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हमारे जीवन में कई बार ऐसे हालात आते हैं जब हमें लगता है कि अब कोई भी उपाय हमारी मदद नहीं कर सकता। खासतौर पर जब हम शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं और डॉक्टर भी कोई ठोस समाधान नहीं दे पाते। ऐसे में क्या केवल दवाओं और अस्पतालों पर निर्भर रहना ही एकमात्र रास्ता है? क्या हमारे विचार और हमारी मानसिकता भी हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं?
अभिनेता, लेखक और कलाकार थॉम बीयर्ड्ज़ की असली कहानी इस सवाल का जवाब देती है। उन्होंने चार बार खुद को ऐसी शारीरिक स्थितियों से बाहर निकाला, जहां डॉक्टरों और महंगे इलाज की जरूरत थी, लेकिन उन्होंने केवल सकारात्मक सोच और आत्म-विश्वास के बल पर खुद को ठीक किया। उनकी यह प्रेरणादायक यात्रा हमें यह सिखाती है कि हमारे विचार और मानसिक शक्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी दवाइयाँ।
घुटने में फंसा लकड़ी का टुकड़ा और चमत्कारी रूप से ठीक होना
थॉम एक दिन भारी लकड़ी के ईज़ल (चित्रकारी का स्टैंड) को 43 सीढ़ियों से नीचे ले जा रहे थे। तभी उन्हें घुटने में हल्का दर्द महसूस हुआ, लेकिन उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया। जब वह घर पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि एक दो इंच लंबा लकड़ी का टुकड़ा उनकी त्वचा के अंदर धंस चुका था।
उन्होंने इसे बाहर निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। अस्पताल जाने के बजाय उन्होंने यूट्यूब पर घरेलू उपाय खोजे और साबुन-चीनी के मिश्रण से इसे निकालने का प्रयास किया, लेकिन वह तरीका भी असफल रहा।
अंत में, उन्होंने अपने शरीर से संवाद किया और अपने शरीर से कहा कि वह इस लकड़ी के टुकड़े को अपने आप बाहर निकाल दे। हफ्तों तक हल्का दर्द बना रहा, लेकिन उन्होंने कोई चिंता नहीं की। और फिर, एक दिन जब वह नहाने के लिए गए, तो उन्होंने देखा कि वह लकड़ी का टुकड़ा अपने आप त्वचा से बाहर निकल आया! बिना किसी दर्द के!
गले में असहनीय दर्द लेकिन दवा नहीं, केवल आत्म-विश्वास
एक बार थॉम के गले में इतनी भयानक तकलीफ हुई कि निगलना तक मुश्किल हो गया। जब वह डॉक्टर के पास गए, तो उन्हें बताया गया कि इलाज में हजारों डॉलर खर्च होंगे। लेकिन उनके पास स्वास्थ्य बीमा नहीं था और वह इतना खर्च करने की स्थिति में नहीं थे।
इसलिए उन्होंने दवा लेने के बजाय अपने प्राकृतिक उपचार और आत्म-विश्वास का सहारा लिया। उन्होंने हर्बल दवाएँ, विटामिन और प्राकृतिक तत्वोंसे खुद को ठीक करने की ठानी। उन्होंने अपने शरीर से कहा कि वह ठीक हो जाएंगे और बस एक दिन के भीतर उनका गले का दर्द पूरी तरह से गायब हो गया।
सिर पर लगी गंभीर चोट और लकवाग्रस्त होने से बाल-बाल बचे
20 साल पहले, जब थॉम जिम में एक्सरसाइज़ कर रहे थे, तब उन्होंने एक लोहे की मशीन पर गलत तरीके से बैलेंस खो दिया और सिर के बल नीचे गिर गए। उनका सिर सीधे लोहे के फ्रेम पर टकराया, जिससे वह कुछ मिनटों के लिए पूरी तरह लकवाग्रस्त हो गए।
उनकी आँखें खुली थीं, लेकिन वह न तो अपनी उंगलियां हिला पा रहे थे और न ही बोल पा रहे थे। यह स्थिति किसी भी इंसान को गहरे सदमे में डाल सकती थी।
लेकिन थॉम ने घबराने के बजाय अपने दिमाग को शांत रखा और खुद से कहा, “नहीं, मैं लकवाग्रस्त नहीं हो सकता। मैं ठीक हो जाऊंगा।”
उन्होंने अपने शरीर से संवाद किया और धीरे-धीरे उनकी उंगलियां हिलने लगीं। पाँच मिनट बाद उनके हाथ-पैर हिलने लगे। और जब एंबुलेंस आई, तो वह धीरे-धीरे चलकर बाहर आ गए!
अगर वह घबरा जाते और सोचते कि अब वह हमेशा के लिए लकवाग्रस्त हो चुके हैं, तो शायद उनका दिमाग और शरीर उसी हिसाब से प्रतिक्रिया देता।
क्या सच में सकारात्मक सोच शरीर को ठीक कर सकती है?
थॉम का अनुभव इस बात का प्रमाण है कि हमारी मानसिकता और विचारधारा हमारे शरीर की हीलिंग प्रक्रिया को तेज़ कर सकते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों में भी पाया गया है कि प्लेसबो इफ़ेक्ट (जब मरीज को नकली दवा दी जाती है लेकिन वह मानता है कि यह असली है और उसकी हालत सुधर जाती है) भी इसी सिद्धांत पर काम करता है।
सीखने योग्य बातें:
- डर को खुद पर हावी न होने दें – जब हम डरते हैं, तो हमारा शरीर कमजोर हो जाता है और रोग से लड़ने की क्षमता घट जाती है।
- प्राकृतिक तरीकों पर भरोसा करें – सही खान-पान, योग, ध्यान और हर्बल उपायों से हमारा शरीर खुद को ठीक कर सकता है।
- अपने शरीर से संवाद करें – अगर हम खुद को विश्वास दिलाते हैं कि हम स्वस्थ हैं, तो हमारा शरीर उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देता है।
- सकारात्मक सोच रखें – नकारात्मक विचार हमें और बीमार बना सकते हैं, जबकि सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर को मजबूत बना सकती है।