देवास। रास्ते के कुत्तों का जीवन यानी स्ट्रीट डॉग्स एक गाली की तरह है। रास्ते के इन कुत्तों को शायद ही कभी संवेदना की दृष्टि से देखा जाता है।
ये कुत्ते कभी रास्ते लोगों को काट देते हैं तो कभी सड़क पर चल रही मोटरसाइकिल पर लपक पड़ते हैं। लिहाजा ये आम लोगों और निकायों दोनों के लिए ही सिरदर्द बताए जाते हैं और यही वजह है कि इन जानवरों पर हिंसा की जाती है।
इन कुत्तों को कई बार संवेदना मिलती है लेकिन दुर्भाग्य से उस समय जब सड़क पर इनका दर्दनाक अंत होता है। हालांकि जानवरों से इस नफरत के बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इन जानवरों का दर्द बिल्कुल वैसे ही महसूस कर पाते हैं जैसे किसी इंसान को होना चाहिए।
देवास शहर में सिम्बा एंड गोपाल एनिमल वेलफेयर सोसायटी नाम की संस्था की संचालिका पशुप्रेमी रूपा पटवर्धन और नम्रता क्षीरसागर रास्ते पर रहने वाले कुत्तों या स्ट्रीट डॉग्स के कल्याण के लिए वर्षों से काम कर रही हैं।
रूपा और नम्रता पशु-क्रूरता के खिलाफ मुखरता से बोलने वाले नामों में से हैं जिनके कार्यों से प्रभावित होकर समाज में कुछ हद तक इन जानवरों के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ रही है।
कुत्तों को मारने और शहर से बाहर खदेडे जाने जैसी घटनाओं में हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से ज्यादातर बार ऐसा होता है। नगर पालिका या निगम नियमानुसार कुत्तों की नसबन्दी के बाद उन्हें वहीं छोड़े जहां से पकड़ा गया था। यह रवैया कुत्तों के हिंसक व्यवहार को कम करेगा।
रूपा पटवर्धन बीते 25 से अधिक वर्षों से स्ट्रीट डॉग्स के लिए काम कर रही हैं। रुपा रोज़ रात दो बजे से उठकर 80 किलोग्राम आटे की रोटियां बनवाती हैं। इसके अलावा करीब सैकड़ों अंडे और कई किलो बिस्किट लेकर वे सुबह पांच बजे स्ट्रीट डॉग्स तक यह नाश्ता पहुंचाने के लिए निकल जाती हैं।
रूपा शहर में कई जगह इन कुत्तों को खाना देती हैं। इनमें शहर के बाहरी हिस्सों में बनी आवासीय क़ॉलोनियां भी शामिल हैं। जहां इन कुत्तों की काफी संख्या होती है।
इसके अलावा जख्मी या बीमार कुत्तों के लिए उनका शेल्टर हाउस हमेशा खुला रहता है जहां इन जानवरों के इलाज के लिए पूरी व्यवस्था है। इस समय उनके इस शेल्टर में करीब 180 कुत्ते हैं।
वे एंटी रेबीज वेक्सीनेशन की मुहिम से जुडी हैं और कुत्तों की नसबंदी कार्यक्रम के लिए वे देवास और इंदौर में एक जाना-पहचाना नाम बच चुकी हैं। रूपा अपने इस काम के लिए किसी तरह की आर्थिक सहायता या अनुदान भी नहीं लेती हैं।
रूपा पटवर्धन की तरह एक नम्रता क्षीरसागर भी स्ट्रीट डॉग्स के लिए समर्पित हैं। पेशे से एक स्कूल शिक्षिका नम्रता पिछले छह सालों से यह लिए काम कर रहीं हैं।
उनके मुताबिक इन जानवरों के साथ एक आत्मीय भाव का अनुभव होता है। वे अपने वेतन का थोड़ा हिस्सा इन कुत्तों के कल्याण में लगाती हैं।
नम्रता रोज सुबह चार बजे 20 किलोग्राम कुत्तों का भोजन, सौ अंडे और करीब एक बोरी बिस्किट लेकर शहर के भीतरी हिस्सों में रहने वाले स्ट्रीट डॉग्स के लिए लेकर जाती हैं।
रूपा की तरह नम्रता भी चोटिल और बीमार कुत्तों का इलाज करवाती हैं। वे कुत्तों की नसबंदी और उन्हें रेबीज के टीके लगवाने की मुहिम चला रहीं हैं।