नई दिल्ली। बिल्किस बानो के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। यहां गुजरात सरकार ने बिल्किस के साथ दुष्कर्म करने और उनकी तीन साल की बेटी की हत्या के 11 दोषियों को रिहा करने के अपने फैसले के पक्ष में दलील दी। इस दौरान पेश किए गए दस्तावेजों में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की भूमिका भी नजर आई।
सुप्रीम कोर्ट मैं गुजरात सरकार ने कहा कि बिलकिस बानो की दुष्कर्मी यों को 14 साल की सजा दी गई थी जो उन्होंने पूरी कर ली है इस दौरान उनका व्यवहार भी अच्छा पाया गया। राज्य सरकार के मुताबिक दोषियों साल 1992 में बनाई गई नीति के अनुसार छोड़ा गया है। इन कैदियों को 10 अगस्त, 2022 को रिहा किया गया।
केंद्र ने भी दी सहमति!
जवाब में कहा गया कि केंद्र सरकार ने भी दोषियों की समय पूर्व रिहाई को मंजूरी दी थी। गुजरात सरकार के अनुसार, आजादी का अमृत महोत्सव के तहत जिन कैदियों को रिहा किया गया, बिल्किस बानो के दोषियों का मामला उनसे जुड़ा हुआ नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि चूंकि इस मामले की जांच सीबीआइ ने की थी, इसलिए राज्य सरकार ने रिहाई से पहले केंद्र से भी मंजूरी ले ली थी।
इसी साल जून के महीने में राज्य सरकार ने केंद्र के गृह मंत्रालय से इन दोषियों को छोड़े जाने के बारे में पूछा था जिसके बाद गृह मंत्रालय ने केवल 14 दिनों में ही अपनी ओर से अनुमति दे दी थी।
10 अगस्त 2022 को बिलकिस बानो के दोषियों को छोड़ा गया था जिसके बाद हादसा ख़ासा हंगामा होता रहा। देशभर में गुजरात सरकार के इस फैसले पर लोगों ने आश्चर्य जताया। इसके बाद माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व वीसी रूपरेखा वर्मा की जनहित याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने याचिकाकर्ताओं पर कहा कि वे खुद पीड़ित नहीं हैं। दोषियों की रिहाई को जिन लोगों ने चुनौती दी है, उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।