए बाकायदा फॉर्म भरवाए जा रहे हैं। प्रदेश की महिलाओं को चुनाव में लाडली बहना और नारी सम्मान के बीच में चुनाव करना है। सरकारी खजाने से इतनी बड़ी धनराशि खर्च कर महिला सशक्तिकरण की बातें की जा रही हैं।

वही सरकार सबसे उत्तम होती है, जिसमें गरीब-कमजोर और लाचारों का शोषण नहीं होता। रोटी कपड़ा और मकान की बुनियादी सुविधाओं पर सरकार राज्य के संसाधन को खर्च करती है। अगर आवास को बुनियादी जरूरत के रूप में देखा जाए तो आवासहीन को आवास उपलब्ध कराने के लिए योजनाओं पर निवेश को सशक्तिकरण के रूप में माना जा सकता है। प्रधानमंत्री आवास योजना में जो भी हो रहा है उससे निश्चित रूप से आवासहीन परिवारों का सशक्तिकरण हो रहा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर के रूप में विकास के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकारों का दायित्व है। फ्रीबी में नगद पैसे देकर लुभाने से भले ही राजनीतिक लाभ मिल जाए लेकिन इससे पाने वाले के जीवन में कोई बुनियादी बदलाव आने की कोई भी संभावना नहीं बन सकती।

फ्रीबी कल्चर के लिए किसी एक दल को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अब तो सभी दल चुनावी युद्ध में फ्रीबी योजनाओं के अस्त्र का खुलकर प्रयोग कर रहे हैं। मुफ्तखोरी का सियासी खेला अब तो राज्यों पर भारी पड़ने लगा है। पड़ोसी मुल्कों के अनुभवों को देखकर तो डर लगने लगा है कि सियासी लीला कहीं भस्मासुर जैसा सियासत को ही भस्म ना कर दे।

राजनीतिक दल एक दूसरे के रिएक्शन में दो कदम आगे निकलने की होड़ में लगे हुए हैं। यह प्रतिस्पर्धा इतनी तेजी से चल रही है कि कोई देख ही नहीं पा रहा है कि इससे राज्य सरकारों की आर्थिक जमीन ही खिसक रही है। कर्महीनता और अकर्णमयता को बढ़ावा मिल रहा है। लोकतंत्र में बहुमत पाने के लिए यह तरीके भले ही देर से सही लेकिन आत्मघाती ही साबित होंगे। भूल होना प्रकृति है मान लेना संस्कृति है और सुधार लेना ही प्रगति है।

(आलेख लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)