इंदौर। वन अधिकार अधिनियम, 2006 के खराब कार्यान्वयन और वन विभाग के द्वारा बार बार परेशान किए जाने से नाराज़ आदिवासियों ने पिछले दिनों बुरहानपुर कलेक्टर कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में हजारों की संख्या में आदिवासी नागरिक मौजूद रहे। इस दौरान आदिवासियों ने एक रैली भी आयोजित की।
आदिवासियों का यह धरना प्रदर्शन जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) के बैनर तले किया गया। बीते 24 जनवरी को हुए इस प्रदर्शन में आदिवासियों ने कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर कलेक्टर भव्य मित्तल से बात करने की मांग की लेकिन कलेक्टर आदिवासियों से मिलने नहीं पहुंची। उन्होंने अपने कनिष्ठ अधिकारी एसडीएम दीपक चौहान के साथ एक आदिवासी विभाग के अन्य अधिकारी को प्रदर्शनकारियों से मिलने के लिए भेज दिया।
यह आदिवासी नागरिकों ने एसडीएम से वनाधिकार पट्टों को लेकर कई सवाल जवाब किए। इस दौरान कई सवाल ऐसे थे जिन पर प्रशासन कुछ खास जवाब नहीं दे सका। उन्होंने आरोप लगाए कि वन्य अधिकारी और पुलिस ही जंगलों में अवैध कटाई को बढ़ावा दे रहे हैं और इसके बदले मोटी कमाई कर रहे हैं। इन आदिवासियों ने नए वन संरक्षण नियम, 2022 का भी विरोध किया। यह नियम ग्राम सभा की सहमति के बिना वन भूमि को कंपनियों को सौंपने का अधिकार देता है।
“Over 1.36 Lakh acres of forest land has been diverted in the past 3 years – yet our people are being evicted in the name of artificial plantations and are criminalized for working on our own fields, in our own homes!”. pic.twitter.com/cr58BW4yJn
— Jagrit Adivasi Dalit Sangathan (@JADS_mp) January 26, 2023
आदिवासियों का कहना है कि वन विभाग द्वारा उन्हें बिना सत्यापन के या बिना किसी सूचना के ही बाहरी अतिक्रमणकर्ता बता दिया गया और उनकी खड़ी हुई फसलें खराब कर दी गईं।
इस दौरान आदिवासियों ने कहा कि प्रशासन को वन अधिकार अधिनियम के उचित क्रियान्वयन को तय करना होगा और अगर उन्हें यह कानून नहीं पता तो वे कुर्सी छोड़ दें हम इस कानून का पालन करवाएंगे।
Adivasi opposed the forest department, State and Central governments’ attempts to destroy forests by selling them to industries. District admin failed to answer any questions raised by Adivasis on the law, prompting Adivasis to demand that their offices be shut down! pic.twitter.com/r3YxuACK6t
— Jagrit Adivasi Dalit Sangathan (@JADS_mp) January 26, 2023
आदिवासियों ने मांग की कि उनके इलाकों में बेहतर शिक्षा और गांवों में बिजली होनी चाहिए इसके बिना उनके विकास का दावा झूठा है।
इन आदिवासियों ने वन विभाग और पुलिस के द्वारा आदिवासियों को दी जा रही प्रताड़ना पर स्थानीय प्रशासन की चुप्पी पर भी सवाल उठाए और आरोप लगाए कि कहा कि जिन लोगों ने वन अधिकारियों को भुगतान करने से इनकार कर दिया, उन्हें ‘बाहरी’ या ‘अतिक्रमणकारी’ करार दिया गया और उनकी फसल के लिए तैयार फसलों या यहां तक कि घरों को जेसीबी से काट दिया गया।
इसके अलावा इन आदिवासियों ने कई दूसरे विषयों पर भी अपनी बात कही।
किसान – मजदूरों को अपनी फसल का पूरा दाम देने, लागत पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य तय करने और इसे कानूनी अधिकार बनाने के वादें को सरकार ने तोड़ा है ।
किसानों को फसल का पूरा भाव नहीं मिलता एवं वे कर्ज में डूबते जा रहे है –देश में हर रोज 15 किसान और 115 मजदूर आत्महत्या करने मजबूर हैं! pic.twitter.com/x7j7TvhhOm— Jagrit Adivasi Dalit Sangathan (@JADS_mp) January 26, 2023
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश जनजातीय क्षेत्र विकास योजना (टीएडीपी) के अनुसार 17 अक्टूबर, 2022 तक आदिवासियों के 1.98 लाख दावों पर वन मित्र ऐप के माध्यम से समीक्षा करने का विचार किया गया है। इनमें से केवल 34,932 आवेदनों को स्वीकृति मिली जबकि 1.09 लाख आवेदनों को खारिज कर दिया गया जबकि 53, 517 आवेदन अब भी लंबित हैं।
न्यूज क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार एक अधिकारी ने कहा, “दस्तावेजों को सत्यापित करने और ग्राम सभा आयोजित करने की प्रक्रिया में COVID-19 लॉकडाउन के कारण देरी हुई। हम चीजों को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं।”
आंदोलनकारियों के अनुसार वन अधिकार अधिनियम के तहत उनके भूमि अधिकारों के सत्यापन की प्रक्रिया 15 साल बाद भी लंबित है। कुछ जगहों पर भूमि अधिकार आवेदनों को बिना ग्राम सभा आयोजित किए या सभा की सहमति के बिना खारिज कर दिया गया, जबकि कि इस पूरी प्रक्रिया का एक ज़रूरी हिसा है।