शुक्रवार देर रात साढ़े 11 बजे पीजीआई चंडीगढ़ में फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का निधन हो गया। उनकी 19 मई को कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आई थी। हालत खराब होने के बाद उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
रिपोर्ट नेगेटिव आने पर 31 मई को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। 3 जून को तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें पीजीआई में भर्ती करवाया गया था। तीन डॉक्टरों की टीम उनकी देखभाल कर रही थी।
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में मिल्खा सिंह का जन्म हुआ था। खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से विभाजन के बाद भारत भाग आए और भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
पांच बार के एशियन गेम्स गोल्ड मेडलिस्ट मिल्खा सिंह को पहली बार 1960 में फ्लाइंग सिख कहा गया था। यह उपनाम उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने दिया था।
1960 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इंडो-पाक स्पोर्ट्स मीट के लिए मिल्खा सिंह को पाकिस्तान आमंत्रित किया था। मिल्खा सिंह बचपन में जिस देश को छोड़ आए थे वहां वे नहीं जाना चाहते थे। लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जोर देने पर वे भारतीय दल के लीडर के तौर पर पाकिस्तान गए।
मिल्खा ने 200 मीटर स्प्रिंट में पाकिस्तान के सुपरस्टार स्प्रिंटर अब्दुल खलीक को आसानी से हराकर गोल्ड मेडल जीता। मेडल देते हुए ही अयूब खान ने मिल्खा सिंह को पहली बार फ्लाइंग सिख कहा।
मिल्खा सिंह ने इसलिए कर दिया था अर्जुन अवॉर्ड लेने से मना –
मिल्खा सिंह को 1959 में पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया था। 2001 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड दिए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इंकार कर दिया था।
बाद में उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा था कि आजकल अवॉर्ड मंदिर में प्रसाद की तरह बांटे जाते हैं। मुझे पद्मश्री अवॉर्ड के बाद अर्जुन अवॉर्ड के लिए चुना गया।