नई दिल्ली। एक देश के रूप में भारत विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के अधिकारों को लेकर दुनिया आगे रहा है। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट स्टडी ने पाया कि भारत की नीतियों ने महिलाओं को सशक्त बनाने और लैंगिक असमानता को कम करने में मदद की है।
महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण भारत के G20 एजेंडे के केंद्र में भी है। भारत में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी यह बताती है कि महिला सशक्तिकरण सिर्फ एक विकल्प नहीं बल्कि एक आवश्यकता है।
देश में बढ़ रही कामकाजी महिलाओं की भागीदारी के संबंध में केंद्र सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी। श्रम और रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि रोजगार और बेरोजगारी पर डेटा आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के माध्यम से एकत्र किया जाता है जो कि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा 2017-18 से आयोजित किया जाता है।
सर्वे की अवधि अगले साल जुलाई से इस वर्ष जून तक है। नवीनतम उपलब्ध वार्षिक PLFS रिपोर्ट के अनुसार देश में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं की सामान्य स्थिति पर अनुमानित श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) क्रमशः 2019-20, 2020-21 और 2021-22 के दौरान क्रमशः 30.0%, 32.5% और 32.8% थी, जो एक बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती है।
सरकार ने उठाए हैं कई कदम –
सरकार ने श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी और उनके रोजगार की गुणवत्ता में सुधार के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं। महिला श्रमिकों के लिए समान अवसर और सौहार्दपूर्ण कार्य वातावरण के लिए श्रम कानूनों में कई सुरक्षात्मक प्रावधान शामिल किए गए हैं।
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में सवैतनिक मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने, 50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में अनिवार्य क्रेच सुविधा का प्रावधान, पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ रात की पाली में महिला कर्मचारियों को अनुमति देने आदि के प्रावधान हैं।
महिला कामगारों किया जा रहा प्रशिक्षित –
महिला कामगारों की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए सरकार उन्हें महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के एक नेटवर्क के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
इसके अलावा, रोजगार सृजन के साथ-साथ रोजगार क्षमता में सुधार सरकार की प्राथमिकता है। तदनुसार, भारत सरकार ने देश में रोजगार पैदा करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
महिला कामगारों की सुरक्षा पर विशेष फोकस –
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य की स्थिति पर OSH 2020 कोड में महिलाओं के रोजगार के लिए प्रावधान है। इस कोड के अनुसार खुली खदानों सहित ऊपर की खदानों में महिलाओं को शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे के बीच और भूमिगत खदानों में सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे के बीच काम करने की अनुमति दी गई है।
इसी तरह महिलाओं को कार्यस्थल पर सहज अनुभव देने के लिए अनुकूल कार्य वातावरण भी तैयार तैयार किया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि मजदूरी से संबंधित मामलों में लिंग के आधार पर कर्मचारियों के बीच किसी प्रतिष्ठान या उसकी किसी इकाई में कोई भेदभाव नहीं किया जाए।
महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ी –
न्यू इंडिया के ग्रोथ साइकल में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। आज मुद्रा योजना की लगभग 70 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं हैं। करोड़ों महिलाओं ने इस योजना की मदद से अपना काम शुरू किया है और दूसरों को भी रोजगार देने का काम कर रही है।
पिछले 8 सालों में स्वयं सहायता समूहों की संख्या तीन गुना तक बढ़ी है और यही ट्रेंड हमें भारत के स्टार्टअप eco-system में भी देखने को मिल रहा है। इसके अलावा खेल के क्षेत्र में महिलाएं दुनिया में कमाल कर रही हैं, ओलंपिक्स में देश के लिए मेडल जीत रही हैं।
इंटरप्रेन्योर बन रही महिलाएं –
महिला उद्यमी भी पीछे नहीं हैं। भारत में, महिलाओं के पास 12 मिलियन से अधिक MSME यूनिट का स्वामित्व और चलाने का अनुमान है। महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों का मालिकाना MSME इकाइयों में 20% से अधिक हिस्सा है।
हम कह सकते हैं कि इंटरनेट और मोबाइल की पहुंच बढ़ने से देश में महिला उद्यमिता में पर्याप्त वृद्धि हुई है। जमीनी स्तर के उद्यमों में भी महिलाओं का दबदबा है। उदाहरण के लिए, खादी ग्रामोद्योग के 4 लाख 90,000 कारीगरों में 80% महिलाएं हैं।