इंदौर। बीते 14 मई को देश के प्रखर पत्रकार श्रवण गर्ग का 75वां जनमदिन इंदौर के भंडारी रिसॉर्ट में मनाया गया। उनके परिजनों, दोस्तों और शुभचिंतकों द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में, उनकी चुनिंदा कविताओं के संग्रह ‘पिता, तुम तो पहाड़’ का विमोचन कवि सरोज कुमार ने किया, जिसका प्रकाशन उनकी बेटी कृति- बेटे कुणाल सहित अन्य परिजनों के सहयोग से किया गया। यह कविता संग्रह श्रवण गर्ग के लिए एक आश्चर्य की तरह रहा, क्योंकि इसके प्रकाशन को लेकर उन्हें कोई जानकारी नहीं थी।
कार्यक्रम के दौरान पर्दे पर उनकी देश की खास शख्सीयतों के साथ विभिन्न अवसरों पर ली गई तस्वीरें भी दिखाई गईं, जो श्रवण गर्ग के 75 वर्ष के जीवन और पत्रकारिता के दौर की बेमिसाल प्रस्तुति रही। कार्यक्रम में जहां श्रवण गर्ग ने अपने व्यापक अनुभवों को साझा किया, वहीं दोस्तों एवं रिश्तेदारों ने उनसे जुड़े दिलचस्प किस्से सुनाए।
उनके मित्र सुशील दोषी, रमेश बाहेती, डॉ. डेविश जैन, शंकर लाल गर्ग, रामदास गर्ग, नीतू जोशी, अनिल त्रिवेदी आदि ने उनकी पत्रकारिता के क्षेत्र में बरती गई ईमानदारी एवं धारदार लेखन को याद किया। इनके अलावा कार्यक्रम में बीसीसीआई के पूर्व सचिव संजय जगदाले, पूर्व कुलपति डॉ. भरत छापरवाल, डॉ. यशवंत मारू, राजेन्द्र कोठारी, चिन्मय मिश्र, अरविंद, अजय, डॉ. अतुल और शरद कटारिया आदि मौजूद रहे।
उम्र के 75वें वर्ष में बीते समय को याद करते हुए, श्रवण गर्ग आज भी स्वयं को उस बच्चे की तरह मानते हैं जो गुल्लक में कुछ पैसे इकट्ठा कर लेता है और उसे बजाता रहता है। आयोजन के लिए दोस्तों एवं परिजनों को धन्यवाद देते हुए श्रवण गर्ग ने कहा कि ‘जब अपने ही शहर में लोग सम्मान करें तो वह किसी भी सम्मान से बड़ा होता है। कविता लिखने से जीवन शुरू किया, और सरोज भाई के साथ कविता भी पढ़ी। बच्चों ने मेरा कविता संग्रह प्रकाशित कर मुझे अचंभित कर दिया है।‘
श्रवण गर्ग 1972 में प्रकाशित, डकैतों के आत्मसमर्पण पर आधारित किताब “चम्बल की बंदूक: गांधीजी के चरणों में” के सह लेखक है। चंबल के बीहड़ों में ट्रैकिंग करने के अलावा उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ कुछ समय बिताया और बिहार आंदोलन पर एक पुस्तक “बिहार आंदोलन एक सिंहावलोकन” भी लिखी है।
14 मई 1947 को इंदौर में जन्मे श्रवण गर्ग ने श्री वैष्णव पॉलिटेक्निक इंदौर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा (1967), इंदौर विश्वविद्यालय से बीए (1971) और भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से अंग्रेजी पत्रकारिता में डिप्लोमा (1973) किया है।
इसके अलावा, वे थॉमसन फाउंडेशन ( लंदन, यूके) और साल्ज़बर्ग सेमिनार (साल्ज़बर्ग , आस्ट्रिया) के पूर्व छात्र रह चुके हैं। वे भारत और विदेशों में व्यापक रूप से यात्रा करने वाले पत्रकार हैं और पत्रकारिता एवं कविता के अलावा फोटोग्राफी भी करते हैं। पत्रकारिता को करीब से जानने वाले उन्हें हिंदी पत्रकारिता का आखिरी संपादक भी कहते हैं।
लगातार पढ़ने, लिखने और सीखने में यकीन रखने वाले श्रवण गर्ग देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में विज़िटिंग फैकल्टी के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च, इंदौर के जनसंचार विभाग में सलाहकार और विज़िटिंग फैकल्टी थे।
श्रवण गर्ग को पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए 2012 में लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। वे नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन सोसाइटी आदि के सह सदस्य रह चुके हैं। उनका अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि इंदौर से गहरा संबंध है और उनकी सजी व अनूठी लेखन शैली के पाठक व चाहने वाले अन्य कई राज्यों में मौजूद हैं।