शारदीय नवरात्रिः नलखेड़ा का बगलामुखी मंदिर तंत्र साधना के लिए माना जाता है आदर्श स्थान


पांडवकालीन है बगलामुखी मंदिर, नवरात्रि में उमड़ रहा श्रद्धालुओं का सैलाब। देवी साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती हैं।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :
nalkheda bagalamukhi maa

धार। नलखेड़ा में धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्व है। तांत्रिक साधना के लिए उज्जैन शहर के बाद नलखेड़ा स्थित मां बगलामुखी मंदिर का नाम आता है। मां बगलामुखी का मंदिर एक प्राकृतिक एवं रमणीक स्थल के नाम से भी जाना जाता है।

मां बगलामुखी के दर्शन के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं और मां के दर्शन कर लाभान्वित होते हैं। यहां के भक्तों का कहना है कि सच्चे हृदय से मां से जो भी मांगा जाता है वह जरूर मिलता है।

आश्चर्य की बात तो यह है कि हिंदू समुदाय के साथ साथ कई मुस्लिम धर्म के लोग भी मां के दर्शन के लिए आते हैं। नगर में मां बगलामुखी मंदिर के अलावा एक और पूर्व दिशा में महाभारत कालीन प्रसिद्ध श्री बल्डावदा हनुमान मंदिर है, जिसमें मूर्ति महाभारत काल की है।

नगर के मध्य पंचमुखी हनुमान और प्रसिद्ध श्री खेड़ापति हनुमान विराजमान हैं। नगर से बाहर निकलते ही विघ्न विनाशक मंगल मूर्ति भगवान श्री गणेश जी महाराज की विशाल प्रतिमा विराजमान है, जो अति प्राचीन है।

नगर के उत्तर पश्चिम में लक्ष्मण नदी जो वर्तमान में लखुंदर नदी के नाम से प्रख्यात है। नदी के तट पर सिद्ध पीठ पीतांबरा मां बगलामुखी माता विराजमान हैं। कहा भी गया है कि सदा भवानी दाहिने, सम्मुख होत गणेश। पांच देव रक्षा करें, ब्रह्मा विष्णु महेश।

विश्व प्रसिद्ध पीतांबरा सिद्ध पीठ मां बगलामुखी की मूर्ति महाभारत कालीन है जो कि भीम पुत्र बरबरी द्वारा स्थापित की गई थी। यहां पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों को हराने के लिए भगवान कृष्ण के कहने पर ही मां बगलामुखी की आराधना की थी।

मां बगलामुखी ने प्रकट होकर पांडवों को विजयश्री का वरदान दिया था। मां बगलामुखी का वर्णन कालीपुराण में मिलता है। वर्ष की दोनों नवरात्रि के दौरान इस मंदिर पर भक्तों का ताता लगा रहता है। शारदीय नवरात्रि के दौरान तंत्र साधना के लिए तांत्रिकों का जमावड़ा भी यहां लगा रहता है।

मंदिर में विराजित है त्रिशक्ति मां –

आगर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर नलखेड़ा में पीतांबरा सिद्धपीठ मां बगलामखी का मंदिर है जहां त्रिशक्ति मां विराजित हैं। बीच में मां बगलामुखी दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती।

मां बगलामुखी मंदिर के बाहर 16 खंभों वाला एक सभा मंडप है जिसे विक्रम संवत 1815 यानी सन 1759 में पंडित इम्बुजी ने दक्षिणी कारीगर तुलाराम से बनवाया था। मंदिर के ठीक सामने एक दीपमालिका बनी हुई है।

मंदिर के अहाते में ही हनुमान मंदिर, गोपाल मंदिर व काल भैरव मंदिर भी है। मंदिर का मुख्य द्वार सिंहमुखी है तथा मंदिर के पास ही दो शिवालय स्थित हैं। मंदिर परिसर में नीम, पीपल, चंपा-चमेली आदि के पेड़ हैं जो साक्षात मां के होने का प्रमाण है।

दस महाविद्याओं में बगलामुखी का है विशेष महत्व –

प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है मां बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। शास्त्र के अनुसार इस देवी की साधना-आराधना से शत्रुओं का स्तम्भ हो जाता है। यह साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती हैं।

नवरात्रि में उमड़ा भक्तों का सैलाब –

विश्व प्रसिद्ध मां बगलामुखी मंदिर पर नवरात्रि में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। हर रोज करीब 15 हजार से अधिक लोगों ने मां के दर्शन कर पुण्य लाभ लिया। वहीं कई भक्तों द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए हवन-पूजन भी करवाए गए हैं।



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