नई दिल्ली। साल 2016 में मोदी सरकार द्वारा लिए गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि फैसले के उद्देश्य पूरे नहीं हुए इसका मतलब यह नहीं हो सकता है कि फैसला गलत था। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले पर लगाई गईं सभी 58 याचिकाएं खारिज कर दी हैं। कोर्ट ने 7 दिसंबर 2022 को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस फैसले पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि कोर्ट ने अपने निर्णय में नोटबंदी के परिणाम पर कोई बात नहीं की।
The Supreme Court's verdict on #Demonetisation has nothing to say on whether the stated goals of this disastrous decision were met or not.
My statement on the matter: pic.twitter.com/63HpyvHK7e
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) January 2, 2023
फैसले के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के पीछे की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं थी और इस आर्थिक फैसले को अब पलटा नहीं जा सकता। साल 2016 में विवेक शर्मा नाम के एक व्यक्ति के द्वारा नोटबंदी को चुनौती देने वाली पहली याचिका दायर की गई थी इसके बाद 57 और याचिकाएं दायर हुईं। इन सभी याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंप दिया गया था। सोमवार को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से से यह फैसला सुनाया है। पीठ की एक न्यायाधीश ने कहा कि इस प्रक्रिया में संसद को बायपास नहीं किया जाना चाहिए था। संविधान पीठ के अध्यक्ष एस अब्दुल नज़ीर अगले दो दिनों में रिटायर होने वाले हैं।
जानकारों की मानें तो नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कोई बहुत अचरज भरा नहीं है। छह साल पुराने मामले में कोर्ट ने पहले ही सवाल उठाए थे। कोर्ट ने दो महीने पहले कहा था कि क्या इस फैसले पर सुनवाई की ज़रूरत है?
इस फैसले को लेकर नवंबर के ही महीने में ही केंद्र सरकार ने कहा था कि पांच सौ एक एक हजार के नोटों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई थी जिसके चलते यह फैसला लिया गया। वहीं याचिका में दलील दी गई थी कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2) किसी विशेष मूल्यवर्ग के करंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए सरकार को अधिकृत नहीं करती है। धारा 26 (2) केंद्र को एक खास सीरीज के करेंसी नोटों को रद्द करने का अधिकार देती है, न कि संपूर्ण करेंसी नोटों को।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले नोटबंदी के फैसले को लेकर केंद्र सरकार कोई भी ठोस तर्क नहीं दे पा रही थी। कोर्ट ने कहा था कि काले धन से निपटने के लिए यह फैसला लिया गया था लेकिन इस फैसले से कालेधन में कमी आने के कोई संकेत नहीं मिले। आरबीआई ने स्पष्ट किया कि नोटबंदी के समय देश भर में 500 और 1000 रुपए के कुल 15 लाख 41 हज़ार करोड़ रुपए के नोट चलन में थे और इनमें 15 लाख 31 हज़ार करोड़ के नोट अब सिस्टम में वापस में आ गए हैं, यानी यही कोई 10 हज़ार करोड़ रुपए के नोट सिस्टम में वापस नहीं आ पाए। इस जानकारी ने काले धन पर अंकुश लगाने वाला दावा भी लगभग खारिज कर दिया।
लेकिन आंकड़े ऐसा नहीं कहते। रिजर्व बैंक ने नोटबंदी के दौरान बैंकिंग सिस्टम में वापस लौटे नोटों के बारे में पूरी जानकारी जारी की थी। इसके मुताबिक पांच सौ और हज़ार के 99.3 फ़ीसदी नोट बैंकों में लौट आए हैं। मामले की सुनवाई में कोर्ट ने नोटबंदी से जुड़े कई लाभ गिनाए। कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी से नकली नोटों में कमी आई है और इससे डिजिटल लेन-देन में भी बढ़ोत्तरी हुई है और इससे लोगों की बेहिसाब आय का पता भी लगाया जा सका है। केंद्र के दावों को लेकर कई बार
वहीं इसे आतंकवादियों की फंडिंग रोकने के लिए भी उठाया गया कदम बताया लेकिन यह भी कहीं भी साबित नहीं हो सका था। सरकार ने कहा था कि नोटबंदी का फैसला रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की सिफारिश पर ही लिया गया था। नोटबंदी के फैसले पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि यह एक संगठित लूट कहा था।वहीं नोटबंदी के दौरान कई व्यापार और चौपट हो गए और बहुत से लोगों की जान नोट बदलने के लिए बैंक में लाइन में खड़े होने पर ही चली गई। केंद्र सरकार इसे लंबे समय तक अनदेखा करती रही लेकिन अंत में उन्होंने तीन लोगों की मौत की बात मानी थी।