इंदौर। करीब 10-12 साल का अर्जुन (बदला हुआ नाम) हमें देश के सबसे साफ-सुथरे शहर इंदौर के व्यस्ततम राजवाड़ा इलाके में हवा मिठाई व छोटे-छोटे खिलौने बेचते हुए मिला। ये बच्चा शहर के इस पुराने और बेहद व्यस्त इलाके में रोज़ाना करीब दस घंटे तक रहता है और यहां खिलौने बेचता है। सुबह से लेकर रात तक यहां बेहद सघन यातायात होता है।
इस दौरान अर्जुन यहां लगातार खड़ा रहता है। वह नियमित स्कूल नहीं जाता, वह बताता है कि उसके परिवार वाले भी इसी इलाके में आसपास दुकान लगाते हैं। यहां यातायात और धूल के गुबार के बीच कुछ ही देर में लोगों को खांसते हुए यहां से तुरंत निकलने की कोशिश करते हुए देखा जा सकता है। हालांकि इस क्षेत्र के दुकानदार कहते हैं कि उन्हें इसकी आदत हो चली है इसलिए इससे कोई असर नहीं होता।
अर्जुन से जब इस बारे में बात की जाती है तो उसका जवाब भी यही होता है। अर्जुन के मुताबिक उसे इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता बल्कि उसे यहां आकर अच्छा लगता है क्योंकि यहां उसका सामान अच्छा बिकता है और अच्छी आमदनी होती है।
इंदौर में बड़ी संख्या में ऐसे ‘कामकाजी बच्चे’ नजर आते हैं। ये बच्चे भी इसी तरह सामान बेचते हुए नजर आते हैं। इनमें से एक बच्चा नितिन है, बताता है कि अक्सर छींकता-खांसता रहता है। 14-15 साल का नितिन कहता है, “आस-पास धूल-धुआं तो रहता ही है। इसमें सांस लेने से सर्दी-खांसी हो जाती है।” कुछ दूसरे बच्चे भी बताते हैं कि ट्रैफिक के बीच खड़े होने पर उनकी आंखों में जलन होती है, नाक से अक्सर पानी बहता है।
सड़क-चौराहे पर जिंदगी का गुजर-बसर कर रहे बच्चों की क्या बात करें, शहर की हवा का प्रदूषण सभी प्रकार के बच्चों की सेहत बिगाड़ता है। मसलन, खंडवा रोड पर कुछ महीनों से सड़क निर्माण का काम चल रहा है, इसकी धूल और वाहनों का धुआं आस-पास के इलाकों में सभी लोगों और खास कर बच्चों को चाहे जब बीमार कर देते हैं। पास ही की पॉश कॉलोनी रानीबाग के निवासी इंदौर के सीनियर सर्जन डॉ. परविंदर लुबाना अपने आसपास की प्रदूषित वायु से बेहद परेशान हैं। डॉ. लुबाना बताते हैं, “मेरी चार और छह साल की बेटियां इस खराब हवा से अक्सर सर्दी, खांसी जैसे संक्रमण और बुखार के कारण बीमार हो रही है। एक सीनियर डॉक्टर होने के नाते मैं जानता हूं कि मेरी बेटियों को प्रदूषित हवा कितनी बुरी तरह प्रभावित करती है।”
इंदौर से कुछ किलोमीटर दूर बसा महू इस बड़े शहर के एक उपनगर की तरह है। इस हरे-भरे और कमोबेश साफ सुथरे इलाके में बृजेश अमोनिया रहते हैं।
बृजेश बताते हैं, “सड़कों पर उड़ने वाली धूल और यातायात का धुआं मेरे 13 साल के बेटे को परेशान करता है। सर्दी-खांसी आम समस्या बन चुकी है।” उनके मुताबिक सांस के साथ प्रदूषण भी शरीर में जाता है लेकिन इसके क्या दुष्परिणाम होते हैं उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
इसी शहर में मध्य भारत अस्पताल में पिछले चार सालों से शिशु रोग विभाग में डॉक्टर रामाशीष शुक्ला पदस्थ हैं। डॉ. शुक्ला के मुताबिक, “वायु प्रदूषण के प्रभाव लोगों की समझ में नहीं आते, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कोई प्रभाव नहीं है। कई बार लोग अपने बच्चों की सर्दी-खांसी की शिकायत करते हैं, लेकिन यह हर बार मौसमी बीमारी नहीं होती। अक्सर यह प्रदूषण के कारण भी होता है। यह प्रदूषण घर के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर होता है।”
इंदौर से थोड़ा आगे बढ़ने पर करीब 35 किलोमीटर दूर पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र है। एक उद्योग क्षेत्र में वायु प्रदूषण की शिकायत सामान्य बात है। पीथमपुर में लोग प्रदूषण की शिकायत करते हैं और बताते हैं कि कैसे इलाके की हवा लगातार खराब हो रही है। हालांकि जब उनसे बच्चों के बारे में पूछा जाता है तो उनके पास कुछ खास बताने के लिए नहीं होता। छत्रछाया कॉलोनी में रहने वालीं सुधा बताती हैं, बच्चे को सर्दी खांसी होती है, लेकिन उन्हें नहीं लगता कि इसके पीछे वजह वायु प्रदूषण है। दरअसल, सुधा जैसे कई लोगों की यह गलतफहमी है कि वायु प्रदूषण का हमारी सेहत पर बुरा असर नहीं होता।
इंदौर में सांस की बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ. सलिल भार्गव बताते हैं कि छोटे बच्चों पर वायु प्रदूषण का प्रभाव वयस्कों के मुकाबले ज्यादा होता है। वे बताते हैं कि हवा में मौजूद प्रदूषण जिसमें धूल और धुआं या गैसें शामिल होती हैं वह छोटे बच्चों पर ज्यादा गंभीर होता है क्योंकि उनका श्वसन तंत्र विकसित हो रहा होता है।
डॉ. भार्गव के मुताबिक वायु प्रदूषण के शिकार वे बच्चे ज्यादा होते हैं जो प्रदूषित इलाके में रहते हैं यानी घनी बस्तियों में, व्यस्त सड़कों के किनारे या उन इलाकों में जहां ज्यादा निर्माण कार्य हो रहे हों या फिर कारखाना क्षेत्रों में।
छोटे बच्चों में वायु प्रदूषण के प्रभावों को समझाते हुए वे कहते हैं कि छोटे बच्चों में वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा, निमोनिया या बार-बार सर्दी खांसी हो सकती है। वे कहते हैं कि वायु प्रदूषण बच्चों के विकास के लिए भी खतरनाक हो सकता है और वे अपने उम्र से छोटे भी दिख सकते हैं। डॉ. भार्गव के मुताबिक बच्चों की अक्सर नाक बहना निमोनिया का लक्षण है जो उनकी ग्रोथ को प्रभावित करता है। इसके अलावा वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में टीबी की आशंका भी बढ़ जाती है।
इंदौर में ज्यादातर डॉक्टर अब वायु प्रदूषण को गंभीर मानते हैं लेकिन इसके बावजूद शहर के अस्पतालों में वायु प्रदूषण के बच्चों पर हुए प्रभावों को लेकर कोई खास जानकारी नहीं है।
डॉ. भार्गव इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि ज्यादातर बच्चों को सर्दी खांसी होती है जिसके इलाज के लिए वे सामान्य डॉक्टर के पास जाते हैं और बच्चों का विकास नहीं होने पर मातापिता इसकी वजह वायु प्रदूषण को नहीं मानते और वे भी इसे समान्य ही लेते हैं। डॉ. भार्गव के मुताबिक बच्चों में सामान्य तौर पर सर्दी-खांसी की परेशानी चार-पांच बार होती है, लेकिन ज्यादा प्रदूषण वाले इलाकों में रहने वाले बच्चों मे यह परेशानी लगातार बनी रहती है। वे बताते हैं कि अब तक इसे लेकर कोई शोध इंदौर में नहीं हुआ है, लेकिन पिछले कुछ समय से सभी डॉक्टर देख रहे हैं कि बच्चों में इस तरह की स्वास्थ्य परेशानियां लगातार बढ़ रहीं हैं और अब डॉक्टर अपने समूहों में इस बात को उठा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि वायु प्रदूषण के कारण केवल वे बच्चे प्रभावित हो रहे हैं जो इसके सबसे ज्यादा संपर्क में रहते हैं। इस परेशानी की शिकायत इंदौर के इसी राजवाड़ा इलाके में रहने वाली महिलाएं भी करती हैं। यहां रोज़ सुबह से रात तक फलों की दुकान लगाने वालीं रीना दिन में करीब 12 घंटे यहां बैठती हैं। वे बताती हैं कि धूल से उन्हें एलर्जी होती है। आंख में जलन होती है, सिर दुखता है।
फल बेच रहीं एक अन्य महिला बताती हैं कि उनकी अक्सर सांस भरने लगती है धुआं उड़ने से सर्दी-खांसी होती है। इसी कतार में बैठी एक महिला बताती हैं कि वे धूल और धुएं से परेशान हैं और महीने में कई बार बीमार होती हैं और महीने छह सात बार तक बीमार हो जाती हैं और महीने की आमदनी का काफी हिस्सा डॉक्टर और दवा पर खर्च हो जाता है।
देश के सबसे साफ सुथरे शहर इंदौर में गंदगी के लिए जगह नहीं है। शहर की सड़कें लगातार साफ होती हैं। यहां के लोग अपने शहर की इस स्वच्छता पर गर्व करते हैं। वे कहते हैं कि इसके लिए सभी ने मिलकर मेहनत की है।
इन दिनों सर्दियों की इस धूप में सुबह-सुबह जब शहर की सड़कें साफ़ हो रहीं हैं उस समय धूल के गुबार हवा में उड़ रहे हैं। उड़ती हुई इस धूल को रोकने के लिए लोगों के पास कोई उपाय नहीं है। शहर की सड़कों पर झाड़ू लगा रहीं एक महिला कर्मी बताती हैं कि धूल सूंघना मजबूरी है क्योंकि हमेशा मास्क पहनकर काम करना मुश्किल होता है। वे कहती हैं कि हम मास्क भी लगा लें लेकिन दूसरे लोगों के लिए तो सांस लेने के लिए यही हवा है।
हवा के प्रदूषण से सभी परेशान हैं लेकिन इसे अब भी ज्यादातर लोग गंभीरता से नहीं लेते। हालांकि इनके असर से वे खुद भी परेशान नज़र आते हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इंदौर देश के उन 37 शहरों में शामिल है जहां 2017 से 2021 के बीच पांच वर्षों में वायु गुणवत्ता में गिरावट दर्ज हुई है। जाहिर है, लोगों की सेहत पर इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता।
इंदौर और इसके करीब के उद्योग क्षेत्रों में हवा को शुद्ध बनाने के लिए यू.एस. एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के सहयोग से चल रहे क्लीन एयर कैटलिस्ट प्रोजेक्ट के तहत हुए विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक भी इंदौर की हवा को भी उसकी सड़कों-गलियों की तरह साफ करने की जरूरत है, ताकि यहां नागरिक स्वस्थ रह सकें।
एन्वार्यर्नमेंटल डिफेंस फंड के प्रोजेक्ट मैनेजर और भारत में क्लीन एयर कैटलिस्ट प्रोग्राम के प्रमुख कौषिक राज हजारिका कहते हैं, “इंदौर प्रशासन ने शहर में नागरिकों और सफाईकर्मियों के सहयोग से कचरे के निस्तारण में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। अब शहर के नागरिकों को वायु प्रदूषण और सेहत पर प्रदूषकों के बुरे असर को लेकर जागरूक बनाने की जरूरत है।”
हजारिका बताते हैं कि क्लीन एयर कैटलिस्ट ने इंदौर नगर निगम के साथ विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से वायु प्रदूषण के खतरों के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने के प्रयास किए है और जो लोग ज्यादा जोखिम में उनके लिए ऐसे प्रयास जारी रहेंगे।
(यह स्टोरी इंटरन्यूज के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से तैयार की गई है।)