तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर जाग…!


इंसान की तरह ही लोकतंत्र भी कमजोर होता है, बीमार हो जाता है। लोकतंत्र की गठरी पर चोर की निगाह हमेशा लगी रहती है। नागरिक मुसाफिर को जाग कर अपनी गठरी को बचाना है। सरकारें आती-जाती रहेंगी। देश हमारा है, लोकतंत्र हमारा है और उसकी रक्षा आखिरकार लोगों को ही करनी होगी।


संजय वर्मा
अतिथि विचार Published On :
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सरकार यदि लोगों को मास्क पहनाना चाहती है, तो यह अच्छी बात है। मगर इस पर ज्यादा जोर देना, दुकानें सील करना, मारपीट करना, सरकार की नीयत पर शक पैदा करता है। लगता है, जैसे सरकार अपनी नाकामी लोगों के सर मढ़ना चाहती है। वह हमें यकीन दिलाना चाहती है कि इस बीमारी और उस से हो रही मौतों के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं।

साल भर पहले कोरोना एक मायावी बीमारी थी, जिसका इलाज हमें पता नहीं था। राहत की बात है कि इस बीच हमारे डॉक्टरों ने इस बीमारी का मंतर फूंकना सीख लिया। आज यदि डॉक्टरों को ऑक्सीजन, दवाएं और वेंटिलेटर जरूरत मुताबिक मिल जाएं, तो कोरोना से होने वाली ज्यादातर मौतों को टाला जा सकता है। पर दुख इस बात का है कि सरकार ने बीते एक साल में इसकी कोई तैयारी नहीं की।

पांच ट्रिलियन की इकोन\मी बनने की डींगें हांकने वाली सरकार आज मरीजों के लिए ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं करा पा रही। बीते एक साल में यदि ईमानदारी से मेहनत की जाती, तो हमारे इंजीनियर, हमारे कारखाने जरूरत से कई गुना ज्यादा वेंटीलेटर दवाएं और ऑक्सीजन सिलेंडर बना सकते थे।

यदि सरकारी अमला एक इलाके के सारे लोगों से एक दिन में वोट डलवा सकते हैं, तो एक दिन में वैक्सीनेशन क्यों नहीं हो सकता। मगर सरकार ने अपना काम नहीं किया इसलिए वह लॉकडाउन, मास्क पर चालान, दुकानों को सील करना, लोगों को बेइज्जत करना जैसे धत-करम कर हमें इस बात का यकीन दिलाने की कोशिश कर रही है कि लोगों की लापरवाही इस बीमारी की वजह है।

नगर निगम के हर एक झोन को मास्क का चालान बनाने का टारगेट दिया जाता है, हैरानी की बात है कि वैक्सीनेशन का टारगेट पूरा नहीं होने पर किसी अधिकारी का कोई चालान नहीं बन रहा।

यह खेल नया नहीं है। सड़क हादसों के मामले में यह बहुत पहले से हम देखते आए हैं। असल में ज्यादातर सड़क हादसे गलत रोड इंजीनियरिंग की वजह से होते हैं। मगर सरकार सड़कों को नहीं सुधारती, ब्लैक स्पॉट ठीक नहीं करती, गलत ढलान देख कर भी आंख बंद कर लेती है, वह सिर्फ दोपहिया वाहनों के चालान बनाती है और हमें समझा देती है कि सड़क हादसे इसलिए होते हैं क्योंकि लोग लाइसेंस और बीमे के कागज अपनी जेब में रखकर नहीं चलते।

अपराध रोकने में जब पुलिस नाकामयाब होती है तो वह मकान मालिकों पर इसका इलजाम डालती है कि उन्होंने किरायेदारों की सूचना थाने में नहीं दी थी। कोई नहीं पूछता कि उन सूचनाओं का आखिर क्या हुआ जो मकान मालिकों ने थानों में जमा की थी।

यह बारीक खेल है, जिसे नागरिकों को अब समझना चाहिए। सवाल करना चाहिए। यह सवाल करना नागरिक होने की शर्त है। हम जिस देश में पैदा होते हैं उसकी राष्ट्रीयता हमें पैदा होने के साथ ही मिल जाती है, मगर नागरिक बनना अलग मामला है। उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है।

चुनाव में वोट डालने भर से हम नागरिक नहीं बन जाते। नागरिकता कमानी पड़ती है। नागरिकता उन तमाम बातों से मिलती है जो हम दो चुनावों में वोट डालने के दरम्यानी वक़्त में करते हैं। सरकार चाहती है नागरिकों पर तरह-तरह के कानून लाद दिये जाएं ताकि हर आदमी खुद को अपराधी महसूस करे और सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत न करे।

इंसान की तरह ही लोकतंत्र भी कमजोर होता है, बीमार हो जाता है। लोकतंत्र की गठरी पर चोर की निगाह हमेशा लगी रहती है। नागरिक मुसाफिर को जाग कर अपनी गठरी को बचाना है। सरकारें आती-जाती रहेंगी। देश हमारा है, लोकतंत्र हमारा है और उसकी रक्षा आखिरकार लोगों को ही करनी होगी।