नरवाई से ख़ाक हो रही खेतों की खुराक, जहरीले धुएं में जाया हो रही शक्ति


जब देशगांव संवाददाता ने मौके पर पहुंचकर किसान से चर्चा की तो किसान द्वारा कहा गया कि आप तो खबर पेपर में छाप दोगे ओर हम किसान गेहूं की नरवाई नहीं जला पाएंगे।आपको क्या मिलेगा।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Updated On :
dhar narwai burn

धार। क्षेत्र में अनेक स्थानों पर खेतों में आग लगने की घटना सामने आ चुकी है। इन घटनाओं में अब तक लाखों रुपये का गेहूं जलकर खाक हो चुका है। इसके बावजूद किसान सबक नहीं ले रहे हैं।

समझाइश के बाद भी किसान खेतों में नरवाई में आग लगा रहे हैं। प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है। गर्मी के मौसम में किसान गेहूं की फसल कटने के बाद नरवाई में आग लगा देते हैं जिससे कई बार बड़े हादसे हो जाते हैं।

वहीं वायुमंडल में प्रदूषण के साथ ही खेतों की उपजाऊ क्षमता भी कम हो रही है। कृषि विभाग भी किसानों को नरवाई न जलाने की समझाइश नहीं दे रहे हैं। बस कागजों पर ही इसका कार्य हो रहा है, लेकिन किसान अपने हठ पर अडे हुए हैं।

कई बार नरवाई में आग लगाने से आग दूसरे खेतों तक, खेत तक व मकानों तक भी पहुंच जाती है जिससे जन व धन हानि की आशंका बनी रहती है। जब देशगांव संवाददाता ने मौके पर पहुंचकर किसान से चर्चा की तो किसान द्वारा कहा गया कि आप तो खबर पेपर में छाप दोगे ओर हम किसान गेहूं की नरवाई नहीं जला पाएंगे।आपको क्या मिलेगा।

जब किसान की नरवाई जलती तो धुंआ दिल्ली तक पहुंच जाता है और जब किसान का नुकसान होता है तो किसान की आवाज तहसील तक नहीं पहुंचती है। किसान नरवाई नहीं जलाए तो क्या करे। अगर इसमें अलग से खर्च करे तो कुछ नहीं बचेगा।

12 स्थानों पर लग चुकी है आग –

क्षेत्र में अब 12 से अधिक स्थानों पर खेतों में आग लगने के मामले सामने आए हैं। इन घटनाओं में लाखों रुपये का गेहूं जलकर खाक हो गया। बता दें कि नरवाई जलाने पर देश के अन्य प्रदेशों में प्रतिबंध लगा हुआ है।

कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक यहां अभी प्रतिबंध है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को नरवाई नहीं जलाने के लिए समझाइश भी देते हैं पर समझाइश के बाद भी किसान नरवाई को जला देते हैं।

ये करें किसान –

किसान स्ट्रॉरीपर यंत्र का उपयोग कर नरवाई से भूसा तैयार कर सकते हैं जिससे भूसे की मात्रा बढ़ेगी। गेहूं कटाई के दौरान किसान नीचे से कटाई करें। नरवाई जलाना वायुमंडल के लिए खतरनाक है। नरवाई में आग लगाने से खेत के जीव पदार्थ नष्ट हो जाते हैं जिसके कारण उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। किसानों को गेहूं कटवाने के बाद उसे कृषि में प्लाव या रोटावेटर का उपयोग करना चाहिए। इससे अवशेष की कटिंग हो जाती है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण प्रदूषण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981 के तहत धान व गेहूं की फसल कटाई के बाद बची फसल को जलाने पर प्रतिबंध लगाया है। इसके तहत राज्य के पर्यावरण विभाग ने आदेश भी जारी कर दिए। मगर इसपर फिर अमल नहीं करवा पा रहे हैं। नरवाई जलाने पर अब दो एकड़ से कम कृषि भूमि वाले किसान को 2500 रुपये, दो एकड़ से ज्यादा व पांच एकड़ से कम कृषि भूमि वाले को पांच हजार और पांच एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि वाले को पंद्रह हजार रुपये तक का जुर्माना लगेगा। यह जुर्माना पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में वसूला जाएगा।

आम समस्या: करें भी तो क्या किसान –

फसल काटने के बाद बची फसल या नरवाई को जलाना आम समस्या है। अधिकतर जगह किसान श्रम व पैसा बचाने के लिए नरवाई जला देते हैं, लेकिन नरवाई जलाने से जमीन के उपजाऊपन पर विपरीत असर पड़ता है। साथ ही प्रदूषण भी फैलता है। नरवाई जलाने वाले किसान का कहना है हम करें तो क्या करें। पहले से ही फसल पक नहीं रही और जो थोड़ा बहुत पैसा बच रहा है। अगर इसमें लगा दें तो हमारे हाथ तो कुछ नहीं आना है।

नरवाई जलाने से बढ़ रहा अत्यधिक वायु पदूषण –

नरवाई जलाने से बढ़ रहे वायु प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान हो रहा है। वहीं मिट्टी के पोषक तत्वों की अत्यधिक क्षति पहुंच रही है, सतह की मिट्टी की भौतिक दशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। एक टन गेहूं के फसल अवशेष जलाने पर तीन किलोग्राम कणिका तत्व, 60 किलोग्राम कार्बन मोनो ऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड, 199 किलोग्राम राख एवं दो किलोग्राम सल्फर डाई ऑक्साइड अवमुक्त होती है। इन गैसों के कारण सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आती है जिससे आंखों में जलन एवं त्वचा रोग तथा सूक्ष्म कणों के कारण जीर्ण हृदय एवं फेफड़ों की बीमारी के रूप में लोगों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है।

कितना नुकसान –

वहीं एक टन धान का फसल अवशेष जलाने से करीब 5.50 किलोग्राम, नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस ऑक्साइड, 25 किलोग्राम पोटेशियम ऑक्साइड, 1.2 किलोग्राम सल्फर, धान के द्वारा शोषित 50 से 70 प्रतिशत सूक्ष्म पोषक तत्व एवं 400 किलोग्राम कार्बन की क्षति होती है, पोषक तत्वों के नष्ट होने से अतिरिक्त मिट्टी के कुछ गुण जैसे- भूमि तापमान, पी.एच. मान उपलब्ध फासफोरस एवं जैविक पदार्थ भी अत्यधिक प्रभावित होते हैं। परिणाम स्वरूप भूमि की उर्वरक क्षमता कम होने लगती है।

ये होता है नरवाई जलाने से नुकसान –

  • खेत के मित्र बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। फसल के अंकुरण में दिक्कत होती है।
  • खेत के उर्वरक, अल्सिएं नष्ट हो जाते हैं। खेत की उर्वरकता प्रभावित होती है।
  • नरवाई जलाने से धुआं निकलता है, जिससे वायुमंडल में प्रदूषण होता है।
  • नरवाई आग से भूमि में रहने वाले फसलो के लाभकारी, सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं।
  • खेतों की मिट्टी कड़क हो जाती है, जिससे उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है।
  • नरवाई जलाने से ग्लोबल वार्मिंग में असर पड़ता है। यह वायुमंडल के लिए खतरनाक है।
  • भूमि की ऊपरी परत पर उपलब्ध पोषक तत्व नष्ट होते हैं।
  • खेतों में आग लगाने से वातावरण तापमान की वृद्धि हो जाती है।

नरवाई जलाना मजबूरी –

किसान हटेसिंह पटेल का कहना है कि जब से मशीनों से गेहूं की कटाई हो रही है, तब से नरवाई जलाने की प्रक्रिया भी तेजी से प्रचलन में आई है। गेहूं, सोयाबीन व अन्य की खेती करने में दिक्कत होती है। उत्पादन घटता है, यह हमें भी मालूम है। हमें नरवाई जलाने के दुष्परिणाम पता हैं, लेकिन मजबूरी में जलाना पड़ता है। करें तो क्या करें। इसको नहीं जलाई तो हमारा खर्च भी बढ़ेगा।



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