– व्यालोक।
आज सुबह-सुबह क्लबहाउस (यह एपल फोन का एक एप है, जैसे ज़ूम वगैरह, जिससे ग्रुप चैट और ऑडियो-वीडियो कॉल होती है) पर प्रशांत किशोर के साथ वाम-कांग्रेसी विचारधारा के मीडियाकर्मियों की बातचीत लीक होने के बाद ट्विटर पर पीके भी ट्रेंड करने लगे।
यहां तक कि भाजपा आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय और प्रवक्ता संबित पात्र ने भी उसे शेयर किया और सोशल मीडिया की रवायत के अनुसार पल भर में पक्ष-विपक्ष में पत्थरबाज़ी होने लगी।
जो ऑडियो सामने आए हैं, उसके मुताबिक दावा किया गया कि प्रशांत किशोर ने बंगाल में टीएमसी की हार स्वीकार कर ली है। हालांकि कुछ ही देर बाद एएनआई से बातचीत में उन्होंने दावा किया (हमेशा और हर फंसे हुए व्यक्ति की तरह) कि उनकी बातों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और अगर भाजपा में दम है, तो उसे पूरी बातचीत सार्वजनिक करनी चाहिए, न कि कुछेक टुकड़े।
Glad BJP's taking my clubhouse chat more seriously than words of its leaders. On selective use of part of conversation, urge them to release full conversation: Prashant Kishor to ANI on leaked audio where he's saying "Modi, Mamata equally popular" among Bengal poll-related things pic.twitter.com/8LTUv6gRjX
— ANI (@ANI) April 10, 2021
इस बातचीत में क्या विषयवस्तु है, वह जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अहम यह भी है कि इस बातचीत में मोदी की विरोधी धारा के तमाम प्रतिनिधि मीडियाकर्मी लगभग मौजूद हैं, जो पब्लिक स्फीयर में, तमाम सार्वजनिक मंचों पर देश में ‘2014 की मई से छायी असहिष्णुता, फासीवाद और लोकतंत्र के गला घोंटे जाने’ की भूरि-भूरि निंदा करते आ रहे हैं।
इसमें रवीश कुमार का दर्द भी छलकता नज़र आया है, जब वह बड़ी आजिजी से पूछते हैं कि ‘इस भयंकर ‘इकनॉमिक क्राइसिस; में भी मोदी के खिलाफ ‘एंटी-इनकंबेंसी’ क्यों नहीं है, और ममता बनर्जी के खिलाफ क्यों है?‘ (भले आदमी को यह भी याद नहीं कि ये पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव है, केंद्र में बनने वाली सरकार के लिए लोकसभा चुनाव नहीं) तो एक बड़ी पत्रकारा साक्षी जोशी का यह सवाल भी है कि ‘ममता बनर्जी लगातार रैलियों में रहती हैं, इतना व्यस्त उनका शेड्यूल है तो टॉयलेट कब जाती हैं या कैसे जाती हैं?’ (मने, अक्षय कुमार के आप आम कैसे खाते हैं, के बाद भारतीय मीडिया का यह नया शाहकार हमें मिला है)।
PK agreed that Modi is Popular in Bengal on #Clubhouse 👇 Modi is cult figure in the country.
He said anti-incumbency against TMC has opened door for BJP, Polarization & Modi's popularity.#RavishKumar asks 'Centre ka anti-incumbency nahi hai Bengal mein'… Arey Jaat bhai 🤯 pic.twitter.com/j8u03c2EhZ
— PoliticsSolitics (Modi Ka Parivar) (@IamPolSol) April 10, 2021
इस पूरे लीक और बवाल में दो-तीन चीजें समझने की हैं। पहली तो यह कि पीके ओवररेटेड मैनेजर हैं, जैसे कि इस देश में पत्रकारिता और बाकी चीजें हैं। यह बात समझने की है कि एपल का एचआर मैनेजर कभी भी स्टीव जॉब्स नहीं बन सकता है, उसी तरह सोशल मीडिया या चुनाव-प्रबंधन करनेवाला व्यक्ति कभी भी नेता की जगह नहीं ले सकता है और अगर नेता में, उसके कैंपेन में दम नहीं है तो कितना भी अच्छा मैनेजर हो, वह कुछ नहीं बिगाड़ या बना सकता है।
ज़रा याद कीजिए कि प्रशांत किशोर की पहली बहाली किसने की थी? उसी मोदी ने, जो अपने तमाम समकालीन नेताओं से पहले समझ गए थे कि सोशल मीडिया एक बड़ी भूमिका निभाने वाला है और उनके अधिकांश वोटर्स फर्स्ट-टाइम वोटर्स हैं, जिनको लुभाने के लिए सोशल साइट्स को मैनेज करना चाहिए। 2014 का मंजर याद करें तो देश मनमोहन-सोनिया राज से बुरी तरह ऊबा हुआ था, दिल्ली में अन्ना के कांधे पर सवार होकर केजरीवाल एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर चुके थे और मोदी की भाषा और देहभाषा दोनों ही जनता को आकर्षित कर रही थी। परिणाम वही होना था, जो एक अच्छे सोशल मीडिया कैंपेन का होना था। हां, प्रशांत किशोर को इसका श्रेय जरूर दिया जाना चाहिए कि उन्होंने मैनेजर की अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभायी।
दूसरी बात, यह समझने की है कि प्रशांत किशोर ने एंटी-इंकम्बेंसी और मोदी की लोकप्रियता को स्वीकारा है, जिस पर हमारे धुरंधर मीडियाकर्मी निराशा जता रहे हैं और वोटों के बांट-बखरे में लगे हुए हैं। ममता बनर्जी 10 साल से सत्ता में हैं, जिस तरह का घनघोर मुस्लिम तुष्टीकरण उन्होंने किया है, वह सतह पर है, सबको दिख रहा है, उनके राज में तोलाबाजी या कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार चरम पर रहा, यह भी एक तथ्य है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है, मतुआ समुदाय विस्थापन और ज़ड़ों से उखड़ने का दर्द जानता है, वह सीएए का समर्थक है, ममता बनर्जी ने सीएए का विरोध किया था, यह भी एक जानी हुई बात है। यह सब पब्लिक डोमेन में है, खुला हुआ है, फिर भला पीके ने इसमें नया या अचंभित करने वाली क्या बात कह दी है?
Sigh! This Sakshi Joshi person actually thinks she is asking a very intelligent question! pic.twitter.com/7WAiKB1gLo
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) April 10, 2021
तीसरी औऱ सबसे गौर करने की बात है कि टीम मोदी किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेती है और पूरे दमखम और जोर से लड़ती है, चाहे यूपी में क्लीन स्वीप करना हो या दिल्ली में आठ सीटों पर सिमटना, कोई भी चुनाव हो, आप देख सकते हैं कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा अपना पूरा दमखम आजमाती है। मोदी के विरोधियों की दिक्कत यह है कि सिवाय गरियाने के वे ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं करते और हारने पर कभी ईवीएम तो कभी जनता को ही कोसने लगते हैं।
अस्तु, बात मीडियाकर्मियों की। किसी भी चुनाव के नतीजे की भविष्यवाणी करना खतरे से खाली नहीं है क्योंकि करोड़ों मतदाताओं के मूड का अंदाजा महज 4-5 हजार लोगों से बात कर (वह भी अगर सर्वे करनेवाली एजेंसी ने ईमानदारी बरती हो) भला लगाया ही कैसे जा सकता है, लेकिन मैथिली की एक कहावत है न, ‘सौ-सौ जूता खाएब, तमाशा घुस के देखा जाएब’! भारत के तथाकथित बड़े पत्रकार वही गलती बारहां करते हैं, चावल की पतीली के एक दाने से भले उसके पकने का अंदाजा हो जाए, लेकिन मतदाताओं के मूड का अंदाजा बिल्कुल सही आंकना कतई ठीक नहीं है, लेकिन इनका तो दिल है कि मानता नहीं।
बंगाल में क्या होगा और क्या नहीं, यह मुझे नहीं पता। ईमानदारी से अगर कोई भी इसका जवाब देगा तो उसे भी शायद यही कहना चाहिए, लेकिन क्लबहाउस की बातचीत यही दिखाती है कि हमारे मीडियाकर्मी कितने छिछले, मोदी-विरोध में अंधे और तथ्य से दूर जा चुके हैं। कांग्रेस और वामदलों की कोई बात तक नहीं कर रहा, गोया बंगाल में दो ही दल चुनाव में लड़ रहे हैं, मुद्दों की बात कही नहीं हो रही, बस मोदी-समर्थन और विरोध में बाइट्स खर्च हो रही हैं, नैरेटिव बनाए जा रहे हैं और परिणाम के बाद आप जनता को ही कोसेंगे।
इस पूरे हल्ला-गुल्ला में पत्रकारिता की एक धीमी सी आंच तब देखने को मिली, जब गृहमंत्री अमित शाह के प्रेस कांफ्रेंस में किसी पत्रकार ने उनकी आंखों में आंखें डालकर यह पूछने की हिम्मत की कि कोरोना के द्वितीय संक्रमण के दौर में वह और पीएम इतनी बड़ी रैलियां क्यों कर रहे हैं, जिस पर अमित शाह ने बहुत ही ‘रफ’ तरीके से जवाब दिया।
रवीश और आरफा को पत्रकारिता के बेसिक लेसन सीखने की जरूरत है, उस पत्रकार से। कोई भी चुनाव मैनेजर अभी भारत में इतना बड़ा नहीं हुआ है कि वह चुनाव नतीजों को प्रभावित कर दे। इस देश में जनता अभी भी नेतृत्व से ही प्रभावित होती है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से नहीं।
(यह आलेख वेबसाइट जनादेश से साभार लिया गया है)