नरसिंहपुर। नर्मदा नदी पर करेली तहसील में बन रहा चिनकी बैराज (डैम) अब जल्दी ही तैयार होने वाला है। यह बैराज करेली के अमोदा, कुरेला, ग्वारी आदि गांवों के में लगने वाली करीब 531 हैक्टेयर निजी जमीन प्रभावित होगी। ऐसे में प्रशासन खासा मुस्तैद नजर आ रहा है।
यहां ज्यादातर जमीनें आदिवासियों की हैं जिन्हें हालही में भू अर्जन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए बुलाया गया था। आदिवासियों के मुताबिक तहसील में उन्हें भू अर्जन संबंधी कोई जानकारी नहीं दी गई और उनसे कुछ कागज़ों पर दस्तखत करवा लिये गए।
इसके बाद ये आदिवासी परेशान हैं और पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी जमीन के बदले सरकार उन्हें क्या देने वाली है।
चिनकी बैराज की चर्चा पिछले काफी समय से है। यह रायसेन, नरसिंहपुर और होशंगाबाद जिलों के लिए बेहद अहम माना जा रहा है जहां इसकी मदद से एक बड़े इलाके में सिंचाई हो सकेगी।
करेली में नर्मदा के तट पर बना चिनकी घाट एक बड़ा बैराज नजर आएगा जो नदी के पानी को रोकेगा। इस तरह दोनों ओर से पहाड़ और मैदानों वाले इस इलाके में एक बड़ा जलाशय दिखाई देगा।
शांत इलाके में अब बड़ी मशीनों का शोर है जिसे स्थानीय गांव वाले रोजाना भीड़ के रुप में देखने जा रहे हैं। उन्हें डर है कि इस बांध से उनकी जमीनें खत्म हो जाएंगी लेकिन वे सरकारी व्यवस्था के आगे मजबूर हैं।
पानी के इसी भराव में कई आदिवासियों की ज़मीनें भी डूब रहीं हैं। इनमें अमोदा, कुरैला, ग्वारी, घूरपुर, समनापुर, पिपरहा, हीरापुर आदि कई गांव की जमीनें शामिल हैं। इनमें गांवों नोरिया, ठाकुर, केवट, मल्लाह ढ़ीमर, मेहरा, कोल, भारिया आदिवासी निवास करते है।
इन लोगों को 26 अप्रैल को स्थानीय तहसीलदार कार्यालय से भू अर्जन प्रक्रिया का नोटिस मिला जिसमें उनसे 27 अप्रैल को प्रक्रिया के तहत सीमांकन और बटांकन के लिए कहा गया।
जिन भी लोगों को नोटिस दिया गया था वे जब तहसील कार्यालय पहुंचे तो उन्हें प्रक्रिया के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। ग्राम अमोदा के पूरन को भी नोटिस मिला था।
वे बताते हैं कि तहसील दफ्तर पहुंचे तो उनसे तहसीलदार ने किसी कागज पर साइन करा लिए। पूरन कहते हैं कि हमें नहीं पता कि हमारी कितनी जमीन बांध में जा रही है और जब हमने अधिकारियों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने भी हमें कुछ नहीं बताया।
एक और प्रभावित गांव के निवासी बटन सिंह कहते हैं कि उन्हें नोटिस आया तो पता चला कि उन्हें पेशी पर जाना है। वह पेशी पर आए हैं।
वे कहते हैं कि उन्हें नहीं मालूम कि उनकी गांव में कितने लोगों की कितनी जमीनें जा रहीं हैं। कहते हैं कि पिछले दिनों जमीन के नाप के लिए पटवारी आए थे काफी देर तक काम करते रहे लेकिन उन्हें नहीं बताया कि किसकी जमीनें जा रहीं हैं।
इन आदिवासियों की कमाई अपनी इन जमीनों पर होने वाली फसलों से ही होती है। बटन सिंह बताते हैं कि वे अपनी जमीन पर सालाना दो बार फसल ले लेते हैं। ऐसे में उन्हें तीस-चालीस हजार रुपये की आमदनी हो जाती है और इसके बाद का खर्च मजदूरी करके चलाना होता है।
इस इलाके के आदिवासियों को इस बात की भी कोई जानकारी नहीं है कि इनकी जमीनें लेने के बाद सरकार इनका कहां पुर्नवास करने वाली है। इनके पुर्नवास की व्यवस्था के लिए भी अब तक कोई जानकारी औपचारिक रुप से जारी भी नहीं की गई है।
ग्रामीण पूछ रहे हैं कि उनकी खेती की जमीन अगर ली जा रही है तो क्या उन्हें खेती करने के लिए कोई और जमीन भी दी जाएगी। यह काम तहसीलदार कार्यालय से हो रहा है और ऐसे में बैराज निर्माण की सारी जानकारी वे ही दे सकते हैं।
तहसीलदार संजय मेश्राम से इस बारे में हमने कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया।
जिनकी आय का जरिया सिर्फ साल भर में ली जाने वाली एक या दो फसलें होती हैं। पूरी तरह से गरीबी में जीवन यापन कर रही यह आबादी मुख्य तौर पर कृषि मजदूरी और खेती बाड़ी पर ही निर्भर है और अब डूब में जमीन जमीन जाएगी।
डूब में आ रही जमीन के बदले पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था क्या होगी इस संबंध में गांव के लोगों को कोई भी जानकारी नहीं है। चिनकी में बनने वाले बैराज से 1 लाख 31 हज़ार 925 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई का और 50 मेगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
इसके लिए 5 हज़ार 434 करोड़ रुपये के टेंडर जारी हुए हैं। नर्मदा की धारा को रोकककर बांध का काम शुरु हो चुका है। बैराज डैम की लंबाई 404 . 10 मीटर की है जबकि उसकी ऊंचाई 25.92 मीटर है। इसका कैचमेंट एरिया 30 हज़ार वर्ग किमी का है।
इस बांध को लेकर पहले साल नवंबर माह में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के जरिये लोक जनसुनवाई भी हो चुकी है परंतु जिले के प्रभावित गांव के लोग वहां नहीं पहुंच सके और उनका पक्ष भी प्रभावी ढंग से नहीं रखा जा सका।