सरयूसुत मिश्रा
लव जिहाद, आतंकवाद और धर्मांतरण हमेशा अंतरात्मा को झकझोरते रहे हैं. भारत का इतिहास अक्रान्ता शासकों से भरा पड़ा है. इतिहास की घटनाओं पर विवाद के हल के लिए अनेकों मामले अदालतों में चल रहे हैं. कोई भी स्टोरी बिना दो पक्षों के पूरी नहीं होती. वास्तविक तथ्यों खास करके धर्म संप्रदाय, लव जिहाद और आतंकवाद की स्टोरी पर बनने वाली फिल्मों के विवाद ट्रेलर के साथ ही शुरू हो जाते हैं. ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म पर भी ऐसे ही विवाद लगातार बने हुए हैं.
‘द केरला स्टोरी’ यह फिल्म दक्षिणी राज्य केरल में हिंदू और ईसाई लड़कियों के धर्मांतरण और लव जिहाद के बाद उन्हें आतंकवादी संगठनों तक पहुंचाने की कहानी है. निर्माताओं का यह दावा है कि यह कहानी वास्तविक घटनाओं पर आधारित है. इतिहासकारों की ओर से ‘द केरला स्टोरी’ पर भले ही कोई तथ्यात्मक कमियां स्थापित नहीं की जा रही हों लेकिन ‘द केरला स्टोरी’ की पॉलिटिकल स्टोरी मूल फिल्म से ज्यादा चर्चा में है.
सुप्रीम कोर्ट ने ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म रिलीज होने के पहले भी उस पर प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया था. यह फिल्म रिलीज हुई लेकिन कुछ राज्यों में फिल्म पर घोषित-अघोषित प्रतिबंध लगाया गया. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने बैन का सरकारी आदेश जारी कर फिल्म को प्रतिबंधित करने का फरमान जारी कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबंध पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार से जवाब मांगा है कि जब पूरे देश में फिल्म चल रही है तो फिर पश्चिम बंगाल में ही प्रतिबंध क्यों लगाया गया है क्या पश्चिम बंगाल देश से अलग है?
‘द केरला स्टोरी’ फिल्म और उसकी कमाई हर रोज नए कीर्तिमान बना रही है. इस फिल्म में यह बताया गया है कि केरल में हिंदू और ईसाई लड़कियों को लव जिहाद के अंतर्गत धर्म परिवर्तन करा कर विवाह किया जाता है और फिर उन्हें दूसरे देशों के आतंकवादी संगठनों तक पहुंचा दिया जाता है. लड़कियों के धर्म परिवर्तन को लेकर केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने यह बयान दिया था कि हर साल राज्य में लगभग 3000 लड़कियां धर्म परिवर्तन का शिकार हो रही हैं. यह गतिविधियां 10 सालों से चल रही हैं. उनके बयान के आधार पर यह फिल्म 32000 लड़कियों के धर्म परिवर्तन की बात करती है. संख्या कम या ज्यादा पर सवाल बहुत अर्थपूर्ण नहीं है. यथार्थ यह है कि लड़कियों को लव जिहाद के नाम पर धर्म परिवर्तन कराया जाता है.
कश्मीर फाइल्स फिल्म जब आई थी तब भी राजनीतिक विवाद पैदा हुए थे. ऐसा कहा जा रहा था कि इस फिल्म का निर्माण बीजेपी और आरएसएस के इशारे पर एक धर्म विशेष को टारगेट कर ध्रुवीकरण के दृष्टिकोण से किया गया है. ‘द केरला स्टोरी’ के समय भी इसी तरह के राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं. कर्नाटक चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फिल्म का चुनावी भाषण में जिक्र किया. इसके बाद ऐसे राजनीतिक आरोप चस्पा किए गए कि ध्रुवीकरण के नजरिए से इस फिल्म का उपयोग किया जा रहा है.
ऐसी खबरें भी आईं कि तमिलनाडु सरकार ने ‘द केरला स्टोरी’ को राज्य के सिनेमाघरों में नहीं चलाने के लिए सिनेमाघर मालिकों को सहमत कर लिया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो अपनी सरकारी शक्ति का उपयोग करते हुए फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है.
किसी भी फिल्म का चाहे राजनीतिक रूप से प्रमोशन किया जाए या प्रतिबंध लगाया जाए दोनों मामलों में उद्देश्य ध्रुवीकरण ही दिखाई पड़ता है. ममता बनर्जी अपने राज्य में मुस्लिम ध्रुवीकरण को अपनी बड़ी राजनीतिक ताकत मानती हैं. शायद इसी ताकत को मजबूत करने के लिए अब ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म पर प्रतिबंध लगाया गया है. सुप्रीम कोर्ट की दखलंदाजी से शायद यह प्रतिबंध समाप्त हो जाए लेकिन प्रतिबंध लगाने का राजनीतिक मकसद तो पूरा हो ही गया है.
चाहे कोई मुद्दा हो या चुनाव, जब भी चयन की बात आती है तब दो पक्षों के मुकाबले में बहुमत को ही जीत मिलती है. जीत का यही लक्ष्य चुनाव के अलावा भी पूरे समय ध्रुवीकरण की राजनीतिक कोशिशों को अवसर प्रदान करता है. आजकल फिल्मों को भी ध्रुवीकरण का जरिया बनाया जाने लगा है. वैसे तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी सिस्टम को राजनीतिक रूप से प्रतिबंध लगाने का हक नहीं देती लेकिन राजनीति है कि मानती ही नहीं है.
‘द केरला स्टोरी’ फिल्म की कहानी वास्तविक घटनाओं पर आधारित प्रतीत होती है. ऐसी कहानी कमोबेश हर राज्य में देखने को मिलती है लेकिन केरल में ऐसी घटनाएं बड़ी संख्या में हुई हैं. इसके पीछे धार्मिक अतिवाद के साथ ही आर्थिक प्रगति की संरचना की महत्वपूर्ण भूमिका है. केरल देश का सबसे शिक्षित राज्य है. वहां की स्थानीय भाषा के साथ ही अंग्रेजी का ज्ञान वहां के युवाओं को देश और दुनिया में रोजगार की उपलब्धता को आसान बनाता है.
केरल के बारे में ऐसा सर्वविदित है कि वहां के युवक-युवतियां दुनिया के मुस्लिम राष्ट्रों में बड़ी संख्या में जाकर सेवा और रोजगार का काम करते हैं. केरल में लव जिहाद और धर्मांतरण के पीछे मुस्लिम राष्ट्रों में इस राज्य की बड़ी आबादी को रोजगार और मुस्लिम राष्ट्रों से आने वाले धन से केरल में रह रहे हिंदुओं और ईसाई परिवारों में आई प्रगति को भी जोड़ा जा रहा है.
मुस्लिम आबादी केरल में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से पहले से भी मज़बूत थी और अब धीरे-धीरे उनकी भागीदारी बढ़ती जा रही है. हिंदू और ईसाई परिवारों को इस बात का आभास कराया जाता है कि उनके जीवन में खुशहाली और आर्थिक बेहतरी मुस्लिम राष्ट्रों से मिलने वाले धन से आ रही है. जब कोई व्यक्ति जीवनयापन के लिए किसी ऐसे सामाजिक समुदाय पर निर्भर करता है जो उसकी धार्मिक आस्था के विपरीत होता है तब उसे रोजगार के लिए कामकाजी ढंग से कई बार कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं.
केरल के राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि वहां पर कम्युनिस्ट और कांग्रेस के बीच में सत्ता का हस्तांतरण होता रहता है. इन दोनों दलों के साथ ही बाकी दल फ्रंट बनाकर राजनीतिक ताकत का उपयोग करते हैं. केरल में हिंदूवादी राजनीति का जनाधार पहले तो नगण्य था जो अब धीरे-धीरे बढ़ रहा है. केरल की राजनीति में बीजेपी और संघ की बढ़ती भूमिका ही उस राज्य की सामाजिक विषमताओं को मुखरता से आगे ला रही है.
‘द केरला स्टोरी’ की पॉलिटिकल स्टोरी तो बहुत मायने नहीं रखती लेकिन इस फिल्म की जो स्टोरी है वह जरूर केरल और भारत के लिए बहुत मायने रखती है. धर्म परिवर्तन पर विवाद हमेशा होते रहे हैं. सनातन संस्कृति में धर्म परिवर्तन कभी भी कोई एजेंडा नहीं रहा है. इसके विपरीत कुछ धर्मों में उनके धर्म में नए लोगों को शामिल करने को धर्म की सबसे बड़ी सेवा के रूप में देखा जाता है. भारत में धर्मांतरण की समस्या के जड़ में धार्मिक अतिवाद की इसी मान्यता का बहुत बड़ा हाथ देखा जाता है.
‘द केरला स्टोरी’ की कहानी कितनी सही है कितनी नहीं, इस पर विवाद से ज्यादा जरूरी यह है कि धर्म में धर्मांतरण के सूत्र और उपदेशों को आधुनिकता के आधार पर परिवर्तित किया जाए. अगर यह माना जाएगा कि इस पुण्य कार्य को करने वाले को जन्नत का सुख मिलेगा तो फिर इसके लिए तो ऐसी सोच वाले किसी भी कीमत पर काम करने में लगे रहेंगे.
बीजेपी शासित राज्यों में ‘द केरला स्टोरी’ टैक्स फ्री हो रही है तो बाकी राज्यों में या तो प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं या अघोषित तौर से फिल्म का प्रदर्शन रोका जा रहा है. सोशल मीडिया के जमाने में यह तो संभव ही नहीं है कि किसी फिल्म को दर्शकों की नजर से प्रतिबंधित कर दिया जाए. प्रतिबंध एक तरह से इस बात पर सौगंध होती है कि किसी भी कीमत पर फिल्म को देखना है. कोई भी रोक इस बात की प्रेरणा देती है कि उसको जरूर देखना है.
समाज की वास्तविकताओं को सामने आना चाहिए. इससे जागरुकता बढ़ेगी और विकृति रुकेगी. जिहाद समाज के लिए मवाद जैसा है. इसमें भी लव जिहाद तो प्रेम और इंसानियत के लिए ही अभिशाप है. जिहाद आतंकवाद को तो बढ़ा सकता है लेकिन इससे प्रेम का भाव समाप्त हो जाएगा. जब यह भाव ही समाप्त हो जाएगा तो इंसान कैसे बचेगा? लव लव ही बना रहे जिहाद ना बने तभी इंसान से अस्तित्व की अपेक्षा पूरी हो सकेगी.
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)